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06 June 2016

मेडिकल रिसर्च के लिए अपना ‘मंदिर’ दान कर गए ‘पॉकेट हरक्युलिस’

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वे  सचमुच मिस्टर यूनिवर्स थे। सिर्फ इसलिए नहीं कि उन्होंने बॉडी बिल्डिंग का विश्व खिताब जीता, बल्कि इसलिए भी कि सौ बरस से ज्यादा का जीवन उन्होंने पूरी तंदुरुस्ती के साथ जीया। ‘स्वास्थ्यवर्धक भोजन और नियमित व्यायाम,’ उनके जीवन का मंत्र था। एक मुकाम तक पहुंचने के बाद जहां ज्यादातर खिलाड़ी अपनी नियमित दिनचर्या से धीरे-धीरे नाता तोड़ लेते हैं वहीं आखिरी दिनों तक मनोहर आइच की दिनचर्या ज्यों की त्यों रही। देश की युवा पीढ़ी स्वस्थ और शक्तिशाली हो, यही उनकी इच्छा और उद्देश्य रहता था। जिससे भी मिलते यही कहते, रोजाना कसरत करो और उसे कभी मत छोड़ो।

मनोहर आइच का कद (4 फीट 11 इंच) भले ही छोटा था, लेकिन उनके इरादे विशाल और फौलादी थे। छोटे कद की वजह से उन्हें पॉकेट हरक्यूलिस के नाम से भी बुलाया गया। कम उम्र में ही उन्हें ताकत (जैसे कुश्ती और भारोत्तोलन) दिखाने वाले खेल भाने लगे थे। चालीस के दशक में उन्होंने बॉडी बिल्डिंग के बारे में गंभीरता दिखाई और 1952 में मिस्टर यूनिवर्स बन गये। विश्व खिताब जीतना किसी भी खिलाड़ी के लिए मंजिल हो सकता है लेकिन मनोहर आइच के लिए यह मात्र एक पड़ाव था। नई पीढ़ी कैसे स्वस्थ और शक्तिशाली बने, उन्होंने अपना जीवन इसीके लिए समर्पित कर दिया।

मनोहर आइच का जीवन बेहद साधारण रहा। कम उम्र में ही उन्हें रोजी-रोटी के लिए संघर्ष करना पड़ा। उन्होंने स्टंटमैन की तरह दांत से लोहे की छड़ें मोड़ने जैसे खेल दिखाने जैसे काम भी किए। रॉयल एयरफोर्स में फिजीकल इंस्ट्रक्टर के रूप में उन्होंने काम शुरू किया। बॉडी बिल्डिंग के प्रति लगाव भी बढ़ा। अंग्रेज अफसर उनकी लगन और समर्पण की तारीफ करते थे लेकिन एक अफसर ने भारतीयों के प्रति अपमानजनक टिप्पणी कर दी तो उन्हें सहन नहीं हुआ और अंग्रेज को तड़ाक से चांटा जड़ दिया। मनोहर आइच को जेल में डाल दिया गया। जेल में वह बिना किसी उपकरण के सारा दिन कसरत करते। कई बार तो वह दिन में 12-12 घंटे कसरत में लगा देते। 1950 में मनोहर आइच ने मिस्टर हरक्युलिस स्पर्धा जीती। अगले साल 1951 में इंग्लैंड में आयोजित मिस्टर यूनिवर्स स्पर्धा में मनोहर दूसरे स्थान पर रहे। मिस्टर यूनिवर्स बनने के लिए मनोहर ने लंदन में रहने का फैसला किया। संयोग से ब्रिटिश रेल में नौकरी मिलने से उनका संघर्ष थोड़ा आसान हो गया और अगले ही साल मिस्टर यूनिवर्स बनकर उन्होंने सबको हैरान कर दिया। मिस्टर यूनिवर्स स्पर्धा में उन्होंने बाद के सालों में भी हिस्सा लिया। एशियन चैंपियनशिप में वह तीन बार विजेता रहे।

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मनोहर आइच ने आर्थिक दिक्कतें भी झेलीं, लेकिन तनाव कभी नहीं पाला। हर हाल में खुश रहना उनका स्वभाव था। यही उनके लंबे जीवन का रहस्य भी रहा। ताउम्र वे साधारण खाने के हिमायती रहे। वे अकसर कहते थे, ‘थोड़ा सा नमक चावल खाना बल दोगुना करता है और ज्यादा चावल खाना रसातल में ले जाता है।’ दूध, फल और सब्जियां उनके आहार का हिस्सा रहतीं।

बॉडी बिल्डिंग को लोकप्रिय बनाने के लिए उन्होंने जी-जान एक कर दी। आठ बार के राष्ट्रीय चैंपियन सत्य पाल और मिस्टर यूनिवर्स प्रेमचंद डोगरा सहित उनके सैंकड़ों शिष्य हैं। पूर्व फुटबालर चुन्नी गोस्वामी ठीक ही कहते हैं,‘मनोहर आइच का जीवन क्या बूढ़े क्या जवान सबके लिए प्रेरणा का स्रोत है।’

   

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OUTLOOK 06 June, 2016
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