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03 July 2023

नजरिया: सामाजिक संरचना की समझ जरूरी

“पौराणिक कहानियों से लेकर इतिहास तक विवाहेतर संबंधों और बहुविवाह की खूब कहानियां प्रचलित हैं”

भारत में विवाह आज भी दो व्यक्तियों के बजाय दो परिवारों के बीच का संबंध है। यहां तक कि नए दौर में होने वाले अंतरजातीय या अंतरधार्मिक प्रेम विवाहों में भी परिवारों ने अपनी भूमिकाएं बना ली हैं। अब इस तरह की शादियों में भी माता-पिता या परिवार वालों की सक्रिय भागीदारी दिखती है। आइटी कंपनियों में काम करने वाले प्रोफेशनल जिस तरह के माहौल में रहते हैं वे नॉलेज सेंटर हैं। वहां सांस्कृतिक विविधता को बढ़ावा दिया जाता है। अपने घर-परिवार से बहुत दूर रहने वाले युवा कई बार बिना शादी के किसी के साथ रहना चाहते हैं, तो कई बार झटपट शादी कर लेते हैं। यह सब कुछ इस पर निर्भर करता है कि वे किन शहरों से आए हैं या उनका सांस्कृतिक परिवेश कैसा है। भारतीय समाज में बीते 20-22 वर्षों में जो बदलाव आया है, उसमें निस्संदेह शादी से पहले संबंधों के प्रति सहजता आई है, मगर विवाहेतर संबंध अब भी भारतीय समाज में चटखारे का ही विषय है और उनकी सहज स्वीकार्यता नहीं है। आज की पीढ़ी विवाह-पूर्व संबंधों को काफी हद तक स्वीकार कर चुकी है और आसपास के लोग भी, मगर शादी के बाद के संबंधों पर समाज को अभी और आगे जाना है। रोजमर्रा के जीवन में भी देखें या सिनेमा जैसे लोकप्रिय माध्यम में भी, तो वहां भी विवाहेतर संबंध का गणित बिलकुल अलग तरह का होगा।

भारत ही क्यों, दुनिया के तमाम देशों में तलाक या पति-पत्नी के बीच विवाद की सबसे बड़ी वजह आज भी साथी का “धोखा देना” ही है। संबंधों के बीच यह धोखा कई स्तर पर हो सकता है, लेकिन जो आम कारण है वह “दूसरे के साथ संबंध” ही है। चूंकि भारतीय समाज में शादी से बड़ा कुछ नहीं होता इसलिए इसी को केंद्र में रख कर बात की जाती है। देखा जाए, तो शादी ही नहीं लिव-इन रिश्ते भी अक्सर इसी आधार पर टूटते हैं। वह भी तब, जहां उस रिश्ते का कोई सामाजिक या कानूनी बंधन नहीं है। अभी भी एक आम भारतीय दंपती के लिए अपनी इच्छाएं बहुत बाद में आती हैं। उनके लिए विवाह की सामाजिक भूमिका ही ज्यादा अहम है। इन भूमिकाओं की अदला-बदली हो सकती है, लेकिन इसके मूल में अंतर नहीं आता। यही वजह है कि मेरा मानना है कि विवाहेतर संबंधों के पूरे मसले को नैतिकता के चश्मे से देखने के बजाय यथार्थवादी होकर देखने की ज्यादा जरूरत है। तकनीक ने हमारे जीने के तरीके में बहुत बदलाव किया है। जीने के तरीके में बदलाव हमारी प्राथमिकताओं और हमारी नैतिकता को भी बदलता है। इसलिए संबंधों को सिर्फ नैतिकता के तराजू में नहीं तौला जा सकता। विवाहेतर संबंध भारतीय समाज के ताने-बाने की तरह रहे हैं, दबे-छिपे ढंग से ही सही, उनकी स्वीकार्यता भी रही है। भारत और पश्चिमी समाजों में फर्क यही है कि वहां कोई भी बदलाव ज्यादा खुली बहस का हिस्सा बनता है और उसी खुले तरीके से आने वाले बदलाव को स्वीकारा भी जाता है। हमारे समाज में बहुत कुछ “बिहाइंड द कर्टेन” रखने की प्रवृत्ति है। कुछ मामलों में हम यूरोप की विक्टोरियन नैतिकता से बेहतर स्थिति में रहे हैं। विक्टोरियन नैतिकता यौन दमन के साथ-साथ पारिवारिक मूल्यों, दान और मितव्ययिता से जुड़ी थी जबकि छोटे शहरों और गांवों में विवाहेतर संबंधों के किस्से जाने कितने साल से मौजूद हैं।

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भारतीय मध्यवर्ग, जिसे पवन कुमार वर्मा ‘द ग्रेट इंडियन मिडिल क्लास’ कहते हैं, उसमें भी कंजर्वेटिव होने के बावजूद बहुत सारी जगहों पर “अलग तरह के संबंधों” की स्वीकार्यता है। यही वजह है कि मिडिल क्लास में विवाहेतर संबंध कानाफूसी और गॉसिप तक ही सीमित रहते हैं। माना जाता है कि भारतीय दंपती एकनिष्ठ होते हैं और पश्चिमी देशों में विवाहेतर संबंध आम हैं जबकि वास्तविकता में देखा जाए तो ऐसा नहीं है। धार्मिक और सांस्कृतिक रूप से पश्चिमी देश भी उतने ही एकनिष्ठ दांपत्य के पक्षधर हैं, जितना कि भारतीय समाज। दूसरा भ्रम यह है कि भारतीय संस्कृति में विवाह से बाहर के संबंधों को मान्यता नहीं है, इसके उलट हमारी पौराणिक कहानियों से लेकर इतिहास तक में विवाहेतर संबंधों और बहुविवाह की खूब कहानियां प्रचलित हैं। द्रौपदी के पांच पति थे और कुंती की सभी संतानें अलग-अलग देवताओं से थीं।

मिथकों, लोक परंपराओं और समाज में विवाहेतर संबंधों की मौजूदगी के बावजूद भारतीय समाज ने एकनिष्ठ दांपत्य वाले राम को ही अपना आदर्श माना। बीते 20 साल में भारत अपनी जीवनशैली में तेजी से आधुनिक हुआ है और उसके समानांतर धार्मिक और पुनरुत्थानवादी उभार भी देखने को मिल रहे हैं। भारतीय संस्कृति की जो परिभाषाएं प्रस्तुत की जा रही हैं उनमें दर्शन या ऐतिहासिक प्रामाणिकता की जगह उसके ऐसे नतीजे निकालने पर जोर है जो समाज के कुछ वर्गों के हितों को प्रभावित न करें। इन सबके बीच यह देखना दिलचस्प होगा कि आने वाले दिनों में सामाजिक और राजनीतिक रूप से विरोधाभास में जीने वाले भारतीय स्‍त्री-पुरुषों का अंतरंग जीवन कैसा होगा।

भारतीय समाज के बदलते स्वरूप को दिखाने के लिए गाहे-बगाहे ऐसे कई सर्वेक्षण भी सामने आ जाते हैं जो बताते हैं कि भारतीय समाज में विवाहेतर संबंध का चलन जोर पकड़ रहा है। इन सर्वेक्षणों से कोई निष्कर्ष निकालना गलतफहमी से ज्यादा कुछ नहीं है क्योंकि जब कंपनियां ऑर्गेज्म या विवाहेतर संबंधों जैसे टॉपिक पर सर्वेक्षण कराती हैं तो आम तौर पर उनका मकसद ऐसी बहस को जन्म देना होता है जिसमें उनके अपने उत्पाद को चर्चा में लाने का मौका मिल जाए। लोग डेटिंग ऐप्स या वेबसाइट का इस्तेमाल बेशक कर रहे हैं, लेकिन यह सिर्फ उत्सुकता हो सकती है न कि किसी तरह की सामाजिक अराजकता। महिलाओं में भी उत्सुकता बहुत स्वाभाविक है। हम इसे ‘जेंडर बायस’ हो कर नहीं देख सकते। बेहतर होगा कि भारतीय समाज के बारे में कोई भी बात करने से पहले इस समाज की संरचना और पृष्ठभूमि पर समझदारी भरी नजर डाली जाए। तब वास्तविक रूप से यह समझ आएगा कि विविधताओं वाले समाज में सिर्फ यह कह देने भर से काम नहीं चलता कि “विवाहेतर संबंधों में उछाल देखने को मिल रहा है।”

दिनेश श्रीनेत

(लेखक और पत्रकार)

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TAGS: Extramarital Affairs, Dinesh Shrinet, Outlook Hindi
OUTLOOK 03 July, 2023
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