Advertisement
28 November 2020

अफीम की खेती के लिए बदनाम है शहर, लेकिन गेंदे ने कर दिया कमाल

FILE PHOTO

पत्‍थलगड़ी, उग्रवादियों के आतंक और अफीम की खेती के लिए बदनाम झारखंड के खूंटी का एक नया चेहरा भी सामने आ रहा है। अफीम के गढ़ से अब गेंदे की खुशबू निकल रही है। कोई पांच सौ एकड़ में गेंदे की खेती की जा रही है।

आदिवासियों के भगवान बिरसा मुंडा की जन्‍मस्‍थली उलिहातु भी इसी खूंटी में है। जंगल, पहाड़, झरने और खूबसूरत वादियों से लबरेज खूंटी में पीएलएफआइ ( पीपुल्‍स लिबरेशन फ्रंड ऑफ इंडिया) और माओवादियों का गढ़ रहा है। इसी कारण आम पर्यटक यहां की प्राकृतिक छटा का आनंद नहीं ले पाते। पांचवीं अनुसूची और पत्‍थलगड़ी के नाम पर समानांतरण शासन व्‍यवस्‍था चलाई जाती रही है। बाहरी लोगों का गांवों में प्रवेश वर्जित किया जाता है। इसी की आड़ में बड़े पैमाने पर यहां अफीम की खेती लंबे समय से हो रही है। पांचवी अनुसूची और पत्‍थलगड़ी के तहत ग्रामसभा का ऐसा खौफ या प्रभाव कि अनेक गांवों में केंद्रीय योजनाओं शौचालय, शिक्षा, आधारकार्ड, मुफ्त गैस कनेक्‍शन जैसी योजनाओं का भी लाभ नहीं लेते। बल्कि समानांतर मुद्रा चलाये जाने की भी बात हुई थी। यह वही खूंटी है जहां 2017 में जिला मुख्‍यालय से कोई बीस किलोमीटर दूर कांकी-सिलादोन गांव के निकट ग्रामीणों ने एसपी, डीएसपी, एसडीओ, अनेक मजिस्‍ट्रेट सहित कोई डेढ़ सौ जवानों को रात भर बंधक बनाये रखा था। जमीन पर बैठाये रखा। ये लोग पत्‍थलगड़ी के तहत लगाये गये पत्‍थरों को हटाने गये थे। ग्राम सभा ने इन पत्‍थरों को गांव के सीमाने पर पांचवी अनुसूची के हवाले से लगाया था जिसमें विधायक, सांसद या किसी भी अधिकारी या बाहरी के प्रवेश पर रोक का संदेश था। दूसरे बड़े अधिकारी रांची से पहुंचे मगर हिम्‍मत नहीं हुई कि गांव के भीतर प्रवेश करें। अगले दिन तत्‍कालीन डीजीपी डीके पांडेय पहुंचे तक किसी तरह बात बनी।

गांव-गांव में यहां पत्‍थलगड़ी की आड़ में पीएलएफआइ और माओवादी अफीम की खेती कराते हैं। पुलिस अधीक्षक मानते हैं कि तीन सालों में इसमें कमी आई है इसके बावजूद दो साल में करीब एक सौ किलो अफीम जब्‍त की गई। छह हजार किलो अफीम का डोडा जब्‍त किया गया और अफीम के धंधे से जुड़े स्‍थानीय और बाहरी कोई डेढ़ सौ लोगों को पकड़ा गया। करीब एक हजार एकड़ में पोस्‍ता जिससे अफीम तैयार होता है की फसल नष्‍ट की गई। इस उपलब्धि को इस रूप में मामूली मान सकते हैं कि जंगली और भीतरी इलाके ऐसे हैं जहां पगडंडियों से होकर कई किलोमीटर भीतर जाना होगा। जहां पुलिस की पहुंच नहीं है। हिम्‍मत भी नहीं है।

Advertisement

खूंटी की दूसरा चेहरा यह भी है कि सरकार की पहल के बाद यहां सैकड़ों की संख्‍या में सेल्‍फ हेल्‍प ग्रुप बना महिलाएं विभिन्‍न प्रकार के काम कर आत्‍मनिर्भर हो रही हैं। अब यहां गेंदे के फूल की खेती पर फोकस किया जा रहा है। पत्रकार दिलीप कुमार के अनुसार दो दर्जन गांवों में 500 एकड़ से अधिक भूमि पर अब गेंदे के फूल उपजाये जा रहे हैं। गेंदे की खेती में मूलत: महिलाएं जुड़ी हुई हैं। गेंदा से दीपावली और छठ में अच्‍छा मुनाफा कमाया है। सहकारी समिति भी इनसे फूलों की खरीद करती है। पांच रुपये के पौधे से एक सीजन में चालीस-पचास रुपये तक के फूल निकल जाते हैं। मुरहू, अड़की, तोरपा आदि के गांवों में हजारों परिवार गेंदा उपजाने में जुटे हैं। इसमें फायदा तो है मगर अफीम के आगे कुछ नहीं। गेंदे की खुशबू फैली तो खूंटी को अफीम के कलंक से राहत मिल सकती है।

अब आप हिंदी आउटलुक अपने मोबाइल पर भी पढ़ सकते हैं। डाउनलोड करें आउटलुक हिंदी एप गूगल प्ले स्टोर या एपल स्टोरसे
TAGS: jharkhand, notorious, opium, cultivation, lilies, wonders
OUTLOOK 28 November, 2020
Advertisement