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01 October 2015

स्वच्छ भारत अभियान की अस्वच्छ सच्‍चाई

भाषा सिंह

स्वच्छ भारत अभियान को एक साल हो गए। इस दौरान एक राष्ट्रीय परिघटना घटित हुई कि केंद्र की नरेंद्र मोदी की सरकार ने महात्मा गांधी को सिर्फ औऱ सिर्फ साफ-सफाई यानी सेनिटेशन तक सीमित करके रख दिया। इससे भी जमीनी स्तर पर कुछ हासिल हुआ हो, इसके कोई ठोस प्रमाण नहीं हैं। बहरहाल स्वच्छ भारत अभियान से देश के सफाई कर्मियों का न तो कुछ भला होना था और न ही हुआ। देश की राजधानी दिल्ली में सफाई कर्मी बनवारी लाल की आत्महत्या इस बात का जीता-जागता उदाहरण है। महज 45 वर्षीय बनवारी लाल ने इसलिए आत्महत्या कर ली कि उन्हें अपने वेतन की बकाया राशि का भुगतान नहीं हो रहा था। वह नगरपालिका से इसके लिए लंबे समय से मांग कर रहे थे। वेतन न मिलने की वजह से उन पर बहुत कर्जा चढ़ गया था और वह बेहद परेशान थे। 

banwari lal-sanitation worker

1000 से अधिक सफाई कर्मियों की जानें गई गटर में

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इसके अलावा, देश भर के सफाई कर्मचारी बद से बदतर हालात में देश को साफ करने के लिए मजबूर हैं। उनकी जान जोखिम में है। वे सीवर में मर रहे हैं, सेप्टिक टैंक में मर रहे हैं और खुली नालियों में बह रहे मानव मल को साफ करते हुए अपनी जान हलाक कर रहे हैं। इस बारे में केंद्र सरकार ने राष्ट्रीय स्तर पर कोई आंकड़ा जुटाने का प्रयास तक नहीं किया है। मैला प्रथा के खात्मे के लिए सक्रिय संगठन सफाई कर्मचारी आंदोलन ने देश भर से 1000 सफाई कर्मचारियों की मौत का आंकड़ा अपने संसाधनों के जरिये जुटाया है। इन मौतों पर न तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी कुछ बोलने के लिए तैयार हैं और न ही उनका कोई दूसरा मंत्री। ऐसा लगता है कि 2,500 करोड़ रुपये के स्वच्छ भारत अभियान के लिए सफाई कामगारों की स्थिति, उनका जीवन और मौत कोई चिंतनीय विषय ही नहीं थे। देश की राजधानी सहित देश के तमाम शहरों में पिछले एक साल के भीतर सीवर और सेप्टिक टैंक साफ करते हुए सफाई कर्मचारियों की मौतों का सिलसिला अनवरत जारी रहा। इन मौतों, जिन्हें सोची-समझी हत्याएं माना जाता है, पर किसी ने एक शब्द का भी अफसोस जाहिर नहीं किया। स्वच्छता मिशन के तारनहार प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी नहीं। 

कचरे के खुले ढेर वैसे के वैसे हैं। उन्हें साफ करने के लिए वैसे ही बच्चों और महिलाओं की टोलियां दिखाई पड़ती है। कचरे साफ करने और मैले को साफ करने के काम को आधुनिक बनाने, मानव गरिमा की रक्षा सुनिश्चित करने की कोई कोशिश नहीं हुई।  

केंद्र ने सेनिटेशन को आधुनिक बनाने के लिए कोई प्रयास नहीं

ठीक एक साल पहले देश में स्वच्छ भारत अभियान की जो हाई प्रोफाइल शुरुआत की गई थी, जिसमें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से लेकर तमाम मंत्री, मुख्यमंत्री, नौकरशाह, अकादमियां सब झाड़ूं लेकर फोटो खिंचवाने में व्यस्त दिखाई दिए थे, उन्होंने साल भर में दोबारा फोटो-शॉट के लिए भी झाड़ूू पकड़ा हो‚ ऐसा याद नहीं पड़ता। इस बीच सफाई कर्मचारियों के अपने बकाया वेतन के लिए, काम की बेहतर सुविधा के लिए और जीने के हक के लिए कई धरना-प्रदर्शन हुए, लेकिन जाति पर टिकी इस सेनिटेशन प्रणाली को दुरुस्त करने के लिए कोई कदम नहीं उठाया गया।

स्वच्छ भारत अभियान शौचालय निर्माण अभियान का पर्याय बना दिया गया। सरकारी आंकड़ों के अनुसार देश में 11 करोड़ शौचालय बनाने की जरूरत है, तब जाकर हर घर में शौचालय होगा। केंद्र सरकार का दावा है कि उसने पिछले छह महीने में करीब 31.5 लाख घरों को कवर किया है। सरकार को कायदे से इसके साथ यह भी आंकड़ा देना चाहिए था कि इन शौचालयों को सीवर से जोड़ने का क्या प्रबंध किया गया। क्या ये सारे शौचालय सीवर से जुड़े हैं या इनका मैला खुले नालों में गिर रहा है? इन सारे सवालों पर सरकार की चुप्पी है। सेनिटेन प्रणाली भारत में पूरी तरह से जाति आधारित है। इसे आधुनिक किए बगैर कैसे शौचालयों, सीवरों की सफाई सुनिश्चित की जा सकती है? इस पर जातिगत सोच चुप है। ऐसे में शौचालय निर्माण पर एक कंस्ट्रक्शन उद्योग को बढ़ावा देनी की जुगत में तब्दील होने खतरा मंडराता रहेगा।

एक बार फिर 2 अक्टूबर को सेनिटेशन दिवस स्वच्छता दिवस के रूप में मनाने के लिए सरकारें पैसा खर्च करने को आकुल-व्याकुल होंगी, लेकिन इससे देश साफ करने वालों की अमानवीय परिस्थितियों में रत्ती भर फर्क नहीं पड़ने जा रहा है। 

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TAGS: स्वच्छ भारत, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, महात्मा गांधी, swachh bharat, reality check, sewer deaths, suicide, garbage, cleanigness
OUTLOOK 01 October, 2015
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