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आरएसएस के सहयोगी भारतीय मजदूर संघ ने सामाजिक सुरक्षा संहिता को बताया निराशाजनक

आरएसएस की सहयोगी संस्था भारतीय मजदूर संघ (बीएमएस) ने प्रस्तावित सामाजिक सुरक्षा संहिता संहिता के चौथे...
आरएसएस के सहयोगी भारतीय मजदूर संघ ने सामाजिक सुरक्षा संहिता को बताया निराशाजनक

आरएसएस की सहयोगी संस्था भारतीय मजदूर संघ (बीएमएस) ने प्रस्तावित सामाजिक सुरक्षा संहिता संहिता के चौथे प्रारूप को मजदूरों के लिए पूरी तरह निराशाजनक बताया है। बीएमएस ने इसे खारिज करते हुए कहा कि नए प्रारूप से सभी मजदूरों को फायदा नहीं होगा। सरकार को कर्मचारी भविष्य निधि, कर्मचारी पेंशन योजना या कर्मचारी राज्य बीमा निगम जैसे संस्थानों को खत्म नहीं करना चाहिए। बीएमएस ने सरकार से इस पर पुनर्विचार करने और संशोधित करने की मांग की है।

बीएमएस ने चौथे प्रारूप पर अपने सुझाव और आपत्तियां श्रम मंत्रालय को सौंपते हुए कहा है कि इससे देशभर के मजदूरों को भारी निराशा हुई है। बीएमएस का कहना है कि पहले और दूसरे प्रारूप में सामाजिक लाभ का अधिकार प्रदान करने जैसे अत्यधिक लाभकारी प्रावधान थे लेकिन नया प्रारूप मजदूर विरोधी है। चौथे प्रारूप में संहिता के आठ संबंधित कानूनों में गलत तरीके से काट छांट की गई है और विभिन्न लाभों को खत्म कर दिया गया है। इससे मजदूरों में विभाजन होगा और भेदभाव किया जाएगा। यह संहिताकरण के उद्देश्यों के विपरीत है।

ईपीएस और ईएसआई न हो छेड़छाड़

बीएमएस के राष्ट्रीय अध्यक्ष सी के सजी नारायणन ने कहा कि ग्रेच्यूटी की सीमा पांच साल से घटाकर एक साल की जानी चाहिए क्योंकि ज्यादातर मजदूर एक साल के अनुबंध पर काम करते हैं। देश में ऐसे मजदूरों की संख्या 80 प्रतिशत से ज्यादा हैं। उनका कहना है कि सरकार का पूरा जोर कर्मचारी पेंशन योजना (ईपीएस) के अंश धारकों को नेशनल पेंशन स्कीम (एनपीएस) की ओर धकेलना है। ईपीएस में 1.16 प्रतिशत की सरकारी हिस्सेदारी वापस ले ली गई है। सरकार ईपीएस में अपनी हिस्सेदारी खत्म करना चाह रही है। उन्होंने कहा कि कर्मचारी बीमा निगम बेहतरीन योजना है जो बिना सरकारी मदद के चलती है। इसके साथ छेडछाड नहीं की जानी चाहिए। पूरी दुनिया में कोई स्वास्थ्य बीमा नहीं है जो ईएसआई के मुकाबले में हो।

ट्रेड यूनियनों के मुद्दों पर नहीं दिया गया ध्यान

मजदूर संघ का कहना है कि प्रतिष्ठानों को कानून में छूट देना या सामाजिक रूप से योगदान की दर को कम करना मजदूर विरोधी कदम है। प्रारूप में ट्रेड यूनियनों द्वारा उठाए गए मुद्दों पर कोई ध्यान नहीं दिया गया है। योजनाओं को लागू करने और ईएसआई चिकित्सा के लिए निजी खिलाड़ियों को प्रेरित करना भी आपत्तिजनक है। कई लाभों पर  नियोक्ता को व्यक्तिगत रूप से उत्तरदायी बनाया जाना चाहिए।

बीएमएस ने कहा कि सरकार को यह समझना चाहिए कि वह ईएसआई और ईपीएफ जैसे मुख्य सामाजिक सुरक्षा कानूनों को बदल रही है जो डा अंबेडकर जैसे दूरदर्शियों ने सोच विचार करने के बाद बनाए थे। इसे सिरे से खारिज करते हुए बीएमएस ने कहा है कि सरकार को इन्हें खत्म नहीं करना चाहिए।

 

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