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31 May 2021

इस शाकाहारी मटन की कीमत है 800 से 1,000 रुपये किलो, नहीं होती खेती, टेस्‍ट बेहतरीन, सेहत के लिए मुफीद

रांची के बाजार में आ गया है, शाकाहारी मटन। यानी रुगड़ा। झारखण्‍ड सरीखे एकाद प्रदेश के सीमित इलाके को छोड दें तो ज्‍यादातर लोग इसके बारे में और इसके जायके से अवगत भी नहीं होंगे। सखुआ के जंगलों से लोग निकालते हैं, इसकी खेती नहीं होती। बेहतरीन जायका के साथ सेहत के लिए भी मुफीद। रोग निरोधक क्षमता बढ़ाने वाला है।

आ गया समय से थोड़ा पहले
रांची में बाजार में इसे अचानक देखकर इसके प्रेमी अचानक खुश हो गये। अमूमन यह चुनिंदा सब्‍जी बाजार में ही दिखता है। अभी रांची के नागाबाबा खटाल और कचहरी चौक सब्‍जी मंडी में इसकी बिक्री हो रही है। इस साल रुगड़ा समय से थोड़ा पहले बाजार में आ गया। और कीमत भी अभी बहुत कम है। यास तूफान के दौरान बारिश और बिजली गिरने का असर है। सामान्‍यत: शुरुआती दौर में इसकी कीमत हजार-आठ सौ रुपये किलो होती है। शुरुआती बरसात के मौसम में ही बाजार में आता है और सितंबर के पहले सप्‍ताह तक मिलता है। बारिश का मौसम शुरू होता है, बिजली कड़कती है तब यह जंगलों से निकालकर लोग बाजार में लाते हैं। आदिवासी या जंगलों के मिजाज से वाकिफ लोग ही पहचान पाते हैं कि यह कहां होगा। दरअसल यह साल या कहें सखुआ के जंगलों में निकलता है। बिजली जब कड़कती है तो साल के पेड़ के नीचे, आस-पास के दायरे में मिट्टी में दरार पड़ जाता है, मिट्टी थोड़ा उठ जाती। वहीं जमीन के भीतर चंद इंच नीचे से खोदकर इसे निकाला जाता है। छोटे आलू की शक्‍ल में। कचहरी चौक पर सोमवारी रुगड़ा लेकर बैठी है, कुछ किलो बचे हैं।

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दिन के डेढ़ बज चुके हैं। लॉकडाउन के कारण अब आधे घंटे में बाजार बंद हो जायेगा। उसे भी लौटने की जल्‍दी है। नागपुरिया भाषा में कहती है पांच-छह सौ रुपये तक बेचा जा रहा है, तीन सौ रुपये किलो दे देंगे। रांची के बुंडू के जंगल से उसका रुगड़ा आया है। आदिवासी समाज का यह पसंदीदा खाद्ध पदार्थ रहा है। पहले सिर्फ जनजातीय समाज के भोजन का यह हिस्‍सा था। हाल के दशक में गैर जनजातीय समाज के लोगों ने इसका टेस्‍ट और महत्‍व समझा तो उनके बीच इसकी मांग तेज हो गयी। तब इसकी कीमत भी बेहिसाब हो गई, जनजातीय समाज की पहुंच से बाहर।

हाई प्रोटीन, लो फैट
सावन के मौसम में जब लोग मांसाहार त्‍यागते हैं उस दौरान रुगड़ा विकल्‍प के रूप में बाजार में होता है। मशरूम की प्रजाति का ही है मगर उससे कहीं ज्‍याद पौष्टिक। मगर इसकी खेती नहीं होती। चिकन में मिलाकर या सिर्फ रुगड़ा को मांस की तरह मसालेदार बनाते हैं। खासियत यह है कि इसमें फैट और कैलोरी मांस की तुलना में बहुत कम होती है, जबकि प्रोटीन और फाइबर प्रचुर मात्रा में होता है। जानकार बताते हैं कि बीपी, शुगर और दिल के मरीज भी इसे मजे से खा सकते हैं। बल्कि शुगर के मरीजों के लिए यह फायदेमंद है। सालों भर इसे उसी पौष्टिकता के साथ कैसे सुरक्षित रखा जा सके ताकि इसे बड़े शहरों तक पहुंचाया जा सके इस पर बीआइटी मेसरा शोध कर रहा है। इसे सुरक्षित रखना तो संभव हो गया है मगर पौष्टिकता कितनी कायम रही इसका परीक्षण शेष है।

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TAGS: शाकाहारी मटन, झारखंड में मटन, Vegetarian Mutton, Mutton in Jharkhand, रुगड़ा
OUTLOOK 31 May, 2021
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