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15 June 2021

उत्तर प्रदेश : दिल्ली का रास्ता लखनऊ से, जानें- मोदी-शाह-योगी क्या बना रहे हैं रणनीति

File Photo

उत्तर प्रदेश हिंदुत्व का हृदय है। पूरे देश में फैले भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के राजनैतिक साम्राज्य का शुभंकर है। यह राजनीतिक लड़ाई में पार्टी का प्रयोग स्थल है, तो गवर्नेंस का गुटका भी। उत्तर प्रदेश चार साल पहले पूरे देश में चर्चा में आए  तेजतर्रार नेता योगी आदित्यनाथ का भी मैदान है। यह भाजपा और मुख्यमंत्री योगी के लिए 2022 में चुनावी समर की भी स्थली है। लेकिन 2022 की चर्चा से पहले हमें मई 2021 में भी जाना चाहिए, जब पश्चिम बंगाल में विधानसभा चुनाव के नतीजे आए थे। देश के इस पूर्वी राज्य में भाजपा का पूरा अमला ममता बनर्जी को तीसरी बार सत्ता में आने से नहीं रोक पाया। भाजपा के लिए यह हार इतनी संघातक थी कि केंद्र और राज्यों में पार्टी के भविष्य को लेकर सवाल उठने लगे। लेकिन उत्तर प्रदेश पश्चिम बंगाल नहीं, और न ही योगी ममता हैं। आलोचक उन्हें स्वेच्छाचारी और ध्रुवीकरण की छवि वाला बताते हैं, फिर भी भाजपा के कट्टर मतदाताओं में योगी की अपील मानो दिनोंदिन बढ़ती जा रही है। हर फैसले के साथ उनपर लोगों का भरोसा बढ़ रहा है, भले ही उनके खिलाफ जितनी छींटाकशी हो। अनेक लोग मानते हैं कि योगी का विवादों से रिश्ता शाश्वत है। वे लोगों में निष्ठा जगाते हैं, तो शत्रुता भी। यह इस बात पर निर्भर करता है कि सामने वाला व्यक्ति किस तरफ है। विधानसभा चुनाव से पहले वे भाजपा के सबसे योग्य दावेदार नजर आ रहे हैं। उन्हें न सिर्फ अपने विकास के एजेंडे, बल्कि तेजतर्रार हिंदुत्व नेता की छवि का भी फायदा मिल सकता है।

उत्तर प्रदेश का चुनावी मैदान भाजपा के लिए अपेक्षाकृत आसान है। यहां स्थानीय नेतृत्व की कमी नहीं है। पश्चिम बंगाल में पार्टी कोई ऐसा नेता तैयार नहीं कर सकी जो तृणमूल कांग्रेस की ‘दीदी’ को टक्कर दे सके। लेकिन उत्तर प्रदेश में भाजपा की हिंदुत्व की राजनीति के पोस्टर बॉय योगी ने खुद सामने आकर मोर्चा संभाल रखा है। आलोचक योगी के प्रशासन को जमीन से कटा हुआ मानते हैं, आरोप यह भी लगते हैं कि योगी प्रशासन किसी समस्या से बाहर निकलने के लिए गैर कानूनी तरीके अख्तियार करने से भी नहीं पीछे नहीं रहता। जैसे गैंगस्टर विकास दुबे की हत्या, हाथरस में बलात्कार पीड़िता दलित लड़की का रातों-रात अंतिम संस्कार। लेकिन उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री, जो संभवतः प्रधानमंत्री के बाद सर्वाधिक शक्तिशाली पद है, के प्रशंसक भी कम नहीं।

“लोग अभी योगी से नाराज हो सकते हैं, लेकिन यह नहीं कहा जा सकता कि अगले साल चुनाव तक वे नाराज ही रहेंगे”

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राजनीतिक टीकाकार और अर्थशास्त्री नवल किशोर चौधरी आउटलुक से कहते हैं, “योगी ने निस्संदेह स्वयं को बढ़िया प्रशासक साबित किया है। पहले उनके बारे में लोगों की राय अच्छी नहीं थी। मैं भी सोचता था कि वे उत्तर प्रदेश जैसे विशाल राज्य को संभाल नहीं पाएंगे। लेकिन उनके काम को देखते हुए अब लगता है कि मौजूदा परिस्थितियों में वे पार्टी के सबसे अच्छे दावेदार हैं। अतीत में इंदिरा गांधी और वर्तमान में ममता बनर्जी की तरह फैसलाकुन होना भारतीय राजनीति को सुहाता है। मुझे लगता है कि योगी में भी वह तत्व है।”

महामारी के दृश्यः अस्पताल में इलाज का इंतजार करते कोविड-19 के मरीज

चार साल पहले लोगों को योगी से इतनी उम्मीदें नहीं थीं। 2017 में विधानसभा चुनाव के दौरान पार्टी ने किसी को भी मुख्यमंत्री पद का दावेदार घोषित करने से परहेज किया था। चुनाव में 403 सीटों में से 312 सीटें जीतने के बाद ही पार्टी ने गोरखपुर के सांसद और गोरखनाथ मठ के योगी आदित्यनाथ को गुड गवर्नेंस का सपना साकार करने की जिम्मेदारी सौंपने का फैसला किया। यह जानबूझकर खेला गया जुआ था जिस पर राजनीतिक हलकों में शुरू में काफी संशय था। योगी तब तक गोरखपुर से लगातार पांच बार लोकसभा सांसद रह चुके थे, लेकिन उनका कोई प्रशासनिक अनुभव नहीं था। उनकी छवि बस भाजपा के हिंदुत्व ब्रिगेड के एक नेता के रूप में थी। आज उनकी वह छवि तो बरकरार है ही, उनके समर्थक यह भी दावा करते हैं कि उन्होंने उत्तर प्रदेश के विकास को फास्ट ट्रैक पर लाकर योग्य प्रशासक की छवि भी बनाई है। उन्होंने लीक से हटकर ‘एक जिला एक उत्पाद’ जैसी योजना शुरू की।

चाहे अपराध और भ्रष्टाचार के प्रति जीरो टॉलरेंस की नीति हो, इन्फ्रास्ट्रक्चर का विकास हो या किसानों, युवाओं और महिलाओं की हालत सुधारना हो, वे हमेशा उत्तर प्रदेश के विकास की नई गाथा लिखते नजर आए। दीनदयाल उपाध्याय गोरखपुर विश्वविद्यालय में एसोसिएट प्रोफेसर निखिलकांत शुक्ला 1998 में योगी के संसदीय क्षेत्र में बाढ़ के बाद उनके कार्यों को याद करते हुए कहते हैं, “वे उस समय युवा और अनुभवहीन थे, फिर भी उन्होंने बाढ़ ग्रस्त इलाकों में राहत के लिए चौबीसों घंटे काम किया। उनके काम करने की शैली बदली नहीं है। मुख्यमंत्री के रूप में भी वे उसी जोश और प्रतिबद्धता के साथ कोविड-19 संकट के दौरान काम करते नजर आए।”

महामारी के दृश्यः घर-घर टीकाकरण अभियान

लेकिन राजनीतिक रूप से अप्रत्याशित परंतु महत्वपूर्ण उत्तर प्रदेश में, जहां जाति आज भी बड़ा महत्व रखती है, न तो भाजपा न ही योगी आने वाले महीनों में आराम से बैठ सकते हैं। यह सच है कि उत्तर प्रदेश में सात वर्षों से लगातार भाजपा का दबदबा है। 2014 और 2019 के लोकसभा चुनावों में पार्टी को बड़ी जीत मिली। पार्टी 2017 में 16 साल बाद प्रदेश में सत्ता में लौटी। चुनाव दर चुनाव पार्टी अपने मुख्य विरोधियों समाजवादी पार्टी, बहुजन समाज पार्टी और कांग्रेस को दरकिनार करती हुए मजबूत होती गई। लेकिन कहते हैं कि हर चुनाव अपने आप में अलग होता है।

हाल के दिनों में सिर्फ पश्चिम बंगाल में भाजपा को हार का सामना नहीं करना पड़ा, उत्तर प्रदेश पंचायत चुनाव में भी अयोध्या, मथुरा और गोरखपुर जैसे पारंपरिक रूप से मजबूत इलाकों में पार्टी के प्रत्याशी हार गए। केंद्र सरकार के तीन कृषि कानूनों के चलते पश्चिमी उत्तर प्रदेश में छह महीने से सत्तारूढ़ पार्टी के खिलाफ असंतोष बढ़ रहा है। इस आंदोलन ने जाटों और मुसलमानों को भी मिला दिया है। 2017 के विधानसभा चुनाव में जाटों ने भाजपा का समर्थन किया था, लेकिन नए कृषि कानूनों के चलते वे पार्टी के खिलाफ हो गए हैं। मुसलमान आम तौर पर भाजपा के विरोधी के साथ जाते हैं, इसलिए योगी को उन सभी जाति और समुदाय के वोटों को बिखरने से रोकना है जो पिछले चुनाव में उनके साथ थे। उन्हें ऐसा सोशल इंजीनियरिंग फॉर्मूला तैयार करना पड़ेगा जिससे गैर-जाटव दलित और गैर-यादव अन्य पिछड़ा वर्ग का वोट मिल सके। इसके अलावा ब्राह्मण और ठाकुर समर्थकों को भी टूटने से रोकना पड़ेगा।

अस्पताल का मुआयना करते मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ

बिखरे विपक्ष को देखते हुए योगी फिलहाल चैन की सांस ले सकते हैं। प्रदेश के 19 फीसदी मुस्लिम मतदाता अगर भाजपा के खिलाफ एकजुट हुए तो मुश्किल हो सकती है, लेकिन एनडीए के खिलाफ अनेक पार्टियां हैं। असदुद्दीन ओवैसी के एआइएमआइएम के आने से मुस्लिम वोटों के भी बंटने के आसार हैं। फिलहाल तो कोरोना की दूसरी लहर का अंजाम ही योगी का सबसे बड़ी विरोधी लग रहा है। इसने प्रदेश के हजारों लोगों को अपना शिकार बना लिया।

कोरोना निगेटिव होते ही योगी फील्ड विजिट करने लगे। 18 मंडल और 40 जनपदों का दौरा करके महामारी को नियंत्रित किया

विधानसभा चुनाव से पहले अब यह सवाल उठने लगा है कि क्या कोविड पीड़ित लोग अब भी भाजपा को वोट देंगे? क्या योगी के नेतृत्व में भाजपा फिर से जीत हासिल कर सकेगी? 2014 के संसदीय चुनावों में भाजपा को प्रदेश की 80 में से 71 सीटें मिली थीं, लेकिन 2014 में जब सपा और बसपा ने हाथ मिलाया तो भाजपा की सीटों की संख्या घटकर 62 रह गई। पर चुनावी नतीजे हमेशा चौंकाने वाले होते हैं। 2017 के विधानसभा चुनाव में अखिलेश यादव ने कांग्रेस के साथ हाथ मिलाया था, फिर भी वे भाजपा को बड़ी जीत दर्ज करने से नहीं रोक पाए।

विपक्ष तो विभाजित है, लेकिन अगर जाट और मुसलमान कृषि कानूनों पर साथ हुए तो योगी की मुश्किल बढ़ सकती है

ऐसा लगता है कि 2022 का विधानसभा चुनाव विपक्षी पार्टियां अलग-अलग लड़ेंगी और सबके निशाने पर योगी सरकार होगी, जिस पर कोविड-19 महामारी के दौरान कुप्रबंधन का आरोप है। लेकिन योगी बेफिक्र हैं। वे आउटलुक से कहते हैं, “भाजपा सरकार अपने कामकाज के दम पर प्रदेश में फिर सत्ता में लौटेगी। पार्टी यहां बार-बार जीत हासिल करेगी, सिर्फ भाजपा यहां रहेगी।” इस दौरान वे खुद भी कोरोना से संक्रमित हो गए। इसके बावजूद लगातार वर्चुअल बैठकें करके स्थिति की समीक्षा करते थे। जिस दिन उनकी कोरोना रिपोर्ट निगेटिव आई, उसके अगले दिन से उन्होंने हालात का जायजा लेने के लिए दौरे करना शुरू कर दिया। उन्होंने 18 मंडल और 40 जनपदों का दौरा किया। गांवों में जाकर भी कोरोना संक्रमित लोगों से बात की। कोविड अस्पताल और इंटीग्रेटेड कंट्रोल रूम का भी जायजा लिया। इससे स्थिति को नियंत्रण में लाने में मदद मिली। उनके इन दौरों का असर यह रहा कि एक समय तीन लाख 10 हजार मामले थे, वे एक सप्ताह में घटकर 50 हजार रह गए। रोजाना संक्रमित की संख्या भी 38 हजार से घटकर आठ हजार रह गई। मुख्यमंत्री बनने के बाद भी उन्होंने एक साल के भीतर प्रदेश के 75 जिलों का दौरा किया था। ऐसा करने वाले वे पहले मुख्यमंत्री हैं।

योगी कहते हैं कि भाजपा उनके मौजूदा कार्यकाल पर ही नहीं, बल्कि अगले 5-10-15 साल के रोड मैप पर काम कर रही है। उनका यह भरोसा उनकी सरकार के समय शुरू की गई परियोजनाओं के कारण है। उनका दावा है कि उनके शासन के पहले चार वर्षों में उत्तर प्रदेश की अर्थव्यवस्था 10.90 लाख करोड़ रुपये से बढ़कर 21.73 लाख करोड़ की हो गई और यह देश में दूसरे नंबर पर है। प्रदेश ने 2.25 लाख करोड़ के निवेश प्रस्ताव आकर्षित किए हैं और ईज ऑफ डूइंग बिजनेस इंडेक्स में 12 पायदान चढ़कर देश में दूसरे नंबर पर आ गया है। एक्सप्रेस वे का नेटवर्क, नए एयरपोर्ट, ग्रामीण इलाकों में मेडिकल कॉलेज, ग्रेटर नोएडा में मेगा फिल्म सिटी प्रोजेक्ट- योगी अपने रिपोर्ट कार्ड की अनेक उपलब्धियां गिनाते हैं।

विपक्ष उनके दावे खारिज करता है। प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष अजय कुमार लल्लू कहते हैं, “योगी सरकार होर्डिंग्स के जरिए वे उपलब्धियां गिना रही है जो इसने कभी हासिल की ही नहीं। निवेश के दावे सरासर गलत हैं, किसान परेशान हैं और इस सरकार के कार्यकाल में कम से कम 850 किसान खुदकुशी कर चुके हैं। बेरोजगारी दर दोगुनी हो गई है, छोटे कारोबारी मुश्किल में हैं। यही हकीकत है।”

प्रदेश के पूर्व मंत्री और समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय सचिव राजेंद्र चौधरी भी इन बातों से सहमत हैं। वे कहते हैं, “यह पहली सरकार है जो पिछली सरकारों के परियोजनाओं को नया नाम देकर बेशर्मी से उन्हें अपना बता रही है। अलग धर्मों के बीच शादियां रोकने के लिए कानून बनाकर इस सरकार ने सामाजिक ताने-बाने को कमजोर किया है और संविधान की आत्मा की अनदेखी की है। नफरत के एजेंडे को आगे बढ़ाने के सिवाय योगी सरकार ने और कुछ नहीं किया।”

आलोचनाओं के बावजूद योगी अपने फैसलों पर अटल रहे हैं, भले वे कितने ही विवादास्पद रहे हों। एंटी रोमियो स्क्वाड, गोरक्षा अभियान, अवैध बूचड़खाने बंद करवाना, अलग धर्मों के बीच शादियां रोकना और माफिया की अवैध संपत्ति जब्त करना, इन सब फैसलों से लोगों की भृकुटी तनी है। विपक्ष ने उन पर महिलाओं की सुरक्षा के लिए पर्याप्त कदम न उठाने का आरोप लगाया है। ‘हत्याएं’ करने के लिए पुलिस को संविधानेतर अधिकार देने पर सवाल भी उठाए हैं, लेकिन योगी अपने फैसले पर अटल हैं। वे कहते हैं, “मेरा हर फैसला राज्य के हित में है। मैं प्रदेश के 24 करोड़ लोगों के कल्याण के लिए प्रतिबद्ध हूं। उनकी सुरक्षा और संपन्नता मेरी जिम्मेदारी है।”

उनकी सबसे बड़ी चुनौती कोविड-19 महामारी की दूसरी लहर के दौरान आई। अचानक संक्रमण के बढ़ते मामले स्वास्थ्य सिस्टम पर भारी पड़ने लगे। समस्या तब और गंभीर हो गई जब मेडिकल ऑक्सीजन और जीवन रक्षक दवाओं की कमी होने लगी और लोग मरने लगे। पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने सरकार के नेतृत्व में बदलाव की मांग कर डाली। उन्होंने ट्वीट किया, “गंगा में बहती लाशें सिर्फ लाशें नहीं, वे किसी के पिता, किसी की मां, किसी के भाई और किसी की बहन थीं। जो हुआ वह आपको भीतर से हिला देने वाला है। इसकी जिम्मेदारी तय होनी चाहिए।” बसपा नेता मायावती ने यूपी सरकार पर कोविड-19 से होने वाली मौत के आंकड़ों में हेराफेरी का आरोप लगाया। उन्होंने ट्वीट किया, “ग्रामीण इलाकों में कोरोना तेजी से फैल रहा है और बड़ी संख्या में लोगों की मौत हो रही है। लोग किसी तरह परिजनों के शवों का अंतिम संस्कार कर रहे हैं। सरकार को ऐसे परिवारों की मदद करनी चाहिए।” विपक्ष को लगता है कि मुख्यमंत्री के रूप में योगी के दिन अब थोड़े ही बच गए हैं। राजेंद्र चौधरी कहते हैं, “हाल के पंचायत चुनाव संकेत हैं कि लोग भाजपा से नाराज हैं। कोविड के दौरान सरकार की नाकामियों का खमियाजा आम लोगों को भुगतना पड़ा। 2022 के चुनाव में वे भाजपा के दावों से बेवकूफ नहीं बनाने वाले।”

लेकिन मुख्यमंत्री योगी का दावा है कि उनकी सरकार ने 3टी (टेस्ट, ट्रेस, ट्रीट) फॉर्मूले से कोविड को जल्दी नियंत्रित कर लिया। वे कहते हैं, “यह सच है कि दूसरी लहर भयानक थी। इस भयावहता के लिए हम तैयार नहीं थे। फिर भी हमने स्थिति को बेकाबू नहीं होने दिया। हमारी नीति को विशेषज्ञों ने भी सराहा है।”

योगी इस आरोप को भी नकारते हैं कि ऑक्सीजन की कमी से प्रदेश में अनेक लोगों की मौत हुई। वे कहते हैं, “प्रदेश में ऑक्सीजन की कमी से एक भी व्यक्ति की जान नहीं गई।” दूसरी लहर के समय गंगा के किनारे अनेक लाशें पाई गई थीं। मुख्यमंत्री के अनुसार यह दशकों पुरानी परंपरा है। कुछ ग्रामीण अपने परिजनों के शवों का दाह संस्कार नहीं करते। उन्हें नदी में बहा देते हैं या नदी के तट पर दफनाते हैं। हां, यह सच है कि यह प्रथा ईकोसिस्टम के खिलाफ है।

सामाजिक कार्यकर्ता और पूर्व वैज्ञानिक हरमेश सिंह चौहान मानते हैं कि योगी हालात से निपटना अच्छी तरह जानते हैं। उनके अनुसार, “कोविड-19 से मारे गए लोगों के परिजन अस्पतालों और दुकानों में दवा, ऑक्सीजन और दूसरी जरूरी चीजों की जमाखोरी से काफी नाराज थे, लेकिन सरकार ने त्वरित कार्रवाई करके स्थिति को नियंत्रण में कर लिया। अब हालात काफी बेहतर हैं। जनता सब कुछ देखती है और योगी सरकार के प्रति उसकी सहानुभूति है, क्योंकि पिछली सरकारों की तरह यह अपनी जेब नहीं भर रही है।”

फिर भी इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता कि महामारी की दो लहरों ने योगी के विकास एजेंडा को पटरी से उतार दिया है। मार्च 2020 में जब महामारी शुरू हुई, तब राज्य में कोई जांच की सुविधा नहीं थी। मरीजों को दिल्ली के सफदरजंग अस्पताल और नमूनों को जांच के लिए पुणे स्थित नेशनल इंस्टीट्यूट आफ वायरोलॉजी में भेजने के सिवाय कोई चारा नहीं था। देशव्यापी लॉकडाउन के समय प्रदेश लौटने वाले लाखों प्रवासी मजदूर अलग ही चुनौती थे। मुख्यमंत्री को अपने शासनकाल का लंबा समय, करीब 15 महीने इस संकट से निपटने में बिताना पड़ा। क्या ये सब बातें चुनाव के दौरान मायने रखेंगी?

राजनीतिक विश्लेषक जेपी शुक्ला मानते हैं कि लोग निजी क्षति के कारण इस समय योगी सरकार से नाराज हो सकते हैं, लेकिन यह नहीं कह सकते कि अगले साल होने वाले चुनाव तक वे नाराज ही रहेंगे। वे कहते हैं, “मुख्यमंत्री हर जिले का दौरा कर रहे हैं और ग्रामीण इलाकों में खुद लोगों से मिल रहे हैं। ऐसे समय जब लोग नाराज हैं, उनका लोगों से इस तरह मिलना 2022 में काफी असरदायक होगा।” समाजशास्त्री प्रो. बीएन मिश्रा मानते हैं कि उत्तर प्रदेश का अगला चुनाव पूरी तरह योगी पर केंद्रित होगा। वे कहते हैं, “2022 में उन्हें कुछ चुनौतियों का सामना करना पड़ सकता है, क्योंकि कई बार विपक्ष को सरकार की गलतियों का फायदा मिलता है। फिर भी योगी फैक्टर मायने तो रखेगा।” जो भी हो, अगला विधानसभा चुनाव अन्य बातों की तुलना में योगी के कामकाज पर जनमत संग्रह हो सकता है। इसका असर प्रदेश से बाहर की राजनीति पर भी पड़ेगा।

 

योगी सरकार के अहम फैसले

एंटी रोमियो स्क्वाड

2017 में मुख्यमंत्री बनने के बाद योगी आदित्यनाथ ने महिलाओं से छेड़खानी रोकने के लिए एंटी रोमियो स्क्वाड का गठन किया, लेकिन जल्दी ही इसे लेकर विवाद शुरू हो गया। पुलिस पर सार्वजनिक जगहों पर जोड़ों को परेशान करने के आरोप लगने लगे

एंटी लव जिहाद कानून

योगी सरकार ने विवादास्पद उत्तर प्रदेश अवैध धर्म परिवर्तन निषेध अधिनियम 2020 को लागू किया। इसे एंटी लव जिहाद कानून भी कहा जाता है। अब शादी के लिए धर्म परिवर्तन करने से पहले जिला मजिस्ट्रेट की स्वीकृति जरूरी है

अवैध निर्माण गिराना

योगी सरकार ने उत्तर प्रदेश गैंगस्टर एवं असामाजिक गतिविधि निषेध कानून 1986 में संशोधन करके हाइप्रोफाइल माफिया और आपराधिक इतिहास वाले नेताओं की संपत्ति जब्त करने या गिराने का काम शुरू किया

मेगा फिल्म सिटी

ग्रेटर नोएडा में विश्वस्तरीय फिल्म सिटी बनाने की योगी आदित्यनाथ की महत्वाकांक्षी योजना है। लेकिन इसने उन्हें महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे के सामने ला खड़ा किया है। कहा जा रहा है कि योगी बॉलीवुड को मुंबई से उत्तर प्रदेश शिफ्ट करना चाहते हैं

एक जिला एक उत्पाद

यह योगी की सबसे प्रिय योजनाओं में एक है। इसमें हर जिले में कम से कम एक उत्पाद को बढ़ावा दिया जाता है। न सिर्फ आर्थिक मदद दी जाती है, बल्कि स्थानीय कारीगरी को भी सरकार का संरक्षण मिलता है

एयर कनेक्टिविटी

जब योगी मुख्यमंत्री बने तब प्रदेश में सिर्फ दो एयरपोर्ट चालू थे, अब आठ हैं। आजमगढ़, श्रावस्ती, सोनभद्र, चित्रकूट, ललितपुर समेत 16-17 और एयरपोर्ट पर काम चल रहा है

मेडिकल कॉलेज

2016-17 में उत्तर प्रदेश में 12 सरकारी मेडिकल कॉलेज थे। योगी सरकार 30 नए सरकारी मेडिकल कॉलेज का निर्माण कर रही है। बाकी बचे जिलों में सरकारी-निजी भागीदारी पर मेडिकल कॉलेज बनेंगे।

 

(साथ में दिल्ली से प्रशांत श्रीवास्तव और लखनऊ से भारत सिंह)

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TAGS: Uttar Pradesh Assembly Election 2022, Delhi, Lucknow, उत्तर प्रदेश, दिल्ली, लखनऊ, योगी आदित्यनाथ, भाजपा
OUTLOOK 15 June, 2021
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