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12 March 2021

झारखंड: कांग्रेस में बढ़ा अंतर्कलह, आलाकमान के लिए नया संकट

प्रतीकात्मक तस्वीर

ज्‍यादा सीटें हासिल होने के बाद सरकार में शामिल झारखंड कांग्रेस आत्‍ममुग्‍ध अंदाज में है। एक तरफ गुटबाजी है तो दूसरी तरफ केंद्र के अनिर्णय की स्थिति। ऐसे में चंद नेताओं का सिक्का भले चल रहा हो मगर पार्टी की सेहत पर बुरा असर पड़ रहा है। अनिर्णय से अनुशासनहीनता बढ़ रही है तो गुटबाजी के कारण माकुल हालात के बावजूद जनाधार वाले लोगों को काम का मौका नहीं मिल रहा।

हाल ही जब पेट्रोलियम पदार्थों में मूल्‍य वृदि्ध को लेकर केंद्र की भाजपा सरकार के खिलाफ आंदोलन की रणनीति बन रही थी कांग्रेस के प्रदेश कार्यालय में पार्टी के प्रदेश अध्‍यक्ष डॉ रामेश्‍वर उरांव और संसदीय कार्य मंत्री आलमगीर आलम के सामने ही पार्टी के प्रदेश कार्यकारी अध्‍यक्ष राजेश ठाकुर और प्रवक्‍ता आलोक दुबे जमकर भिड़ गये। किसी पर कोई अनुशासनात्‍मक कार्रवाई नहीं हुई। याद होगा अकसर प्रदेश प्रभारी आरपीएन सिंह की खिंचाई करने वाले कांग्रेस के वरिष्‍ठ नेता पूर्व सांसद फुरकान अंसारी ने राहुल गांधी और केंद्रीय नेतृत्‍व पर ही सवाल उठा दिया था। तब उन्‍हें कारण बताओ नोटिस जारी किया गया। एक सप्‍ताह की मोहलत दी गई। फुरकान ने जवाब देना भी मुनासिब नहीं समझा। आज तक क्‍या कार्रवाई हुई, नेतृत्‍व ही जानता है। फुरकान के समर्थन में उनके पुत्र इरफान अंसारी जो प्रदेश कांग्रेस के कार्यकारी अध्‍यक्ष हैं भी बोलते रहे। इरफान अपने बड़बोलेपन के कारण अकसर सुर्खियों में रहते हैं। मगर पार्टी कुछ नहीं बोलती।

कांग्रेस के वरिष्‍ठ नेता पूर्व केंद्रीय गृह मंत्री सुबोधकांत सहाय भी प्रदेश कांग्रेस प्रभारी आरपीएन सिंह के खिलाफ खुलकर बोलते रहे हैं। मगर पार्टी खामोश रहती है। हकीकत यह भी है कि जमीनी पकड़ वाले सुबोधकांत और मुस्लिम वोटरों पर गहरी पकड़ रखने वाले फुरकान जैसे लोगों का पार्टी अपने हित में इस्‍तेमाल भी नहीं करती। इसी तरह पार्टी में पुनर्वापसी के बाद पूर्व प्रदेश अध्‍यक्ष डॉ अजय कुमार अपने स्‍तर से भाजपा के खिलाफ सोशल मीडिया और अपने आलेखों के जरिये निरंतर अभियान चलाते रहते हैं। आइपीएस अधिकारी रहे डॉ अजय पार्टी के लिए बौदि्धक संपदा की तरह है।

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पार्टी के एक वरिष्‍ठ नेता कहते हैं कि चेहरा देखकर काम हो रहा है। संगठन को मजबूत बनाना है तो चेहरा नहीं प्रभाव देखकर जिम्‍मेदारी सौंपनी होगी। विधानसभा चुनाव के बाद जेविएम से कांग्रेस में शामिल हुए जमीनी नेता और आदिवासियों में पकड़ रखने वाले आंदोलन की उपज बंधु तिर्की जनगणना में आदिवासी धर्म कोड का मामला हो या दूसरे मुद्दे अपने बूते आंदोलन करते रहते हैं। पार्टी के दूसरे बड़े आदिवासी नेताओं को इनसे थोड़ी परेशानी है। इसी तरह संतालपरगना में अपनी पहचान रखने वाले प्रदीप यादव को इरफान सहित संताल में प्रभाव रखने वाले नेता सहजता से ग्रहण नहीं कर पा रहे। सत्‍ता में रहने के बावजूद इनके पार्टी विधायक की मान्‍यता भी फंसी हुई है। फरवरी की ही बात है केंद्रीय कृषि कानूनों के खिलाफ आक्रोश रैली के क्रम में सरायकेला खरसावां में भीड़ जुटाने के लिए मंच पर 'लैला मैं लैला' के धुन पर ठुमके लगे। यह कांग्रेस की संस्‍कृति नहीं रही है उसी दौरान गिरिडीह में मंच पर स्‍थान को लेकर प्रदेश अध्‍यक्ष रामेश्‍वर उरांव और कार्यकारी अध्‍यक्ष इरफान अंसारी के सामने ही कार्यकर्ताओं में कुर्सी चल गई। क्‍या कार्रवाई हुई किसी को नहीं पता। लोकसभा चुनाव के बाद तो 2019 में सुबोधकांत सहाय और तत्‍कालीन प्रदेश अध्‍यक्ष डॉ अजय कुमार के समर्थकों में पार्टी कार्यालय पर कब्‍जे को लेकर टकराव हो गया था, पुलिस को लाठी चार्ज करना पड़ा जिसमें अनेक कार्यकर्ता घायल हो गये थे। बाद में अजय कुमार पार्टी से निकल लिये मगर पार्टी नेतृत्‍व ने क्‍या किया। कार्रवाई नहीं हुई तो इस तरह की घटनाओं की पुनरावृति्त होती रही।

पार्टी के दो पूर्व प्रदेश अध्‍यक्ष प्रदीप बालमुचू और सुखदेव भगत पार्टी में वापसी के लिए एक साल से चक्‍कर लगा रहे हैं। दोनों मिलकर एक दशक से अधिक प्रदेश अध्‍यक्ष की भूमिका में रहे। मगर पार्टी ने अभी तक कोई निर्णय नहीं लिया। कांग्रेस से भाजपा में गये सुखदेव भगत का कांग्रेस के प्रति झुकाव देख भाजपा ने पार्टी से बाहर कर दिया। समय रहते कांग्रेस ने उनकी वापसी पर मुहर लगा दी होती तो संदेश जाता कि पार्टी ने भाजपा से सुखदेव को तोड़ा। दरअसल सुखदेव को प्रदेश अध्‍यक्ष रामेश्‍वर उरांव पसंद नहीं करते। इसी बड़ी वजह यह है कि भाजपा में जाने के बाद सुखदेव, रामेश्‍वर उरांव के खिलाफ ही लोहरदगा से चुनाव लड़े थे। प्रदीप बालमुचू के प्रति रामेश्‍वर उरांव का साफ्ट कार्नर है, के बावजूद कांग्रेस में इंट्री नहीं हो रही है। वहीं पूर्व प्रदेश अध्‍यक्ष अजय कुमार की वापसी हुई तो प्रदेश अध्‍यक्ष रामेश्‍वर उरांव को तब जानकारी मिली जब दिल्‍ली से उनकी ज्‍वाइनिंग का आदेश आ गया। उनको नापसंद करने वाले सुबोधकांत ने भी प्रतिकूल टिप्‍पणी की थी। सरकार चलाने के लिए साझा न्‍यूनतम कार्यक्रम, समन्‍वय समिति, पार्टी के भीतर समन्‍वय के लिए समिति या फिर बोर्ड-निगम और बीस सूत्री समितियों में कार्यकर्ताओं के समायोजन का मामला, एक साल से अधिक हो गये निर्णय नहीं हुआ है। खुद कांग्रेसजनों के मन में सवाल उठता रहता है, कांग्रेस को क्‍या हो गया है।

पार्टी के प्रदेश कार्यकारी अध्‍यक्ष राजेश ठाकुर कहते हैं कि कुछ चीजें लंबित हैं, जल्‍द इन पर निर्णय होना है। देर हो रहा है मगर निर्णय दुरुस्‍त होगा। पांच राज्‍यों में विधानसभा चुनाव हो रहा है। पार्टी का पूरा फोकस उधर ही है।

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TAGS: Diffusion in Congress in Jharkhand, झारखंड कांग्रेस, Jharkhand Congress, प्रदेश अध्‍यक्ष डॉ रामेश्‍वर उरांव, State President Dr. Rameshwar Oraon, भाजपा सरकार के खिलाफ आंदोलन, झारखंड में कांग्रेस की राजनीति, Congress politics in Jharkhand
OUTLOOK 12 March, 2021
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