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दिवाली से पहले रसोई गैस हुआ महंगा, पांच महीने में छठी बार बढ़े दाम

दिवाली से ठीक पहले आम आदमी को फिर महंगाई की मार पड़ी है। अब सब्सिडी और गैर सब्सिडी वाले एलपीजी...
दिवाली से पहले रसोई गैस हुआ महंगा, पांच महीने में छठी बार बढ़े दाम

दिवाली से ठीक पहले आम आदमी को फिर महंगाई की मार पड़ी है। अब सब्सिडी और गैर सब्सिडी वाले एलपीजी सिलेंडरों की कीमत में बढ़ोतरी की गई है।

समाचार एजेंसी पीटीआई के मुताबिक, सब्सिडी वाले रसोई गैस सिलेंडर की कीमत 2.94 रुपये प्रति सिलेंडर बढ़ गई। वहीं, गैर सब्सिडी वाले सिलेंडरों की कीमत में 60 रुपये की वृद्धि की गई। सिलेंडर के आधार मूल्य में बदलाव और उस पर कर के प्रभाव से दाम में वृद्धि हुई है।

इंडियन ऑयल कॉर्प (आईओसी) ने बयान में कहा कि 14.2 किलो के सब्सिडीयुक्त एलपीजी सिलेंडर का दाम बुधवार रात्रि से 502.40 रुपये से बढ़कर 505.34 रुपये प्रति सिलेंडर हो जाएंगे। बयान में कहा गया है कि वैश्विक कीमतों में वृद्धि और विदेशी मुद्रा विनिमय में उतार चढ़ाव से बिना सब्सिडी वाले रसोई गैस सिलिंडर 60 रुपये महंगा हो गया है, जबकि सब्सिडी वाले एलपीजी ग्राहकों पर जीएसटी के कारण केवल 2.94 रुपये का बोझ पड़ेगा।

पांच महीने में छठी बार बढ़े दाम

सब्सिडी वाले रसोई गैस सिलेंडर के दाम में जून से यह छठी वृद्धि है। तब से लेकर अब तक दाम 14.13 रुपये बढ़ गए हैं। एलपीजी उपभोक्ताओं को बाजार मूल्य पर रसोई गैस सिलेंडर खरीदना होता है। हालांकि, सरकार साल भर में 14.2 किलो वाले 12 सिलेंडरों पर सीधे ग्राहकों के बैंक खाते में सब्सिडी डालती है।

बिना सब्सिडी वाले एलपीजी सिलेंडर की कीमतें 60 रुपये बढ़कर 880 रुपये प्रति सिलेंडर हो गई। इसके साथ ही ग्राहकों के खातों में हस्तांतरित होने वाली सब्सिडी नवंबर 2018 में बढ़कर 433.66 रुपये प्रति सिलेंडर हो गई, जो कि अक्टूबर महीने में 376.60 रुपये प्रति सिलेंडर पर थी।

इस तरह तय होते हैं एलपीजी के दाम

औसत अंतरराष्ट्रीय बेंचमार्क रेट और विदेशी मुद्रा विनिमय दर के अनुरूप एलपीजी सिलिंडर के दाम तय होते हैं, जिसके आधार पर सब्सिडी राशि में हर महीने बदलाव होता है। जब अंतरराष्ट्रीय दरों में वृद्धि होती है तो सरकार अधिक सब्सिडी देती है, लेकिन टैक्स नियमों के अनुसार रसोई गैस पर माल एवं सेवाकर (जीएसटी) की गणना ईंधन के बाजार मूल्य पर ही तय की जाती है। ऐसे में सरकार ईंधन की कीमत के एक हिस्से को तो सब्सिडी के तौर पर दे सकती है, लेकिन कर का भुगतान बाजार दर पर करना होता है। इसके चलते कीमतें में वृद्धि होती है।

 

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