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22 March 2021

बंगाल से जुदा है असम का चुनाव, राहुल ले पाएंगे अपने पुराने साथी से बदला

इस बार विधानसभा चुनावों में एक पार्टी छोड़कर बिल्कुल विपरीत विचारधारा वाली दूसरी पार्टी में जाने वाले नेताओं की कतार लगी हुई है। लेकिन असम के गोलाघाट विधानसभा क्षेत्र में एक अनोखी बात हुई है। इस सीट पर विधायक अजंता नियोग भारतीय जनता पार्टी की उम्मीदवार हैं। उनके सामने चिर प्रतिद्वंद्वी बिटोपन सैकिया हैं, जिन्हें कांग्रेस ने उम्मीदवार बनाया है। मजे की बात यह है कि 2016 के चुनाव में नियोग कांग्रेस की प्रत्याशी थीं और सैकिया भाजपा से लड़े थे। नियोग कुछ ही दिनों पहले भाजपा में चली गईं। नाराज सैकिया कांग्रेस में चले गए और अब उसके टिकट पर चुनाव लड़ रहे हैं।

गोलाघाट की यह घटना बताती है कि इस बार असम विधानसभा चुनावों में किस तरह राजनीतिक उलटफेर हो रहे हैं। भाजपा जीतने योग्य नेताओं को आकर्षित करने का प्रयास कर रही है तो विपक्षी दल उन नेताओं पर दांव आजमा रहे हैं, जिन्हें भाजपा से टिकट नहीं मिला। असम पारंपरिक रूप से कांग्रेस का मजबूत गढ़ रहा है, लेकिन पिछले चुनावों में यहां भाजपा को जीत हासिल हुई थी। पांच साल बाद भाजपा के सामने एक बड़ी चुनौती है। भले ही वह इसे स्वीकार न करे। कांग्रेस के नेतृत्व वाले आठ दलों के गठबंधन, जिसमें ऑल इंडिया यूनाइटेड डेमोक्रेटिक फ्रंट भी शामिल है, को लगता है कि 2 मई को आने वाले नतीजों में उसे बहुमत मिल सकता है। 126 सीटों वाली असम विधानसभा के लिए तीन चरणों में मतदान होंगे- 27 मार्च, 1 अप्रैल और 6 अप्रैल को।

प्रदेश की सर्बानंद सोनोवाल सरकार के पीछे असली ताकत कहे जाने वाले मंत्री हेमंत बिस्वा सरमा का कहना है कि असम गण परिषद और यूनाइटेड पीपुल्स पार्टी लिबरल (यूपीपीएल) के साथ मिलकर भाजपा को 100 से ज्यादा सीटें मिलेंगी। सरमा का गणित शायद ही कभी गलत होता हो, तब भी जब वे 2016 के विधानसभा चुनाव से पहले प्रदेश की कांग्रेस सरकार में मंत्री थे। इसलिए भाजपा के केंद्रीय नेतृत्व ने सरमा में एक बार फिर से भरोसा जताया है। इसी कड़ी में उसने पुराने साथी बोडो पीपुल्स फ्रंट को छोड़कर यूपीपीएल को नया साथी बनाया है।

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भाजपा ने अभी तक सोनोवाल को अगले मुख्यमंत्री के तौर पर स्पष्ट रूप से पेश नहीं किया है। पार्टी प्रवक्ता रितु बरन सरमा कहते हैं, “जब हमारे पास एक मुख्यमंत्री है तो मुख्यमंत्री उम्मीदवार के नाम की घोषणा की जरूरत नहीं रह जाती है।” उनका यह बयान जवाब से कहीं ज्यादा सवाल खड़े करता है। एक सवाल सीधे हेमंत बिस्वा सरमा से जुड़ा है। पहले कई मौकों पर चुनाव नहीं लड़ने की बात वे कह चुके हैं। फिर भी भाजपा ने जुलुकबाड़ी सीट से 52 साल के सरमा को उम्मीदवार बनाया है। उनकी मुख्यमंत्री बनने की ख्वाहिश किसी से छिपी नहीं है। उनके कांग्रेस छोड़ने की बड़ी वजह यही थी। तब पूर्व मुख्यमंत्री तरुण गोगोई अपने बेटे गौरव गोगोई को उत्तराधिकारी के रूप में पेश करने लगे थे।

सरमा समर्थकों को उनके मुख्यमंत्री बनने की ख्वाहिश में कुछ भी गलत नहीं लगता। प्रदेश में अनेक लोगों को लगता है कि विपक्ष का मुकाबला करने और उनके किले ध्वस्त करने में मुख्य भूमिका सरमा की ही है। नागरिकता संशोधन कानून (सीएए) के बाद 2020 की शुरुआत में असम में भाजपा के खिलाफ माहौल बनने लगा था। अनेक जगह विरोध प्रदर्शन और हिंसा भी हुई। तब भाजपा विरोधी माहौल को बदलने में सरमा ने ही मुख्य भूमिका निभाई। रितु बरन कहते हैं, “यह चुनाव इस बात को लेकर लड़ा जाएगा कि हमने राज्य के लिए क्या किया है। सीएए ठंडे बस्ते में चला गया है। अब यह कोई मुद्दा नहीं है।”

राजनीतिक विश्लेषक मृणाल तालुकदार, रितु बरन की बातों से सहमत हैं। उन्हें लगता है कि विभिन्न स्कीमों से लाभान्वित होने वाले 96 लाख लोगों में से आधे से अधिक भाजपा के नेतृत्व वाले गठबंधन को वोट देंगे। असम में 2.3 करोड़ मतदाता हैं। तालुकदार कहते हैं, “अब इसमें 10 फीसदी उन मतदाताओं को भी जोड़ लीजिए जिन्हें सरकारी स्कीमों का फायदा तो नहीं मिला, लेकिन वे भाजपा को ही वोट देंगे। इसके अलावा भाजपा के लिए धार्मिक ध्रुवीकरण, सोशल इंजीनियरिंग, धनबल और बाहुबल तो है ही। इसलिए मुझे लगता है कि यह चुनाव दो ध्रुवीय होगा, जिसमें भाजपा के जीतने की संभावना प्रबल है।”

जाहिर है कि कांग्रेस इस बात से सहमत नहीं होगी। पार्टी के सांसद गौरव गोगोई कहते हैं, “कौन-सा विकास? जिस अरुणोदय स्कीम के बारे में बढ़-चढ़कर बताया जा रहा है, उसके लाभार्थियों से तो भाजपा के कार्यकर्ता कमीशन लेते हैं। लोगों से पूछिए कि उनके साथ किस तरह धोखा हुआ है।” इस स्कीम के तहत राज्य सरकार हर महीने 22 लाख ऐसे परिवारों के खाते में 830 रुपये जमा कराती है जिनमें विधवा और विकलांग हैं। सरकार ने हाल ही में घोषणा की है कि इस रकम को बढ़ाकर 3,000 रुपये किया जाएगा।

भाजपा के विपरीत कांग्रेस और अन्य विपक्षी दलों को लगता है कि सीएए अब भी भावनात्मक मुद्दा है, और यह सत्तारूढ़ गठबंधन को नुकसान पहुंचाएगा। इसलिए गोगोई कहते हैं, “असम के ज्यादातर लोग सीएए को भाजपा की वादाखिलाफी मानते हैं, जिसने ‘जाति, माटी और भेति’ की सुरक्षा का वादा किया था। भाजपा को मौका मिला था जिसे उसने गंवा दिया है।”

हालांकि, कांग्रेस को पहले तो मतदाताओं को परफ्यूम कारोबारी बदरुद्दीन अजमल की एआइयूडीएफ के साथ गठबंधन का तात्पर्य समझाना पड़ेगा। सरमा ने अजमल को असम का दुश्मन और इस चुनाव को सभ्यता की लड़ाई बताया है। उनका कहना है कि ‘मुगलों का हमला’ जारी है। एक भाजपा नेता के अनुसार, “मुगल से मतलब सोच है, न कि कोई व्यक्ति।” प्रदेश के अनेक लोग मानते हैं कि अजमल को अवैध शरणार्थियों का लाभ मिला है। प्रदेश में मूल निवासियों की तुलना में बांग्लादेशियों की संख्या अधिक हो जाने का डर आज भी उतना ही है।

पहले इस मुद्दे को भुनाने के बाद भाजपा अब इस पर चुप है। 2014 में एक चुनावी रैली में पार्टी के प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार नरेंद्र मोदी ने कहा था कि केंद्र में भाजपा की सरकार आने के बाद सभी बांग्लादेशियों को बोरिया-बिस्तर समेट कर जाना पड़ेगा। 2016 के विधानसभा चुनावों में पार्टी ने इस वादे को दोहराया। लेकिन 2021 के विधानसभा चुनाव में वह न तो बांग्लादेशियों का जिक्र कर रही है, न सीएए या राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर (एनआरसी) का। हालांकि भाजपा नेता पश्चिम बंगाल में इन मुद्दों को जरूर उठा रहे हैं।

सीएए के खिलाफ नाराजगी को दो नई पार्टियां, अखिल गोगोई की ‘रायजोर दल’ और आसू के पूर्व नेता लुरिनज्योति गोगोई की ‘असम जातीय परिषद’ उठा रही हैं। वैसे दोनों पार्टियां एक दूसरे के खिलाफ प्रत्याशी भी खड़ा कर रही हैं। अखिल गोगोई ने शिवसागर सीट से पर्चा दाखिल किया है। एक वरिष्ठ भाजपा नेता कहते हैं, “वे लोग खुद अपने वोट काटेंगे, यह हमारे लिए अच्छा है।” अब देखना है कि नतीजों में कोई अनोखी बात होती है या नहीं।

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TAGS: असम विधानसभा चुनाव 2021, भाजपा, कांग्रेस, असम, राजनीति, Assam Assembly Elections 2021, BJP, Congress, Assam, Politics
OUTLOOK 22 March, 2021
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