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17 January 2022

उत्तर प्रदेश: छापे पर उठते सवाल, सरकार पर एजेंसियों के दुरुपयोग का आरोप

एक बार फिर चुनाव से पहले जांच एजेंसियों के छापे का ‘खेल’ शुरू हो गया है। इस बार निशाने पर हैं उत्तर प्रदेश में राजनीतिक दलों के करीबी कारोबारी। पहले पीयूष जैन, फिर पुष्पराज जैन और अब अजय चौधरी। जगह-जगह जांच एजेंसियों के छापे अखबारों की सुर्खियां बन रहे हैं, जिनकी गूंज लुटियंस दिल्ली तक सुनाई दे रही है। इन सबकी शुरुआत 22 दिसंबर को हुई जब केंद्रीय अप्रत्यक्ष कर एवं सीमा शुल्क बोर्ड (सीबीआइसी) की जांच शाखा जीएसटी इंटेलिजेंस महानिदेशालय ने शिखर ब्रांड पान मसाला के मालिक और इत्र कारोबारी पीयूष जैन के कानपुर और कन्नौज स्थित ठिकानों पर छापे मारे। छापे में 200 करोड़ से अधिक की नगदी, 250 किलो चांदी, 25 किलो सोना और छह सौ किलो चंदन का तेल बरामद किया गया।

पीयूष जैन से चली 150 घंटे की मैराथन पूछताछ के बाद सेंट्रल जीएसटी एक्ट की धारा 132 के तहत उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया। कहा गया कि जैन समाजवादी पार्टी के प्रमुख अखिलेश यादव के करीबी हैं। कानपुर में मेट्रो रेल परियोजना के उद्घाटन के अवसर पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कटाक्ष करते हुए कहा, “2017 से पहले उन्होंने (सपा) पूरे उत्तर प्रदेश में भ्रष्टाचार की जो खुशबू बिखेरी थी, वह सबके सामने है। लेकिन अब वे मुंह बंद करके बैठे हैं।” वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने कहा कि 25 किलो सोना किसी साधारण व्यक्ति के पास नहीं होता। राजस्व खुफिया महानिदेशालय को शक है कि इसके तार अंतरराष्ट्रीय सोना तस्कर गिरोह से जुड़े हैं।

सपा के पुष्पराज जैन पर भी छापे

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सपा के पुष्पराज जैन पर भी छापे

लेकिन अखिलेश यादव के एक ट्वीट ने घटनाक्रम में जल्दी ही नया मोड़ ला दिया। अखिलेश ने कहा कि जांच एजेंसियों को वास्तव में सपा एमएलसी पुष्पराज जैन के यहां छापा मारना था, लेकिन नाम एक जैसा होने (दोनों पी. जैन) के कारण उन्होंने पीयूष जैन के यहां छापा मार दिया। उन्होंने पीयूष जैन पर भाजपा के करीबी होने का आरोप लगाया। अखिलेश के इस खुलासे के चंद रोज बाद ही आयकर विभाग ने पुष्पराज जैन के उत्तर प्रदेश, गुजरात और महाराष्ट्र स्थित कई ठिकानों पर छापे मारे। नाम का भ्रम शायद इसलिए भी हुआ क्योंकि दोनों जैन का कन्नौज के चिपट्टा इलाके में घर है। दोनों का इत्र का भी कारोबार है। पुष्पराज जैन ने पिछले साल 9 नवंबर को ‘समाजवादी इत्र’ लांच किया था।

इस खुलासे के बाद जांच की दिशा भी नाटकीय रूप से बदल गई। जीएसटी इंटेलिजेंस ने कह दिया कि पीयूष जैन के घर से मिला कैश उनके कारोबार से आया पैसा है। उन्होंने टैक्स चोरी के मकसद से इस रकम को खाते में नहीं दिखाया था। यानी टैक्स और जुर्माना चुकाने के बाद बाकी रकम जैन को मिल सकती है। दोनों जैन के बाद 2 जनवरी को आयकर विभाग ने नोएडा के एस ग्रुप के मालिक अजय चौधरी उर्फ संजीव नागर के ठिकानों पर छापे मारे। चौधरी भी अखिलेश के करीबी बताए जाते हैं।

इन छापों से यह साफ हो गया कि विधानसभा चुनाव में भ्रष्टाचार बड़ा मुद्दा बनकर उभरेगा। अखिलेश ने टिप्पणी की, “मैंने बार-बार कहा है कि जब भी चुनाव नजदीक आते हैं, यह सब होने लगता है। अभी तो टैक्स डिपार्टमेंट आया है, फिर प्रवर्तन निदेशालय आएगा और फिर सीबीआइ आएगी। इसके बावजूद हम उसी रफ्तार से बढ़ते रहेंगे और इस बार यूपी से बीजेपी का सफाया हो जाएगा।”

पुष्पराज जैन उर्फ 'पम्पी' पर आयकर विभाग की दबिश को राजनीतिक प्रतिशोध बताते हुए अखिलेश ने ट्विटर पर लिखा, “पिछली बार की भारी विफलता के बाद, इस बार भाजपा की अंतिम सहयोगी आयकर विभाग ने सपा एमएलसी पुष्पराज जैन और कन्नौज के अन्य इत्र व्यापारियों पर छापा मारा है। यूपी चुनाव में डरी हुई भाजपा द्वारा केंद्रीय एजेंसियों का खुला दुरुपयोग आम बात है। लोग सब कुछ देख रहे हैं, वे अपना जवाब वोट के जरिए देंगे।”

कानपुर से फैले इस इत्र की खुशबू नेताओं के साथ फिल्मी दुनिया को भी खासा भा रही है। दृश्यम और खुदा हाफिज जैसी फिल्मों से पहचाने जाने वाले प्रोड्यूसर कुमार मंगत पाठक ने काशी फिल्म फेस्टिवल में कहा कि वे पीयूष जैन की जिंदगी पर फिल्म रेड का सीक्वल बनाएंगे।

राजनीतिक विश्लेषक तहसीन पूनावाला आउटलुक से कहते हैं, “यह सरकारी जांच एजेंसियों का गंभीर दुरुपयोग है। जो हो रहा है, उससे उत्तर प्रदेश में चुनाव निष्पक्ष होने के कम आसार हैं।” वे कहते हैं कि ऐसा पहली बार नहीं हो रहा है। अतीत में तमिलनाडु में स्टालिन परिवार, महाराष्ट्र में शरद पवार के परिवार और पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी के परिवार को परेशान करने के मामले भी सामने आ चुके हैं।

देश में विभिन्न जगहों पर लगातार पड़ते छापों में मिल रही भारी नकदी ने नोटबंदी की सफलता पर भी गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं। उत्तर प्रदेश के पिछले विधानसभा चुनाव से ठीक पहले प्रधानमंत्री ने नोटबंदी का ऐलान किया था। उन्होंने कहा था, “कालेधन और भ्रष्टाचार से लड़ने के लिए नोटबंदी बड़ा कदम था।” 2017 के यूपी विधानसभा चुनाव में यह सबसे बड़ा सियासी मुद्दा था। विपक्ष इसका विरोध कर रहा था और भाजपा कालाधन से लड़ने के लिए जरूरी कदम बता रही थी। लेकिन जमीनी हकीकत प्रधानमंत्री के दावे से मेल नहीं खाती।

जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय में अर्थशास्त्र के पूर्व प्रोफेसर और ‘द ब्लैक इकोनॉमी’ नामक पुस्तक के लेखक अरुण कुमार बताते हैं, “नोटबंदी कालेधन पर नकेल कसने और अर्थव्यवस्था से ब्लैकमनी को बाहर निकालने के अपने प्राथमिक उद्देश्य को प्राप्त करने में बुरी तरह विफल रही है। नोटबंदी के बाद 99 फीसदी से ज्यादा पैसे तो बैंकों में जमा हो गए थे। जगह-जगह जांच एजेंसियों के छापे में मिलते बेहिसाब पैसे नोटबंदी की विफलता का स्पष्ट उदाहरण हैं।”

आय से अधिक मामलों की अंतहीन सूची

मुलायम सिंह यादव, वीरभद्र सिंह, जयललिता, शशिकला जैसे राजनैतिक दिग्गजों से लेकर राज्यों के सरकारी बाबुओं तक सभी आय से अधिक संपत्ति के आरोप में खबरों में रह चुके हैं। लेकिन भ्रष्टाचार का तालाब छोटी मछलियों से भी गंदा हो रहा है। हाल ही सीबीआइ ने दो करोड़ रुपये की आय से अधिक संपत्ति रखने के आरोप में मणिपुर में एक सीमा शुल्क निरीक्षक के खिलाफ मामला दर्ज किया। छापेमारी के दौरान कई एकड़ जमीन के दस्तावेज जब्त किए। हाजीपुर प्रखंड के श्रम प्रवर्तन अधिकारी दीपक कुमार शर्मा की आय के ज्ञात स्रोतों से आठ करोड़ रुपये से अधिक की चल-अचल संपत्ति का पता चला।

प्रो. अरुण कर चोरी को बड़े पैमाने पर भ्रष्टाचार का एक कारण बताते हैं। टैक्स जस्टिस नेटवर्क की तरफ से प्रकाशित 'स्टेट ऑफ टैक्स जस्टिस रिपोर्ट' में कहा गया है कि भारत को हर साल कर चोरी के कारण 10.3 अरब डॉलर का नुकसान हो रहा है। बस तारीख और स्थान बदलते रहते हैं, आय से अधिक मामलों की घटनाएं हमेशा सुर्खियों में रहती हैं।

छापे की राजनीति

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OUTLOOK 17 January, 2022
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