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15 April 2023

इंटरव्यू - तान्या मानिकतला : "सरलता, सादगी और प्रतिभा से ही मिलती है सफलता"

तान्या मानिकतला उन चुनिंदा अभिनेत्रियों में से हैं, जिन्होंने बहुत कम समय में अपने सशक्त अभिनय से कलाप्रेमियों को अपना मुरीद बनाया है।"फ्लेम्स" और "ए सूटेबल बॉय" जैसे कामयाब शोज के माध्यम से तान्या युवाओं में खासी लोकप्रिय हैं। इनसे उनकी गर्ल नेक्स्ट डोर वाली छवि स्थापित हुई है। लेकिन तान्या किसी छवि में नहीं कैद होना चाहतीं और इसी उद्देश्य से उन्होंने नेटफ्लिक्स की सीरीज "टूथ परी" में काम किया है, जो 20 अप्रैल से प्रसारित होने जा रही है। तान्या मानिकतला से उनके अभिनय और जीवन के बारे में आउटलुक से मनीष पाण्डेय ने बातचीत की। 

 

 

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साक्षात्कार से मुख्य अंश

 

"फ्लेम्स" और "ए सूटेबल बॉय" का किरदार आपकी रियल लाइफ से बहुत मिलता है। लेकिन "टूथ परी" में आपके बिल्कुल अलग भूमिका निभाई है। इस भूमिका को निभाना कितना कठिन था और क्या इस किरदार को निभाकर आप अपनी "गर्ल नेक्स्ट डोर" छवि से बाहर आना चाहती थीं ?

 

 

मैं "गर्ल नेक्स्ट डोर" छवि से खुश तो हूं मगर मैं बहुत अलग रंग के किरदार निभाना चाहती हूं। मैं अभिनय की विविधता को महसूस करना चाहती हूं और दर्शकों के सामने पेश करना चाहती हूं। तभी एक कलाकार के रुप में मेरी तरक्की हो सकती है। जब तक मैं कंफर्ट जोन के काम करती रहूंगा, तब तक कुछ सार्थक, कुछ महत्वपूर्ण करना संभव नहीं होगा। बाकी हर किरदार चुनौतीपूर्ण होता है। "टूथ परी" का किरदार इसलिए अधिक चुनौतीपूर्ण था क्योंकि वह मेरे जीवन के अनुभवों से परे था। वैंपयार का किरदार निभाते हुए, मैं इस बात से अनभिज्ञ थी कि वैंपायर किस तरह से रिएक्ट करते हैं। इसलिए यह किरदार निर्देशक की कल्पना और मेरे प्रयोग से ही तैयार हुआ है। मैं शुक्रगुजार हूं पूरी टीम का, जिनकी बदौलत मैं इस किरदार को अच्छे ढंग से निभा सकी। मुझे पूरी उम्मीद है कि दर्शकों को मेरी मेहनत पसंद आएगी।

 

 

 "टूथ परी" का किरदार निभाने के दौरान किसी तरह की शंका या असुरक्षा थी कि यदि लोगों ने इस किरदार या छवि को अस्वीकार कर दिया तो क्या होगा ? 

 

इंसान जब भी नया प्रयास करता है तो डर लगता है। "टूथ परी" का विषय सामान्य नहीं है। इस तरह के विषय पर हिंदी भाषा में कम ही कॉन्टेंट बनता है। इसलिए यह डर हमेशा था कि दर्शक इस प्रयास को किस तरह लेंगे। लेकिन किसी भी इंसान की तरक्की के लिए यह जरूरी है कि वह सही समय पर सही निर्णय ले। यदि मैं एक ही जैसे किरदार निभाती तो मेरी अभिनय यात्रा सिमट जाती। मैं इस बात को जानती हूं और तभी मैंने रिस्क लेना स्वीकार किया है। मुझे भरोसा है कि यह रिस्क लेना सार्थक होगा और दर्शक मेरे पहले के काम की तरह, इसी भी प्यार देंगे।

 

क्या कारण है कि लोग अलग तरह के कॉन्टेंट को थियेटर की जगह नेटफ्लिक्स जैसे ओटीटी प्लेटफॉर्म पर ही देखना पसन्द करते हैं? 

 

ओटीटी प्लेटफॉर्म पर लोगों को एक भरोसा होता है कि यदि कॉन्टेंट अच्छा नहीं हुआ तो वह तुरंत दूसरा कॉन्टेंट देख सकते हैं। ओटीटी प्लेटफॉर्म पर दर्शक सिर्फ एक फिल्म या शो के लिए पैसा नहीं देता। इससे वह राहत महसूस करता है। इसके ठीक उलट, जब दर्शक थियेटर में जाता है तो वह उस फिल्म के लिए एक तय धनराशि चुकाता है। और यदि कॉन्टेंट उसकी अपेक्षा पर खरा नहीं उतरता तो वह ठगा सा महसूस करता है। उसके पास अपने पैसे वसूलने का विकल्प नहीं होता। यही कारण है कि जब भी प्रयोगवादी सिनेमा बनता है तो दर्शक थिएटर में जाने से कतराता है। वह चाहता है कि जब यह कॉन्टेंट थिएटर से ओटीटी प्लेटफॉर्म पर पहुंचेगा तो ही इसका आनंद लिया जाएगा।

 

साहित्य पढ़ने की रूचि ने किस तरह आपके अभिनय को विशेषता प्रदान की ? 

 

मुझे किताबें पढ़ने का हमेशा से शौक रहा है। मेरे पिताजी का पब्लिकेशन हाउस का व्यवसाय था। मैं इस कारण हमेशा किताबों से घिरी रहती थी। किताबें हमेशा आपको बेहतर इंसान बनाती हैं। किताबें दूसरे माध्यम की तुलना में आप पर गहरा असर छोड़ती हैं। किताबों से आप उन अनुभवों को जी सकते हैं, समझ और महसूस कर सकते हैं, जो आपसे साथ घटित नहीं हुए हैं। यानी किताबें आपको अनुभव संपन्न बनाती हैं और भावनाओं के स्तर पर आपके पास विविधता होती है। यही आपको एक अच्छा कलाकार बनाती है। कोई भी किरदार निभाते हुए, यह जरूरी होता है कि आपको उसका अनुभव हो, उसका ज्ञान हो। आप उसे समझने की क्षमता रखते हों। इस क्षमता को विकसित करने में किताबें सहायक होती हैं। आज यदि दर्शकों को मेरा अभिनय वास्तविकता के नजदीक लगता है तो इसमें किताबों का योगदान है।

 

अभिनय के क्षेत्र में जिस तरह का दबाव है, चुनौतियां हैं, उनसे पार पाने में मेडिटेशन किस तरह आपके लिए सहायक साबित होता है? 

 

हमारे समाज में व्यक्ति पूजा का पॉपुलर कल्चर है। दर्शक अभिनेता और अभिनेत्रियों को भगवान मान लेते हैं और यह उम्मीद करते हैं कि इनमें कोई दोष, खामी नहीं होगी। इसके कारण कलाकारों की जिंदगी एक दबाव में बीतती है। कलाकारों को यह ध्यान रखना होता है कि वह कुछ भी ऐसा न करें, न कहें, जो उनकी छवि को प्रभावित करे या दर्शक जिससे आहत हो जाएं। इतना ही नहीं, कलाकारों की एक फ्लॉप या कमजोर प्रस्तुति, उन्हें दुनिया के निशाने पर ले आती है। इस कारण कलाकार स्वतंत्र होकर जीने से महरूम रह जाते हैं और यह उनके जीवन में तनाव पैदा करता है। इस तनाव से निपटने का सशक्त माध्यम है मेडिटेशन। मेडिटेशन मुझे चिंताओं से मुक्त करता है। मैं वर्तमान में जीती हूं। मुझ में यह दृष्टि पैदा होती है कि चाहे जो भी परिणाम हो, मुझे अभिनय पसन्द है और मुझे अभिनय करते जाना है। बाहरी कारणों से अपने अभिनय को प्रभावित नहीं होने देना। यह सोच,यह जागृति मेडिटेशन के कारण बनी रहती है।

 

जिस तरह हिंदी सिनेमा और मनोरंजन जगत में महिलाओं की भागीदारी बढ़ी है, वह महिला कलाकारों को किस तरह सहयोग कर रही है? 

 

 

महिलाओं की भागीदारी बढ़ने से सबसे बड़ा बदलाव यह आया है कि अब महिलाओं का पक्ष सामने आ रहा है। एक समय तक महिलाओं का पक्ष, उनकी कहानियां पुरुष लेखक, निर्देशक ही कहते थे। मगर अब यह बदलाव हुआ है कि महिलाएं अपनी कहानियां स्वयं स्वतंत्र होकर कह रही हैं। इससे नयापन आया है। मेरा ऐसा मानना है कि यदि किसी भी क्षेत्र की आधी आबादी प्रतिनिधित्व से वंचित है तो वह क्षेत्र कभी शिखर पर नहीं पहुंच सकता। महिलाओं की बढ़ती भागीदारी से मनोरंजन जगत अधिक संवेदनशील और परिपक्व हुआ है। आप यदि "टूथ परी" का ही उदाहरण लें तो इसमें एक महिला किरदार के विभिन्न पक्षों को खूबसूरती और बारीकी से दिखाया गया है। यह देखना सुखद है कि हमने एक लंबी यात्रा तय की है, जहां मनोरंजन की वस्तु से निकलकर महिलाएं आज वैचारिक स्तर पर प्रभाव छोड़ रही हैं।

 

 

मनोरंजन जगत में ऐसी कौन सी बातें हैं, जो आपको खटकती हैं, जिन्हें देखकर आपको महसूस होता है कि इन्हें खत्म होना चाहिए? 

 

हर जगह ही कुछ न कुछ कमियां होती हैं। कुछ ऐसी कमियां होती हैं, जिनके साथ समझौता करना पड़ता है। मगर कुछ ऐसी भी कमियां होती हैं, जिन्हें दूर किए बिना काम करना संभव नहीं होता। मैं यदि किसी एक विषय पर बात करूं तो मैं कलाकारों को सेट्स पर मिलने वाले भोजन पर टिप्पणी करूंगी। मैंने ऐसा कई जगह देखा है कि मुख्य कलाकारों, सहायक कलाकारों, स्पॉट बॉयज, टेक्निकल टीम की भोजन व्यवस्था अलग अलग होती है। यानी मुख्य किरदार निभाने वाले कलाकार को अलग तरह का, क्वालिटी का भोजन मिलता है और सहायक भूमिका निभा रहे कलाकार को अलग कैटरिंग से खाना मिलता है। मुझे महसूस होता है कि यह भेदभाव खत्म होना चाहिए।

 

 

आज जो जितना ज्यादा दिखावा कर रहा है, उसे उतनी ही मीडिया कवरेज मिल रही है, काम भी मिल रहा है। कभी ऐसा महसूस नहीं होता कि आपकी सरलता और सादगी के कारण आप पीछे छूट जाएंगी?

 

नहीं। मुझे इस तरह का असुरक्षा कभी नहीं होती। इसका कारण यह है कि मैं दिखावा नहीं कर सकती। जो मैं नहीं हूं, उस इमेज को मैं बहुत देर तक लेकर नहीं चल सकती। बाकी इसका मुझे नुकसान कभी नहीं हुआ है। मेरी सरलता, सादगी और प्रतिभा ने ही मुझे मीरा नायर जैसी प्रतिष्ठित फिल्ममेकर की सीरीज " ए सूटेबल बॉय" में काम दिलाया है। इसलिए यह सोचना कि दिखावे नहीं करेंगे तो काम नहीं मिलेगा, पीछे छूट जाएंगे, एक भ्रम है।

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OUTLOOK 15 April, 2023
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