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भारतीय युवाओं के लिए अफ्रीकी देश में होंगे रोजगार

भारत के कई राज्यों की तरह अफ्रीका के 54 देशों में भी करोड़ों की तादाद में जनजातीय आबादी है। भारत में...
भारतीय युवाओं के लिए अफ्रीकी देश में होंगे रोजगार

भारत के कई राज्यों की तरह अफ्रीका के 54 देशों में भी करोड़ों की तादाद में जनजातीय आबादी है। भारत में अफ्रीकी डायस्पोरा और अफ्रीका में भारतीय डायस्पोरा के इतिहास में विविधता होते हुए भी कई सामाजिक-सांस्कृतिक समानताएं हैं। इन्हीं समानताओं को साझा करने और इस समुदायों के बीच व्यापार के मौके बढ़े इस पर चिंतन शुरू हो चुका है। पिछले दिनों दिल्ली के विज्ञान भवन में फोरम ऑफ एससी एंड एसटी लेजिस्लेटर्स एंड पार्लियामेंटेरियंस एवं दिल्ली विश्वविद्यालय के अफ्रीकन स्ट्डीज विभाग ने इसी डायस्पोरा पर गहन चिंतन किया। इस अंतरराष्ट्रीय संगोष्ठी में भारतीय युवाओं के लिए अफ्रीकी देशों में रोजगार के अवसर पर भी बात हुई।

मुख्य अतिथि की हैसियत से कार्यक्रम में आए विदेश राज्य मंत्री जनरल वीके सिंह ने भारतीय जनजातीयों के कौशल पर बात की। उन्होंने कहा, ‘‘जनजातीय समाज के लिए यह बेहतरीन पहल है। दोनों देशों के जनजातीय समाज अपने छिपे हुए कौशल को सरहदों के पार ले जाएंगे तो देश के आर्थिक विकास में भी इजाफा होगा।’’ सूदूर देश में यदि भारतीय संस्कृति मिल जाए तो दो देश बहुत करीब आ जाते हैं। राजनेताओं, सरकारों को जरूरत है दो संस्कृतियों को नजदीक लाकर उनके बीच दोस्ती का रिश्ता बनाने की। कार्यक्रम में पूर्वोत्तर राज्यों के विकास राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार) डॉ. जितेंद्र सिंह भी मौजूद थे। सिंह ने भरोसा दिलाया कि उनकी सरकार और मंत्रालय जनजातीय समाज के विकास और उन्हें मुख्यधारा में लाने के का हर संभव प्रयास कर रहा है। यही नहीं उनके मंत्रालय ने पूर्वोत्तर में युवाओं द्वारा स्टार्टअप के लिए बेहतरीन योजनाएं भी शुरू की हैं।

स्टार्टअप की कुछ शर्तें और नियम हैं। जो भी युवा इस दायरे में आते हैं वे स्टार्टअप शुरू करने के लिए आवेदन कर सकते हैं। जितेंद्र सिंह ने कहा, ‘हमारा मंत्रालय भारतीय जनजातीय समाज की खूबियों को व्यापार की शक्ल में अंतरराष्ट्रीय पटल पर लाने के लिए प्रयास कर रहा है। इसमें जो भी अपना योदगान देना चाहे उसका स्वागत है।’    

जनजातीय समाज सिर्फ समाज का हिस्सा ही नहीं है बल्कि जहां वे रहते हैं उस इलाके की वनस्पति, जीव, जलवायु, चिकित्सा, स्वास्थ्य, परंपरागत भोजन और पंरपरागत कौशल सभी के लिए संपदा है। इस समाज में इन बातों के जानकारों की कमी नहीं है। लेकिन वक्त के साथ-साथ यह कौशल लुप्त हो रहा है। वैश्वीकरण के युग ने आदिवासी समाज को भी उनकी परंपराओं से काट दिया है। इसी परंपरा और संपदा को बचाने के लिए फोरम ने संरक्षण की शुरूआत की है। ताकि इन मूल्यों और परंपराओं का संरक्षण कर इन्हीं में से जनजातीय समाज के लिए व्यापार के मौके मुहैया करए जाएं। इससे वे अपने समाज से जुड़े भी रह सकेंगे और उन्हें देश-दुनिया की जानकारी से लाभ भी होगा। 

केंद्रीय राज्य मंत्री जनरल वीके सिंह और डॉ. जितेंद्र दोनों ने कहा कि उनकी कोशिश इन समुदायों को रोजगार मुहैया करने की है ताकि इन्हें मुख्यधारा में लाया जा सके। दोनों देशों के बीच इसके लिए क्या होना चाहिए इस पर भी लंबी बातचीत हुई। जैसे, भारत और अफ्रीका के आदिवासी समुदायों के बीच सांस्कृतिक बातचीत। समावेशी जनजातीय पहचान और विकास पर बात। आर्थिक विकास के अनुभव साझा करना। जनजातीय समाज को प्रौद्योगिकी और कौशल विकास का हिस्सा बनाना। दोनों देशों के जानजातीय समाज के स्वदेशी ज्ञान को साझा करना। खेती और पशुपालन में मौकों पर खासी चर्चा हुई। फोरम के राष्ट्रीय कार्यकारी अध्यक्ष इंदर इकबाल सिंह अटवाल ने कहा कि रोजगार के मद्देनजर आने वाले अगले 20 वर्षों में भारतीय युवाओं के लिए अफ्रीकी देश बेहतरीन डेस्टिनेशन बन जाएगा। उन्होंने कहा कि अभी भी पंजाब के युवा कई अफ्रीकी देशों में खेती में विशेष योदगान दे रहे हैं। 

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