Advertisement
25 September 2015

बतरा के भगवा एजेंडे पर हरियाणा की स्कूली शिक्षा

ये तमाम किताबें सरस्वती वंदना से शुरू होती हैं। इनमें भारतीय संस्कृति का गुणगान करती कविताएं, कहानियां और श्लोक होंगे। इस बारे में जब आउटलुक ने बतरा से बात की तो उन्होंने कहा ‘मैं उम्मीद करता हूं कि गैर हिंदू इन किताबों का विरोध नहीं करेंगे। इनमें महापुरुषों की कहानियां, दोहे, चौपाइयां, कविताएं और प्रेरक प्रसंग हैं। नैतिकता के पाठ हैं जो हमें अच्छाई की ओर ले जाएंगे।’

 

इस बारे में दिल्ली विश्वविद्यालय में हिंदी के प्रोफेसर और आलोचक अपूर्वानंद कहते हैं ‘सवाल इन किताबों के अवैज्ञानिक होने का नहीं है बल्कि दीनानाथ की ये किताबें बेहद खराब ढंग से लिखी गई हैं। वर्ष 2005 में एनसीईआरटी के तत्वाधान में तय हुआ था कि स्कूली पाठ्यक्रम बदलते वक्त तीन चीजों का ध्यान रखा जाना चाहिए। उसमें विषय का आधुनिकतम शोध, ज्ञान का शोध और शिक्षा शास्त्रीय शोध जरूर से शामिल हो।’ अपूर्वानंद का कहना है कि स्कूली बच्चों को अलग से मूल्य शिक्षा दिए जाने का प्रस्ताव खारिज किया जा चुका है क्योंकि इसे लेकर देश में लंबी बहस है। बहस इस बात कि है कि ये मूल्य क्या हैं? ऐसे समाज में जहां इतने सारे धर्म हैं, विश्वास हैं वहां, कुरान, रामायण या बाईबल से मूल्य नहीं लिए जा सकते बल्कि हमें एक साथ रहने का मूल्य जिस संविधान से मिलता है हम वहां से ऐसे मूल्य लेंगे। इन किताबों को भी उस विषय के जानकार और विद्वान से लिखवाएंगे कि ज्ञान के मामले में यह विषय कहां तक पहुंच गए हैं और दीनानाथ बतरा न तो विद्धान हैं, न इस विषय के पंडित। अपूर्वानंद यह भी कहते हैं कि हरियाणा के गरीब स्कूली बच्चों के पास पढ़ने के लिए एकमात्र स्कूली किताबें हैं। इसलिए कम से कम वे तो अच्छी होनी चाहिए। गरीब बच्चे तो इनका विरोध भी नहीं कर पाएंगे। सरकार इन किताबों को अमीरों के निजी स्कूलों में लागू करके बताए।    

Advertisement

 

गौरतलब है कि बतरा हरियाणा के शिक्षा मंत्री रामबिलास शर्मा के प्रिंसीपल भी रहे हैं। बातचीत में बतरा ने बताया कि उन्होंने अपनी किताब में महापुरुषों में से राजा हरिशचंद्र, महात्मा बुद्ध, आर्य भट्ट आदि की कहानियां शामिल की हैं। जब उनसे पूछा गया कि किसी मुस्लिम महापुरुष की कहानी भी है तो उन्होंने जवाब दिया कि पूर्व राष्ट्रपति डॉ. अब्दुल कलाम का प्रेरक प्रसंग है। बतरा बताते हैं कि उनकी लिखी इन किताबों पर विवाद इसलिए हो सकता है, ‘विरोध किताबों का नहीं, मेरे नाम का है। मुझे बुक बैन मैन कहा जाता है। मेरा नाम संघ, हिंदुतत्ववादी और भगवा से जोड़ा जाता है।’

 

इस बारे में स्वराज आंदोलन के कनवीनर राजीव गोदारा कहते हैं कि ये किताबें राज्य को हिंदू और गैर हिंदू समुदाय में बांटने का काम करेंगी। वह नैतिकता कैसे हो सकती है जिसकी नींव हिंदुतत्व पर हो न कि राष्ट्रभक्ति, समता, न्याय और संविधान पर। इससे पहले हरियाणा के स्कूलों में गीता पढ़ाना जरूरी कर दिया गया था। नैतिकता से दूर रहकर नैतिकता की शिक्षा संभव ही नहीं। इन किताबों में बतरा की ही लिखी कविताएं हैं। गोदारा के अनुसार अगर नैतिकता की शिक्षा देनी है तो बाकायदा पैनल बनाया जाना चाहिए, जिसमें शिक्षाविद् हों।

 

बतरा के अनुसार उनकी किताबों में कहीं भी हिंदू शब्द का प्रयोग नहीं है। इनमें भारत, भारतीयता और संस्कृति की बात की गई है। सरस्वती वंदना से भी किसी को आपत्ति नहीं होनी चाहिए क्योंकि सरस्वती का एक-एक अंग गुण है। जैसे सरस्वती के सिर पर चांद, शीतलता और शांति का प्रतीक है। वीणा की तीन तारें ज्ञान, भावना और प्रिया का प्रतीक हैं, हंस अच्छाई और बुराई का प्रतीक है। इसलिए सरस्वती को देवी के रूप में नहीं देखा जा सकता।       

अब आप हिंदी आउटलुक अपने मोबाइल पर भी पढ़ सकते हैं। डाउनलोड करें आउटलुक हिंदी एप गूगल प्ले स्टोर या एपल स्टोरसे
TAGS: आरएसएस, दीनानाथ बतरा, RSS, Deenanath batra
OUTLOOK 25 September, 2015
Advertisement