Advertisement
28 December 2016

नव वर्ष में ‘अंगूठा छाप’ स्वागत

गूगल

इसलिए ‘डिजिटल युग’ का स्वागत करने में कैसे पीछे रह सकता है? कंप्यूटर ही नहीं सुपर कंप्यूटर और परमाणु ऊर्जा के साथ आधी दुनिया तक पहुंच वाली परमाणु अग्नि मिसाइल बनाने वाले देश के गांव में ‘मोबाइल-डिजिटल बटुआ’ दिलाने के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के अभियान का भी भोले-भाले लोग नतमस्तक हो स्वागत कर रहे हैं। इस अभियान में बिछी कांटेदार कठिनाइयों और संघर्ष की दास्तान 2017 और बाद में भी लिखी जाती रहेंगी। सफलता के लिए ‘आधार’- ‘अंगूठा छाप’ है। सरकारी दावा यह है कि ‘अंगूठा छाप’ से बैंकिंग की क्रांतिकारी व्यवस्‍था दुनिया में अनूठी है। पिछले कुछ वर्षों से दुनिया के संपन्न आधुनिक देश पासपोर्ट-विदेश यात्रा की अनुमति वाले वीजा इत्यादि के लिए अंगूठे, ऊंगलियों, आंखों की पहचान के इलेक्ट्रानिक रिकार्ड बनाने लगे हैं, ताकि संदिग्‍ध स्थिति में अपराधी को रोका जा सके। भारत में भी नागरिक की पहचान के लिए बड़े पैमाने पर ‘आधार’ कार्ड बन गए हैं। निश्चित रूप से इसका लाभ हो रहा है। लेकिन रुपये के लेन-देन के लिए ‘अंगूठा छाप’ का ‘आधार’ कुछ पेचीदा लगता है, क्योंकि इसके ‌लिए बैंक के खाते और उसमें निरंतर कुछ धन रखने की अनिवार्यता है। देश में अब भी करोड़ों गरीब मजदूर-किसान दैनंदिन की कमाई से ही जीवन-यापन करते हैं। सुदूर गांवों में लाखों लोगों को न्यूनतम शिक्षा सुविधा नहीं मिल पाई है। नव वर्ष में मोबाइल, लेपटॉप की सुविधाओं के विस्तार से बड़ी प्राथमिकता करोड़ों बच्चों और उनके परिजनों को भी शिक्षित और स्वस्‍थ रखने की है, ताकि वे विकास की अर्थव्यवस्‍था से जुड़ सकें।

असल में ‘अंगूठा छाप’ हम जैसे ग्रामीण पृष्ठभूमि वाले लोगों के लिए बहुत मायने रखता है। जिस गांव में कोई बिजली, सड़क, नलकूप, बस, रेल नहीं होती थी, एक कमरे वाले स्कूल में मेरे शिक्षक पिता अन्य बच्चों के साथ मुझे भी ध्यान से पढ़ने-लिखने की हिदायत देते हुए कहते थे- ‘नहीं पढ़ोगे तो क्या अंगूठा छाप रहोगे?’ यह फटकार बच्चों के साथ उनके पिता-माता पर भी असर डालती थी। उनको उत्साह आया, तो कुछ महिलाओं के लिए प्रौढ़ शिक्षा की व्यवस्‍था हुई। उन्हें साक्षर बनाने का दायित्व मेरी मां ने संभाल लिया। 60 वर्षों के दौरान उस स्कूल का थोड़ा विस्तार हो चुका है और हजारों गांवों में स्कूल खुल गए हैं। लेकिन मध्य प्रदेश सहित विभिन्न राज्यों और राजधानी दिल्ली तक के सरकारी स्कूलों में शिक्षकों की कमी है। इसलिए ‘‌डिजिटल क्रांति’ के बावजूद ‘अंगूठा छाप’ यानी निरक्षर न रखने के अभियान के दृढ़ संकल्प और बड़े पैमाने पर बजट का प्रावधान करने की जरूरत है। यह काम सरकार के अलावा विभिन्न धर्मों के उपासना स्‍थलों, न्यासों, संस्‍थानों, कारपोरेट घरानों के सहयोग से भी बढ़ सकता है। इसके साथ दिल्ली की तरह ‘मोहल्ला क्लिनिक’ के प्रयोग को संपूर्ण देश के कस्बों-गांवों तक लाने का लक्ष्य बनाकर बड़े बजट की व्यवस्‍था हो सकती है। फिर चाहे सड़क बनानी हो या उद्योग-धंधे, खेती किसानी करनी हो, स्वास्‍थ्य और शिक्षित जनता देश को सशक्त और समृद्ध करने में योगदान देगी। पंचायत, पालिका से विधानसभा और लोकसभा स्तर तक के चुनावों में जागरूक मतदाताओं से लोकतंत्र मजबूत होगा। सो, 2017 में अधिक सफल सशक्त लोकतंत्र राष्ट्र के आगे बढ़ने की शुभकामनाएं।

अब आप हिंदी आउटलुक अपने मोबाइल पर भी पढ़ सकते हैं। डाउनलोड करें आउटलुक हिंदी एप गूगल प्ले स्टोर या एपल स्टोरसे
TAGS: स्वागत, नया साल, भारत, नोटबंदी, किसान, अनपढ़, अंगूठा छाप
OUTLOOK 28 December, 2016
Advertisement