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14 February 2017

मानसिक रूप से बीमार लोगों के लिये राष्ट्रीय नीति तैयार की जाए: न्यायालय ने केंद्र से कहा

पीठ ने कहा, हमारी सुविचारित राय है कि केन्द्र सरकार इस राष्टीय नीति या मानदंडों को अंतिम रूप देने में हमारी मदद करेगी जिन्हें मानसिक रोगी के इलाज से ठीक हो जाने के बावजूद मानसिक रोगी अस्पतालों में रखे जाने के बारे में पूरे देश में अपनाया जाना चाहिए। इस संबंध में पूरे देश के लिए एक समान राष्ट्रीय नीति होनी चाहिए। न्यायालय ने याचिकाकर्ता वकील से कहा कि वह सुनिश्चित करे कि इस मामले में शीर्ष अदालत के नोटिस की केन्द्र सरकार और अन्य सभी पर तामील हो जाए।

इससे पहले, न्यायालय ने इस मामले में छह राज्यों को नोटिस जारी किये थे। उत्तर प्रदेश, पश्चिम बंगाल, राजस्थान, केरल, जम्मू कश्मीर और मेघालय से न्यायालय ने जानना चाहा था कि ऐसे लोग जो मानसिक रोगी अस्पतालों से छुट्टी पाने के लिए पूरी तरह फिट हैं, उन्हें अभी भी वहां क्यों रखा जा रहा है। याचिका में आरोप लगाया गया है कि मानसिक रोगों का इलाज हो जाने के बावजूद गरीब तबके के अनेक लोग अभी भी इन अस्पतालों में ही हैं और अस्पताल से छुट्टी मिलने के बाद उनकी देखभाल सुनिश्चित करने के लिए कोई नीति ही नहीं है।

याचिका में ऐसे रोगियों के ठीक हो जाने के बावजूद उत्तर प्रदेश के बरेली, वाराणसी और आगरा के मानसिक रोगी अस्पतालों में रहने वाले व्यक्तियों की रिहाई के बारे में सूचना के अधिकार कानून के तहत मिले जवाबों का भी हवाला दिया गया है। सूचना के अधिकार कानून के तहत मानसिक चिकित्सा अस्पताल, बरेली, मानसिक स्वास्थ्य विग्यान केंद्र एवं अस्पताल, आगरा और मानसिक रोगी अस्पताल, वाराणसी से पूछे गये सवाल ऐसे मरीजों, जो अब सामान्य हो गये हैं और इन अस्पतालों से छुट्टी मिलने का इंतजार कर रहे हैं, के नाम, रिहाइशी पते और उम्र आदि से संबधित थे। बंसल ने यह भी जानना चाहा था कि किस साल में इन मरीजों को अस्पताल से छुट्टी के लिये पूरी तरह स्वस्थ घोषित किया गया था। इस याचिका में राज्यों और अन्य को तत्काल पूरी तरह सामान्य हो चुके मरीजों को इन अस्पतालों से वृद्धाश्रम जैसे दूसरे स्थानों पर भेजने की व्यवस्था करने का निर्देश देने का भी अनुरोध किया गया है।

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TAGS: उच्चतम न्यायालय, मानसिक बीमारी, उपचार, अस्पताल
OUTLOOK 14 February, 2017
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