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रांची में रम गए साहित्यजन

अनिता रश्मि के लेखन में झारखंड की गंध और गहरी संवेदनशीलता है। ‘लाल छप्पा साड़ी’ से लेकर ‘बांसुरी की चीख’ तक उनके कथा लेखन में एक विकास यात्रा दिखती है। जाने-माने लेखक सी भास्कर राव अनिता रश्मि की लेखन यात्रा को इसी तरह देखते हैं।
रांची में रम गए साहित्यजन

रांची में आयोजित तीसरे शैलप्रिया स्मृति सम्मान के मौके पर अनिता रश्मि को सम्मानित करते हुए भास्कर राव ने उनकी कथा यात्रा पर बहुत गहराई से नजर डाली। अनिता रश्मि को सम्मान स्वरूप 15000 रुपये की राशि, शॉल और मानपत्र भेंट किया गया। सी भास्कर राव ने लेखिका की कुछ कहानियों की अलग से चर्चा करते हुए माना कि उन्होंने अपने कथ्य और शिल्प दोनों स्तरों पर काफी नया और अलग काम किया है। कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए जाने-माने कवि और संपादक शंभु बादल ने झारखंड की सुपरिचित कवयित्री दिवंगत शैलप्रिया को याद किया और उनकी कविताओं में दुख-पीड़ा, विक्षोभ और विद्रोह की क्रमशः विकासमान यात्रा का उल्लेख किया।

अनिता रश्मि ने शैलप्रिया को याद करते हुए उनसे अपने रचनात्मक जुड़ाव का जिक्र किया और अपने कथा लेखन पर बात की।

रांची के मारवाड़ी कॉलेज स्थित विवेकानंद प्रेक्षागृह में हुए इस आयोजन में स्त्री लेखन और स्वातंत्र्य के अलग-अलग पहलुओं पर भी बात हुई। यह लक्ष्य किया गया कि किस तरह हिंदी का स्त्री लेखन परंपरा की जकड़नों और आधुनिकता के फंदों- दोनों को पहचानता हुआ, एक सशक्त स्त्री-व्यक्तित्व की खोज और उसका निर्माण करता हुआ लेखन है। इक्कीसवीं सदी का बदला हुआ स्त्री विमर्श कैसे अब खुलेपन और आजादी की चुनौतियों के पार जाकर बराबरी के बुनियादी लक्ष्यों से जुड़ रहा है। लेखक-पत्रकार प्रियदर्शन ने इस अवसर पर शैलप्रिया से अनिता रश्मि तक के स्त्री लेखन के सफर पर बात करते हुए अलग-अलग पीढ़ियों की लेखिकाओं के अवदान को रेखांकित किया।

आयोजन के दूसरे खंड में रांची की आठ कवयित्रियों, ग्रेस कुजूर, वीना श्रीवास्तव, कलावंती सिंह सुमन, रेहाना मोहम्मद अली, जसिंता केरकेट्टा, रश्मि शर्मा, वंदना टेटे और अनामिका प्रिया ने अपनी कविताओं का पाठ किया। यह काव्य पाठ पिछले सत्र के स्त्री विमर्श की अगली कड़ी की तरह सामने आया जिसमें झारखंड के भीतर शोषण की कसक से लेकर स्त्री संवेदना तक के कई पहलू खुलते रहे।

दिसंबर के आखरी रविवार की दोपहर से शुरू होकर शाम तक चले इस आयोजन में झारखंड की साहित्यिक-सांस्कृतिक परंपरा के कई प्रतीक व्यक्तित्व लगातार बने रहे। ऋता शुक्ल, महुआ माजी, रणेंद्र, पंकज मित्र, सत्यनारायण, अशोक प्रियदर्शी, श्रवण कुमार गोस्वामी, सैयद शहरोज कमर, अश्विनी कुमार पंकज और कुमार बृजेंद्र जैसे राष्ट्रीय ख्याति के लेखकों, बलबीर दत्त, उदय वर्मा, धर्मराज राय, कृष्णकेतु और श्रीनिवास जैसे वरिष्ठ संपादकों-पत्रकारों, मेघनाथ और श्रीप्रकाश जैसे उभरते हुए फिल्मकारों, अशोक पागल, कमल बोस, सुशील कुमार अंकन और कुलदीप सिंह दीपक जैसे रंगकर्मियों और छायाकारों की मौजूदगी ने कार्यक्रम की गरिमा बढ़ाई।

अनुराग अन्वेषी का कार्यक्रम-संचालन सुरुचिपूर्ण रहा। वरिष्ठ कवि और लेखक विद्याभूषण ने स्वागत वक्तव्य के दौरान कहा कि किसी भी लेखक का मूल्यांकन उसकी रचना यात्रा के मध्यक्रम में ही होना चाहिए। मान पत्र वाचन सावित्री बड़ाईक ने किया और धन्यवाद ज्ञापन का दायित्व आदिवासी लेखक और विचारक महादेव टोप्पो ने निबाहा। यह ऐसी सांस्कृतिक-साहित्यिक शाम रही जिसे रांची का हिंदी संसार देर तक याद रखेगा।

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