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गुलाबी गैंग फिर गुलजार

डॉक्यूमेंट्री फिल्म गुलाबी गैंग एक बार फिर चर्चा में है। यह फिल्म महिलाओं के मुद्दों को संजीदगी के साथ उठाती है।
गुलाबी गैंग फिर गुलजार

सन 2010 में निष्ठा जैन ने एक वृत्तचित्र बनाया था, गुलाबी गैंग। इस वृत्तचित्र को उस साल का सामाजिक मुद्दे श्रेणी में श्रेष्ठ ह‌िंदी वृत्तचित्र का राष्ट्रीय पुरस्कार मिला था। राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कारों में ही गैर फीचर फिल्म श्रेणी में इस वृत्तचित्र को श्रेष्ठ संपादन का अवॉर्ड भी मिला था। इस फिल्म को हाल ही में एक और अंतरराष्ट्रीय पुरस्कार मिलने की सूचना है। इस फिल्म को समानता के अधिकारों और सामाजिक बुराई से लड़ने के लिए प्रेरित करने वाली फिल्म का भी अवॉर्ड दिया जाएगा।

इस वृत्तचित्र की कहानी उत्तर प्रदेश के महोबा जिले की थी। संपत पाल ने सामाजिक बुराइयों से लड़ने के लिए एक समूह का गठन किया और सभी महिलाओं को कहा कि वे गुलाबी साड़ी पहनें। इसी वजह से इस समूह का नाम गुलाबी गैंग पड़ गया। संपत ने शराब पीने वाले पुरुषों, दहेज लोभी घरवालों, लड़कियों को परेशान करने वाले शोहदो को खूब सबक सिखाया। इस गैंग ने न्याय दिलाने के लिए अदालत या पुलिस स्टेशन के दरवाजे खटखटाने के बजाय खुद इंसाफ किया। इसी गैंग पर बॉलीवुड में भी एक फिल्म बनी, जिसका नाम गुलाब गैंग रखा गया। हालांकि फिल्म के निर्देशक सौमिक सेन ने इस गैंग से किसी भी तरह की प्रेरणा ले कर फिल्म बनाने के विषय पर इनकार कर दिया था।  

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