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भीमा कोरेगांव मामले में कार्यकर्ताओं की नजरबंदी फिर बढ़ी,19 सितम्बर को अगली सुनवाई

भीमा कोरेगांव हिंसा मामले में सामाजिक कार्यकर्ताओं की गिरफ्तारी के खिलाफ लगी याचिकाओं पर सोमवार को...
भीमा कोरेगांव मामले में कार्यकर्ताओं की नजरबंदी फिर बढ़ी,19 सितम्बर को अगली सुनवाई

भीमा कोरेगांव हिंसा मामले में सामाजिक कार्यकर्ताओं की गिरफ्तारी के खिलाफ लगी याचिकाओं पर सोमवार को सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई हुई। चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा ने कहा कि फिलहाल कार्यकर्ताओं को हाउस अरेस्ट पर रखने का अंतरिम आदेश जारी रहेगा। इस मामले में अगली सुनवाई 19 सितंबर को होगी। कोर्ट ने कहा है कि मामले को सबूतों के आधार पर परखेगी।

 

चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा, जस्टिस ए एम खानविलकर और जस्टिस धनन्जय वाई चन्द्रचूड़ की पीठ ने कहा कि हर आपराधिक मामले की जांच आरोपों पर आधारित होती है और हम यह देख रहे हैं कि इसमें क्या पर्याप्त सबूत हैं। कोर्ट ने कहा कि पुणे पुलिस की ओर से जुटाए गए सुबूत पर्याप्‍त नहीं होने की स्थिति में मामले की जांच एसआईटी को सौंपी जा सकती है।

 

सुनवाई के दौरान सरकार की तरफ से अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल ने कहा कि नक्सल एक गंभीर समस्या है और इस तरह की याचिकाओं को सुना जाएगा तो एक खतरनाक प्रिंसिपल सेट हो जाएगा। क्या संबंधित अदालत इस तरह एक मामलों को नहीं देख सकती? हर मामले को सुप्रीम कोर्ट में क्यों?

सरकार की इस दलील पर चीफ जस्टिस ने कहा कि हम लिबर्टी के आधार पर इस मामले को सुन रहे हैं। स्वतंत्र जांच जैसे मुद्दों पर बाद में चर्चा होगी। हम सिर्फ यह देखना चाहते थे कि कहीं यह मामला कोड ऑफ क्रिमिनल प्रोसीजर या आर्टिकल 32 से जुड़ा हुआ तो नहीं है?

वहीं, सुनवाई के दौरान महाराष्ट्र सरकार के वकील तुषार मेहता ने कहा कि आरोपी केवल भीमा कोरेगांव के मामले में गिरफ्तार नहीं हुए हैं, आशंका है कि ये देश में शाति भंग करने के प्रयास में भी हैं।

सीबीआई या एनआईए से जांच की मांग

याचिकाकर्ताओं की तरफ से अधिवक्ता अभिषेक मनु सिंघवी ने कहा कि उन्होंने सीधे सुप्रीम कोर्ट का रुख किया है क्योंकि वे इस मामले में कोर्ट के मार्गदर्शन में या सीबीआई या फिर एनआईए से जांच चाहते हैं। कोर्ट ने कहा कि सभी मामलों को एक कोर्ट में ट्रांसफर कर देते हैं। याचिकाकर्ता एफआईआर रद्द करने को लेकर हाईकोर्ट में याचिका दाखिल कर सकते हैं। कोई सबूत नहीं है तो वे फ्री हो जाएंगे। तब तक हाउस अरेस्ट का अंतरिम आदेश जारी रखा जा सकता है।

पहले भी बढ़ चुकी है नजरबंदी

इससे पहले 12 सितंबर को हुई सुनवाई में अदालत ने वरवर राव समेत पांच वामपंथी विचारकों की नजरबंदी और पांच दिन के लिए बढ़ा दी थी। चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा और जस्टिस एएम खानविल्कर और डीवाइ चंद्रचूड़ की खंडपीठ ने बुधवार को इतिहासकार रोमिला थापर और चार अन्य की याचिका पर सुनवाई 17 सितंबर तक के लिए स्थगित कर दिया था।

28 अगस्त को किया था गिरफ्तार

मशहूर तेलुगु कवि वरवरा राव, को 28 अगस्त को हैदराबाद से गिरफ्तार किया गया था। जबकि गोंजाल्विज और फरेरा को मुंबई से पकड़ा गया था। ट्रेड यूनियन कार्यकर्ता सुधा भारद्वाज को हरियाणा के फरीदाबाद और नागरिक अधिकार कार्यकर्ता नवलखा को दिल्ली से गिरफ्तार किया गया था। इन सभी को कोरेगांव-भीमा गांव में यल्गार परिषद के भड़काऊ भाषणों के बाद हुई हिंसा के संबंध में मुंबई पुलिस ने गिरफ्तार किया। इसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने छह सितंबर को इस मामले में कड़ा संज्ञान लेते हुए इन पांचों गिरफ्तार लोगों को रिहा करके कुछ दिनों के लिए नजरबंद करने का आदेश दिया था। कोर्ट गिरफ्तारी के खिलाफ इतिहासकार रोमिला थापर द्वारा दायर याचिका की सुनवाई कर रही है।  

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