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किसान अब 7 जनवरी को निकालेंगे ट्रैक्टर मार्च, आंदोलन तेज करने का किया ऐलान

केंद्र सरकार के साथ 4 जनवरी को हुई बैठक के बाद संयुक्त किसान मोर्चा ने अपना रुख साफ किया है। किसानों ने...
किसान अब 7 जनवरी को निकालेंगे ट्रैक्टर मार्च, आंदोलन तेज करने का किया ऐलान

केंद्र सरकार के साथ 4 जनवरी को हुई बैठक के बाद संयुक्त किसान मोर्चा ने अपना रुख साफ किया है। किसानों ने साफ किया है कि सरकार उनकी बात नहीं मान रही है, इसीलिए वो अब इस आंदोलन को तेज करने जा रहे हैं। सबसे पहले 7 जनवरी को एक ट्रैक्टर मार्च निकाला जा रहा है, जिसमें हजारों ट्रैक्टर शामिल होंगे। ये मार्च गणतंत्र दिवस परेड के दौरान 26 जनवरी को होने वाले ट्रैक्टर मार्च का एक ट्रेलर होगा।

स्वराज इंडिया के अध्यक्ष योगेंद्र यादव ने कहा कि 7 जनवरी को सुबह 11 बजे एक्सप्रेसवे पर किसान चार तरफ से ट्रैक्टर मार्च करेंगे। कुंडली बॉर्डर, टिकरी बॉर्डर, गाज़ीपुर बॉर्डर से पल्लवल की तरफ, रेवासन से पलवल की तरफ ट्रैक्टर मार्च होगा। यानी कुंडली-मानेसर-पलवल मार्ग को जाम किया जाएगा। मौसम पूर्वानुमान के मद्देनजर किसान संगठनों ने ट्रैक्टर मार्च की तारीख 6 जनवरी की जगह 7 जनवरी कर दिया है।

उन्होंने बताया कि कल से दो हफ़्ते के लिए पूरे देश में देश जागरण का अभियान चलेगा। देश के कोने-कोने में प्रदर्शन शुरू हो चुके हैं, इनको गहरा किया जाएगा ताकि इस झूठ का पर्दाफाश किया जा सके कि ये आंदोलन सिर्फ पंजाब, हरियाणा का है। हरियाणा के किसान नेताओं ने कहा 26 जनवरी के दिल्ली मार्च में हरियाणा के हर गांव से 10 ट्राली और एक घर से एक व्यक्ति मार्च में शामिल होने आए। अगले 15 दिन घर घर जाकर जन जागृति अभियान चलेगा।

किसानों ने बताया कि 9 जनवरी को सर छोटूराम चौधरी की पुण्यतिथि के मौके पर उन्हें याद किया जाएगा। जिन्होंने एपीएमसी और तमाम वो कानून दिए थे जिन्हें बचाने के लिए आज लड़ाई लड़ी जा रही है। 13 जनवरी को लोहड़ी के दिन वो कृषि कानूनों की कॉपियां को जलाएंगे। इसे एक संकल्प दिवस के तौर पर मनाया जाएगा।

बता दें कि सोमवार को सरकार और किसानों के बीच सातवें दौर की बैठक हुई लेकिन इसमें कोई नतीजा नहीं निकल पाया। कल की बैठक में ये तय किया गया कि अब अगले यानी आठवें दौर की बैठक 8 जनवरी को होगी। कल की बैठक के बाद भारतीय किसान यूनियन के प्रवक्ता राकेश टिकैत ने कहा था कि कानूनी वापसी नहीं तो घर वापसी नहीं यानी किसान अभी भी कृषि कानूनों को रद्द करने की मांग पर अड़े हुए हैं।

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