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28 August 2015

समिउद्दीन को मंहगा पड़ा नीली बत्ती से पंगा लेना

बात वर्ष 2005 की है। राज्य में समाजवादी पार्टी की सरकार थी। समिउद्दीन लीखमपुर खीरी में पोस्टेड थे। एक दिन उन्हें पता लगा कि नेताओं और अधिकारियों की मिलीभगत से पीडीएस के तहत आने वाले खाद्यान की कालाबाजारी हो रही है। समिउद्दीन ने अपने अखबार के लिए स्टोरी की। मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव ने मामले की जांच के आदेश दिए और पांच एसडीएम और एक डीएम निलंबित कर दिए गए। लखीमपुर में और अपराधों पर भी समिउद्दीन की कलम बिना डरे चल रही थी।


फिर एक और मामला हुआ जिसमें जमींदारों ने अपने खेतों में काम करने वाले मजदूरों की जबरन नसबंदी करा दी। उनमें एक अविवाहित मजदूर था। जिस पर जिले में काफी हो-हल्ला हो गया। पुलिस जमींदारों की तरफ थी और मजदूरों की सुन ही नहीं रही थी। समिउद्दीन ने इस मसले पर भी पुलिस प्रशासन के खिलाफ जमकर हल्ला बोला। अब पुलिस ने भी समिउद्दीन की कलम की रफ्तार रोकने की ठान ली थी।

 

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एक दिन उन्हें उनके एक पुलिस वाले दोस्त ने बताया कि समिउद्दीन लखीमपुर से भाग जाएं। स्थानीय एसपी ने उन पर बलात्कार का केस कर उन्हें जेल भेजने की तैयारी कर ली है। इसके लिए सीतापुर से लड़कियों को भी बुला लिया गया है। समिउद्दीन बताते हैं कि वह लखनऊ अपने संपादक के पास चले गए। उन्हें सारा किस्सा बताया। इस बाबत उनके संपादक और समिउद्दीन लखनऊ में तमाम अधिकारियों से मिले। समिउद्दीन को लगा कि बात उच्च अधिकारियों तक पहुंच गई है। वह बेफिक्र फिर अपने पुराने तेवरों में काम करने लगे।

 

वह बताते हैं, एक रात वह काम खत्म कर घर जा रहे थे कि दो लोग उन्हें जीप में डालकर ले गए। समिउद्दीन कुछ नहीं जानते थे कि उन्हें कहां ले जाया जा रहा है। उन्होंने एक समझदारी यह की कि रेलवे फाटक पर एक मूंगफली के ठेले के पास अपनी जेब से कुछ कागज गिरा दिए ताकि अगर कोई उन्हें ढूंढे तो वे उन्हें मिल जाएं।

 

समिउद्दीन को वे लोग जंगल में ले गए। समिउद्दीन का कहना है कि जंगल में एक पेड़ के पास ले जाकर उन्हें कहा कि वह कोरे कागज पर लिखे सुसाइड नोट पर साइन कर दें। यह भी कहा गया कि समिउद्दीन ने नीली बत्ती से पंगा लिया है। वह बताते हैं कि ‘मैंने एक आखिरी मौका लेना चाहा, पुलिसवालों से कहा कि देखो, तुम मुझे मार दोगे तो तुम्हें जेल होगी, तुम अपने अधिकारियों के कहने पर अपना घर क्यों खराब करते हो, एनकाउंटर करना है तो जिन्होंने तुम्हें भेजा है वे मेरा एनकाउंटर करें। तुम उनके लिए अपनी जिंदगी क्यों खराब करते हो, क्योंकि कुछ दिन पहले मैं लखनऊ जाकर सभी अधिकारियों को मिलकर आया हूं। मेरे एनकाउंटर के बाद तुम लोग बख्शे नहीं जाओगे।’ पुलिसवालों ने यह बात अपने अधिकारियों से बताई।      

 

समिउद्दीन की जान तो बख्श दी गई लेकिन ले जाकर उन्हें जेल में डाल दिया गया। उन पर गैंडे, मगरमच्छ की खाल, चंदन की लकड़ी, शेर के पंजे का नाखून बरामद हुए दिखाया गया और उन पर तस्करी के तहत उनके खिलाफ केस दर्ज किया गया। प्रदेश में अब तक बहुजन समाज पार्टी की सरकार आ चुकी थी। राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग ने राज्य से समिउद्दीन को पांच लाख रुपये मुआवजा और सुरक्षा देने के आदेश दिए। उन्हें सुरक्षा तो दे दी गई लेकिन मुआवजा नहीं मिला। इस मामले में पुलिस ने एक चालाकी यह की कि किसी प्रकार सीजेएम कोर्ट लखीनपुर खीरी से मामले की पुनः जांच के आदेश हासिल कर लिए। जबकि इससे पहले सरकार स्वीकार कर चुकी थी कि समिउद्दीन के साथ अत्याचार हुआ है। अपने ऊपर लगे झूठे आरोपों को लेकर समिउद्दीन सरकार, मानवाधिकार आयोग तमाम जगह दस्तक दे चुके हैं।  लखीमपुर से उनका तबादला पीलीभीत कर दिया गया है लेकिन नौकरशाही से टकराने का नतीजा वह आज भी भुगत रहे हैं।

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TAGS: फर्जी मुठभेड़, पत्रकार, समिउद्दीन खान, false encounter, journalist, samiuddin khan
OUTLOOK 28 August, 2015
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