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अपने दिल की ‘क्वीन’

कंगना द्वारा यह कहकर फेयरनेस क्रीम के विज्ञापन को ठुकराना कि सेलिब्रिटीज की भी कुछ जिम्मेदारी होनी चाहिए, मुझे बहुत पसंद आया। मुझे यकीन है कि बॉलीवुड के पुरुष सितारे इस पहाड़ी कन्या से कुछ नसीहत लेंगे। लेकिन मैं यह भी कहना चाहती हूं कि तनु वेड्स मनु रिटर्न्स मुझे बहुत उबाऊ लगी। फिल्म देखकर मुझे लगा कि आखिर उससे जुड़ा शोर किस बात का था। मुझे बरसों पहले गैंगस्टर (जिसमें अब लगभग बर्बाद हो चुका शाइनी आहूजा भी लाजवाब था) में अपने लीक से जुदा रूप रंग से भाने वाली कंगना की यह अब तक की सबसे बेकार फिल्म लगी। मेरी राय में वह नशे की शिकार मॉडल के रूप में फैशन में अपने छोटे से रोल में प्रियंका चोपड़ा से कहीं अधिक असरदार रही थी। वहीं क्वीन, फिल्म और उसकी नायिका दोनों बेहद चमत्कारी थे।
अपने दिल की ‘क्वीन’

कंगना को जो बात सबसे अलग करती है वह यह कि उसने बॉलीवुड में अपना स्थान किसी पुरुष की बांहों में झूलती हुई इमेज से हटकर अपने दम पर पुख्ता किया है।

शायद यह भी सच है कि उसे ‘सपनों की रानी’ सरीखे किरदारों के लिए इसलिए भी नहीं चुना गया क्योंकि वह दिखने में भी वैसी नहीं लगती। अगर ऐसा है, तो यही उसके लिए ठीक भी है! इसमें शक नहीं कि मौजूदा शीर्ष नायिकाएं, कैटरीना और दीपिका अपने खालीपन में अधिक ‘खूबसूरत’ दिखती हैं। (दीपिका के बारे में ऐसा कहने पर कुछ भार महसूस होता है, पीकू लाजवाब फिल्म है, और इरफान खान पर उम्र के इस पड़ाव में खिंचाव सा महसूस हुआ)। लेकिन यह फिल्म की स्क्रिप्ट है जो अलग दिखती है और दीपिका मेरी गैर-विशेषज्ञ राय में हमेशा खूबसूरत नजर आती है, हालांकि वह रानी मुखर्जी या करीना कपूर जैसा अभिनय नहीं कर सकती (वह भी तब जबकि करीना अब आइटम नंबर्स नहीं कर रही हैं)। लिहाजा, दीपिका अगर एक बेहतरीन फिल्म पीकू में ठीक ठाक सी नजर आती हैं, वहीं कंगना बेहद औसत तनु-मनु द्वितीय में लाजवाब है।

तनु-मनु को देश के छोटे शहरों में महिला सशक्तिकरण दर्शाने वाली फिल्मों की सूची में गिनना वाकई बचकाना सोच है। तनु बेहद खाली और हल्का किरदार है और वह मनु को इसलिए पागलपन की हद तक ले जाती है कि वह उसके मनोरंजन के लिए कुछ नहीं करता। इसके बाद तनु कानपुर लौटती है और जहां बतौर ‘आजाद’ महिला वह एक रिक्शावाले, लॉ स्टूडेंट और स्थानीय जमींदार के साथ अठखेलियां करती दिखती है। एक अन्य चौंकाने वाला दृश्य वह है जहां वह सिर्फ तौलिया लपेट कर उस बैठक में जा धमकती है जहां परिवार वाले कुछ आगंतुकों से बातचीत में मसरूफ थे।

इसके बाद कुछ बड़े अर्थ और चरित्र लिए एक और महिला सामने आती है (रूखी सी दिखने वाली कंगना दोहरी भूमिका में) लेकिन ऐन शादी से पहले तनु उसकी जगह ले लेती है, क्योंकि जोड़ियां ऊपर से जो बनकर आती हैं (फिर चाहे आपकी घरवाली आपको पागलखाने भेजने पर ही उतारू क्यों न रही हो)। कहानी में मनु का एक मजाकिया साथी भी है जो उसे नापसंद करने वाली लड़की को अगवा करता है। दर्शकों से इस मसले पर हंसने की उम्मीद की जाती है, लेकिन अगवा लड़की का क्या हुआ, यह पता नहीं चलता। एक लड़की पर हमले की इसी गहमागहमी में एक पुरुष पात्र जरूर जाट पट्टी में खाप पंचायतों द्वारा महिलाओं के अधिकार हनन पर कुछ अच्छी सी तकरीर दे जाता है।

कहना न होगा कि अगर कंगना सचमुच में एक ऐसी आइकन के तौर पर उभरना चाहती है जो अपनी पसंद और नापसंद का खुलकर इजहार करती हो, तो उसे सबसे पहले स्क्रिप्ट्स ध्यान से पढ़नी होंगी।

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