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10 February 2015

'आप' की जीत से बदली देश की सियासत

पीटीआई

दिल्‍ली के विधानसभा चुनाव में 70 में से 67 सीटों पर आम आदमी पार्टी की विशाल जीत भविष्य में पूरी भारतीय राजनीति की दिशा बदल सकती है। यह अस्वाभाविक नहीं है कि दिल्‍ली चुनाव के नतीजे आने शुरू होने के तत्काल बाद पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने इन नतीजों को भविष्य का संकेत करार दिया।

इन नतीजों के बाद पूरे देश में गैर भाजपा, गैर कांग्रेस दलों का गठजोड़ और जनता परिवार के एकीकरण की प्रक्रिया और तेज होगी। इन नतीजों का तात्कालिक असर तो यही होगा कि मोदी और अमित शाह की लगातार जीत से पस्त पड़े गैर कांग्रेसी विपक्ष में जान पड़ जाएगी और यह इसी वर्ष बिहार में होने वाले चुनावों में नजर आ सकता है।

खुद ममता बनर्जी जो अबतक इस तरह के एकीकरण प्रयास से दूरी बनाए हुई थीं अब इसमें शामिल हो सकती हैं क्योंकि सवा साल बाद बंगाल में भी विधानसभा चुनाव होने हैं और वहां ममता को इस बार मुख्य रूप से मोदी और शाह की जोड़ी से भिड़ना है। हालांकि एक उम्मीद है कि दिल्ली में ‘आप’ की जीत से बंगाल में वामपंथी दलों को भी संजीवनी मिल सकती है।

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इस जीत ने इतना तो साफ कर ही दिया है कि भाजपा की यह जोड़ी अजेय नहीं है और जैसे-जैसे केंद्र सरकार के दिन आगे बढ़ेगे उससे पार पाना भी आसान होता जाएगा।

आम आदमी पार्टी की यह जीत दूसरे राज्यों में क्या असर दिखाती है यह तो भविष्य बताएगा मगर अभी यह देखना भी दिलचस्प होगा कि विपक्षी एका को लेकर उसका क्या रुख रहता है। पार्टी का स्थापित रुख यही रहा है कि वह मुख्यधारा के राजनीतिक दलों के खिलाफ खड़ी होगी और किसी से गठजोड़ नहीं करेगी। बिहार में जिस गठबंधन में लालू प्रसाद होंगे उसका समर्थन करना पार्टी के लिए मुश्किल होगा क्योंकि लालू भ्रष्टाचार के मामले में अदालत से सजायाफ्ता हैं। लेकिन इतना तय है कि अब पंजाब, महाराष्ट्र, केरल आदि राज्यों में जहां ‘आप’ का पहले से कुछ जनाधार है वहां पार्टी खुलकर अपने पत्ते खेलने की स्थिति में आ चुकी है।

चुनाव नतीजों ने दिल्ली में कांग्रेस को अप्रासंगिक कर दिया है और अगर पार्टी ने जल्द कुछ नहीं किया तो दूसरे राज्यों में भी आम आदमी पार्टी उसकी जगह लेने की पूरी कोशिश करेगी। लगातार 15 साल दिल्ली की सत्ता पर काबिज रही पार्टी का यह हाल दुखद है। साल 2013 के विधानसभा चुनाव में 24 फीसदी से ज्यादा वोट पाने वाली कांग्रेस को इन चुनावों में महज 9 फीसदी से कुछ अधिक वोट मिले हैं और उसका बाकी सारा वोट आप को चला गया। यही हाल बसपा तथा अन्य छो‌टी पार्टियों का भी हुआ है। पिछले चुनाव के 13 फीसदी के मुकाबले इस साल उन्हें सिर्फ 3 फीसदी से कुछ अधिक वोट मिले हैं। यह सारा वोट भी आप को ही मिला है। भाजपा को पिछले चुनाव में 33 फीसदी के करीब मत मिले थे और इस बार भी पार्टी को उससे करीब आधा फीसदी मत कम मिले हैं। सबसे अधिक करीब 55 फीसदी मत ‘आप’ को मिले हैं।

‘आप’ की जीत कितनी बड़ी है इसे इस तथ्य से समझा जा सकता है कि विजेंद्र गुप्ता को छोड़कर भाजपा के सभी दिग्गज धराशायी हो गए। खुद मुख्यमंत्री पद की उम्मीदवार किरण बेदी और दूसरे बड़े नेता जगदीश मुखी चुनाव हार गए। पार्टी को महज तीन सीटों पर जीत मिली जिसमें से एक सीट रोहिणी से विजेंद्र गुप्ता की है। दो अन्य सीटों में से एक सीट मुस्तफाबाद की है जहां कांग्रेस और आम आदमी पार्टी के मुस्लिम उम्मीदवारों की टक्कर में भाजपा के जगदीश प्रधान चुनाव जीतने में कामयाब रहे। पार्टी को तीसरी सीट विश्वास नगर की मिली है जहां ओम प्रकाश शर्मा को जीत मिली है। इन नतीजों में एक दिलचस्प तथ्य यह है कि 70 में से 67 सीटें जीतने वाली आम आदमी पार्टी मुस्तफाबाद की सीट पर मुख्य मुकाबले में भी नहीं रही। यहां जगदीश प्रधान ने कांग्रेस उम्मीदवार हसन अहमद को हराया। आप यहां तीसरे नंबर पर रही।

आप के कई उम्मीदवारों ने 50 हजार से ज्यादा वोटों से जीत दर्ज की है। खुद पार्टी के मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार अरविंद केजरीवाल 31 हजार से अधिक वोटों से जीते हैं। विकासपुरी से आप के उम्मीदवार महिंदर यादव ने 68126 वोटों के अंतर से जीत दर्ज की जबकि सुलतानपुर माजरा से पार्टी के उम्मीदवार संदीप कुमार 64439 वोटों से जीते। देवली से पार्टी प्रत्याशी प्रकाश ने करीब 64 हजार वोटों से जीत दर्ज की है।

 

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TAGS: चुनाव, दिल्ली, केजरीवाल, असर, भाजपा, मोदी
OUTLOOK 10 February, 2015
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