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04 May 2015

भूकंपःभारतीय मीडिया–कंप से भी नाराज नेपाली

पिछले कुछ दिनों से सोशल मीडिया पर भारतीय मीडिया के एक हिस्से की कवरेज की निष्पक्षता पर सवाल उठाए जा रहे थे। खासतौर से भारतीय मीडिया पर यह आरोप लगा कि वह भारत की नरेंद्र मोदी सरकार की वाहवाही करने और उसकी सकारात्मक छिव प्रचारित (पीआर) करने में लगा हुआ है। लोगों का कहना है क‌ि भारतीय मीडिया की  यह कोशिश है कि राहत प्रबंधन का सारा श्रेय भारतीय सैन्य दल और मोदी सरकार को मिले, इसके लिए सोचे-समझे ढंग से कवरेज हो रही है। एअरपोर्ट पर मोदी सरकार जिंदाबाद, नेपाल सरकार हाय हाय जैसी नारेबाजी तकरीबन सभी भारतीय टीवी चैनलों में दिखाए जाने को भी सीधे-सीधे इसी मानसिकता से जोड़कर देखा जा रहा है।

भारतीयमीडिया की असंवेदनशीलता पर निशाने पर है। खासतौर से,  भारतीय पत्रकारों द्वारा मलबे में दबे बेटे को निकालने के बाद उसकी मां से यह पूछना कि आपको कैसा लग रहा है, खासा किरकिरी कराने वाला रहा। और तो और लगातार भारतीय सेना के साथ कवरेज के लिए घूमना और एक पक्ष को ही दिखाना भी स्वाभाविक तौर पर स्थानीय लोगों को नाराज करने के लिए पर्याप्त था। एक टीवी चैनल तो अपने कष्टों का बखान करते हुए यह दिखाने लगा कि कैसे वह मेक शिफ्ट टेंट से अपना स्टूडियो चला रहा है।

जल्द से जल्द अलग ढंग की खबर और फोटो छापने की ऐसी अंधी दौड़ मची कि 2007 की वियतनाम की फोटो (जिसमें दो छोटे बच्चे एक दूसरे को पकड़ कर बैठे हैं) को एक राष्ट्रीय दैनिक अखबार ने इस कैप्शन के साथ छापा, वायुसेना अधिकारी सनिका नेपाल के थामेल गांव में रेस्क्यू मिशन पर थीं। उन्होंने इन दो बच्चों को रोते देखा। बिस्कुट और पानी दिया तो बच्चों ने पूछ लिया-मेरे मां-बापू कहां है, सनिका ने जब खोज शुरू की तो पता चला दोनों मारे जा चुके हैं।

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सच उजागर होने के बाद किसी ने नहीं पूछा या खेद व्यक्त किया कि आखिर वायुसेना अधिकारी सनिका कौन थी। भारतीय मीडिया ने अपनी इस तरह किरकिरी कराई कि वियतनाम में 2007 में इस फोटो को खींचने वाले फोटोग्राफर ना सोन न्यूगेन को भी सोशल मीडिया पर आकर सच बताना पड़ा।

नेपाली मूल की ब्लागर सुनीता शाक्या ने बाकायदा भारतीय मीडिया के नाम एक खुला पत्र लिखा, जिसमें उन्होंने गहरे क्षोभ के साथ लिखा, आपका मीडिया तो ऐसी खबरें दे रहा है जैसे वह कोई पारिवारिक सीरियल शूट कर रहा है। आप अपने साथ फर्स्ट एड तक लेकर नहीं चल रहे, जिन हेलिकॉप्टरों में पीड़ितों को लाया जा सकता है, उनमें आप कब्जा जमाए हुए हैं।

इस तरह से भारतीय मीडिया की कवरेज को मोदी सरकार के पक्ष में पीआर की कवायद के तौर पर देखने वालों की तादाद बड़ी है। भारतीय मीडिया की असंवेदनशीलता भी उन्हें बेतरह परेशान कर रही है। गुस्सा फूट रहा है।

कुछ ट्विट्स

A tweet from a person followed by Indian Embassy Kathmandu shows how serious the matter is #GoHomeIndianMedia pic.twitter.com/2i5s2Zd2KF

— I Blocked Aajtak (@umeshd516) May 3, 2015

Stop your Media-quake!! We are already in pang by devastating Earthquake and your news are not helping the victims!! #GoHomeIndianMedia

— सूचना घिमिरे ツ (@artless77) May 3, 2015

Dear Indian media, we shall welcome you back once you learn the basics and ABCs of journalism. For now leave. #GoHomeIndianMedia

— prakriti khadka (@khadka_prakriti) May 3, 2015

#GoHomeIndianMedia @aajtak @abpnewstv @IndiaToday Mr. @narendramodiplease call your media back. They r just hurting us more

— लुरे (Nishan Aryal) (@fantastic_fan) May 3, 2015

     

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TAGS: नेपाल, भारतीय मीडिया, भूकंप, कवरेज, गो बैंक इंडियन मीडिया, ट्वटिर, पीआर, pr, nepal, quake, coverage
OUTLOOK 04 May, 2015
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