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अतिक्रमण की मंजूरी देकर लोगों के जीने के अधिकार को खतरे में नहीं डाला जा सकताः हाईकोर्ट

अतिक्रमण जैसी गतिविधियों को मंजूरी देकर लोगों के जीने के अधिकार को जोखिम में नहीं डाला जा सकता क्योंकि इससे साफ सफाई व मच्छरों जैसी दिक्कतें पैदा होंगी।
अतिक्रमण की मंजूरी देकर लोगों के जीने के अधिकार को खतरे में नहीं डाला जा सकताः हाईकोर्ट

दिल्ली हाईकोर्ट की कार्यकारी मुख्य न्यायाधीश  गीता मित्तल व जस्टिस सी हरीशंकर ने अमीर खुसरो पार्क में बने निर्माण पर स्टे लगाने की याचिका को खारिज करते हुए कहा कि अतिक्रमण जैसी चीजों से लोगों के जीने के अधिकार पर चोट पहुंचती है जिसकी इजाजत नहीं दी जा सकती। पार्क में बने अवैध निर्माण में रहने वाले लोगों ने पुनर्विचार याचिका में पूर्व फैसले पर स्टे लगाने की मांग की थी।

अदालत ने कहा कि याचिकाकर्ता ने पार्क में कब्जा कर रखा है और वहां रह रहा है जबकि उसके पास वहां रहने का कोई अधिकार या मालिकाना हक नहीं है, जिसे मंजूरी नहीं दी जा सकती क्योंकि वहां न तो सीवेज है या न सेनीटेशऩ सुविधाएं है। अगर रहने की मंजूरी दी गई तो पार्क में कूड़े की समस्या तथा खुले में यूरीनल वगैरा की समस्या अलग से होगी। आसपास रहने वाले लोगों के हक पर भी असर पड़ेगा जिसके चलते इस अवैध निर्माण को मंजूरी नहीं दी जा सकती। कोर्ट ने कहा कि यह हमारा संवैधानिक दायित्व है कि दिल्ली के लोगों के जीवन को खतरे में डालने से रोके। अवैध निर्माण को मंजूरी देने का मतलब बीमारियों को बढ़ावा देना ही है। यह भी देखा कि याचिकाकर्ता के खिलाफ जमीन कब्जाने व पार्क का कुछ हिस्सा किराए पर देने जैसी शिकायतें भी हैं।

 

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