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09 August 2017

भाजपा और कांग्रेस के लिए क्यों इतनी अहम बन गई अहमद पटेल की हार-जीत

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तीन सीटों पर हुए राज्यसभा चुनाव में से 2 सीट भाजपा को मिली। अमित शाह और स्मृति ईरानी का जीतना तय माना जा रहा था लेकिन जिस एक सीट को जीतने के लिए सस्पेंस बना हुआ था और जिसे भाजपा हर हाल में जीतना चाहती थी, वह भाजपा के पास आते-आते रह गयी। इस सीट पर अहमद पटेल ने बलवंत सिंह राजपूत को शिकस्त दी।

अहमद पटेल लगातार 5वीं बार राज्यसभा पहुंचे हैं। इस चुनाव में कुल 176 वोट पड़े थे, जिनमें से 2 वोट रद्द होने के बाद 174 मतों की मतगणना की गई। अहमद पटेल ने 44 वोट हासिल कर जीत दर्ज की। अगर चुनाव आयोग दो वोट रद्द ना करता, तो अहमद पटेल को जीतने के लिए 45 वोट चाहिए थे। एक क्रॉस वोटिंग के बाद उनके लिए यह जीत मुश्किल हो जाती।

इधर भाजपा इसलिए भी अहमद को राज्यसभा में जाने से रोकना चाहती है ताकि आजादी के छह दशकों के बाद कांग्रेस के रिकॉर्ड को तोड़कर राज्यसभा में भाजपा सबसे बड़ी पार्टी के रूप में स्थापित हो जाए। अभी पिछले दिनों उच्च सदन में भाजपा के 58 सांसद हो गए। वहीं कांग्रेस के राज्य सभा में 57 सांसद थे। मगर इस पूरे मामले से यह पता चलता है कि अहमद पटेल कांग्रेस के लिए कितने मायने रखते हैं क्योंकि कांग्रेस उन्हें हर हाल में राज्य सभा पहुंचाना चाहती थी।

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कांग्रेस के चाणक्य

अहमद भाई पटेल कांग्रेस के कद्दावर नेता माने जाते हैं। उनके बारे में कहा जाता है कि वो कांग्रेस के भीतर से लेकर बाहर दूसरे दलों तक सबकी नब्ज पहचानते हैं। कभी राजीव गांधी के करीबी रहे अहमद पटेल आज सोनिया गांधी के राजनीतिक सलाहकार हैं। उन्हें कांग्रेस का चाणक्य भी कहा जाता है।

सियासी सफर की शुरुआत

अहमद पटेल का मुख्यधारा का राजनीतिक सफर शुरू होता है 1977 में। 26 साल का एक नौजवान भरुच लोकसभा सीट से संसद पहुंचा था। 1975 में इमरजेंसी के बाद हुए चुनाव में, जिसमें इंदिरा गांधी खुद रायबरेली से चुनाव हार गई थीं, उस समय इस नौजवान का गुजरात में कांग्रेस के टिकट पर अपनी सीट बचा ले जाना बड़ी बात थी। अहमद पटेल 1977 से 1982 तक गुजरात की यूथ कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष रहे।

राजीव से सोनिया तक

राजीव गांधी के दौर में कांग्रेस को युवाओं तक ले जाने का जिम्मा अहमद पटेल का ही था। राजीव गांधी उन्हें मंत्री भी बना चाहते थे लेकिन अहमद पटेल संगठन का काम देखना चाहते थे। सितंबर 1983 से दिसंबर 1984 तक उन्हें ऑल इंडिया कांग्रेस कमेटी का जॉइंट सेक्रेटरी बनाया गया। 1985 में जनवरी से सितंबर तक वे प्रधानमंत्री राजीव गांधी के संसदीय सचिव रहे।

1991 में जब नरसिम्हा राव प्रधानमंत्री बने तो अहमद पटेल को कांग्रेस वर्किंग कमेटी का सदस्य बनाया गया, जिसके वो आज भी सदस्य हैं। 1996 में पटेल ऑल इंडिया कांग्रेस कमेटी के कोषाध्यक्ष बने। 2000 में सोनिया गांधी के निजी सचिव वी जॉर्ज से मतभेद के चलते उन्होंने यह पद छोड़ दिया था। बाद में 2001 में सोनिया गांधी के राजनीतिक सलाहकार बन गए।

दूसरा सबसे प्रभावशाली नेता

2004 और 2009 के लोकसभा चुनावों में यूपीए को जीत दिलाने में उनकी बड़ी भूमिका रही हालांकि उन्होंने खुद चुनाव ना लड़ने का फैसला किया। मनमोहन सिंह सरकार के कई अहम फैसलों में उनकी बड़ी भूमिका रही। कहा जाता है कि सोनिया गांधी तब भी उनसे बात किए बगैर कोई अहम फैसला नहीं लेती थीं। इसीलिए उन्हें कांग्रेस में गांधी परिवार के बाद दूसरा सबसे प्रभावशाली नेता माना जाता है।

गुजरात की राजनीति में दखल

गुजरात की राजनीति में अहमद पटेल अच्छा खासा दाखला रखते हैं। अमित शाह से उनसे लड़ाई पुरानी है, जो इस बार के राज्य सभा चुनाव में भी देखने को मिली। गुजरात में पटेल वोट बैंक को भाजपा से खींचने में भी उनका ही दिमाग है। नरेंद्र मोदी कभी उन्हें अपना अच्छा दोस्त बताते थे लेकिन राजनीतिक विरोध की वजह से अहमद पटेल ने मोदी से दूरी बना ली। अहमद पटेल एहसान जाफरी के बाद गुजरात के ऐसे दूसरे मुस्लिम नेता हैं ,जो लोकसभा के लिए राज्‍य से चुने गए थे। एहसान जाफरी की 2002 के दंगों के दौरान हत्या कर दी गई थी।

फैमिली मैन

अहमद पटेल ने 1976 में मेमूना अहमद से शादी की। उनके एक बेटा और एक बेटी है जो राजनीति से दूर हैं। अहमद पटेल खुद भी मीडिया की चमक-दमक से दूरी बनाकर रखते हैं। चुपचाप काम करते हैं।

‘क्राइसिस मैनेजर’ की राज्य सभा में वापसी

जब भी कांग्रेस को बड़े संकट से उबारना हो, लोग अहमद पटेल की तरफ देखते हैं इसीलिए अहमद कांग्रेस के लिए 'क्राइसिस मैनेजर' का काम करते हैं। अहमद पटेल 1993 से राज्यसभा सदस्य हैं। इस बार कांटे की टक्कर के बाद राज्य सभा पहुंचने के बाद कांग्रेस ने राहत की सांस ली होगी।

 

 

 

 

 

 

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TAGS: Ahmed Patel, defeat, victory, important, BJP, Congress
OUTLOOK 09 August, 2017
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