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03 December 2017

तीन तलाक पर ‘डर पैदा करने’ के लिए कानून आवश्यक: अल्पसंख्यक आयोग

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तीन तलाक (तलाक-ए-बिद्दत) के खिलाफ विधेयक पेश करने के केंद्र सरकार के कदम पर कुछ मुस्लिम संगठनों के विरोध को खारिज करते हुए राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग के अध्यक्ष सैयद गैयूरुल हसन रिजवी ने कहा है कि उच्चतम न्यायालय के आदेश के बाद भी लोग तीन तलाक देने से बाज नहीं आ रहे हैं और ऐसे में ‘‘डर पैदा करने के लिए’’ कानून की जरूरत है।

रिजवी ने पीटीआई  से कहा, ‘‘उच्चतम न्यायलय ने तीन तलाक के खिलाफ बड़ा फैसला दिया, लेकिन बहुत सारे लोग तीन तलाक देने से बाज नहीं आ रहे हैं। हाल में ऐसी कई घटनाएं सामने आई हैं जब लोगों ने व्हाट्सऐप और फोन पर तलाक दिए।’’ उन्होंने कहा, ‘‘लोगों में डर पैदा करने के लिए तीन तलाक के खिलाफ कानून की जरूरत है। कानून में सजा का प्रावधान होगा तो लोग डरेंगे और तीन तलाक के पूरी तरह खात्मे में मदद मिलेगी।’’ रिजवी ने कुछ मुस्लिम संगठनों के विरोध को खारिज करते हुए कहा, ‘‘जो पहले से तीन तलाक के पक्ष में खड़े थे वो आज कानून बनाए जाने का विरोध कर रहे हैं। मुस्लिम समाज और खासकर महिलाओं के भले के लिए कानून बनाया जाना जरूरी है।’’ केन्द्र के प्रस्तावित कानून के मसौदे में कहा गया है कि एक बार में तीन तलाक गैरकानूनी होगा और ऐसा करने वाले पति को तीन साल तक के कारावास की सजा हो सकती है।

‘मुस्लिम महिला विवाह अधिकार संरक्षण विधेयक’ के मसौदे को बीते शुक्रवार को राज्य सरकारों के पास उनका नजरिया जानने के लिए भेजा गया।

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यह मसौदा गृह मंत्री राजनाथ सिंह की अध्यक्षता वाले एक मंत्री स्तरीय समूह ने तैयार किया है। इसमें अन्य सदस्य विदेश मंत्री सुषमा स्वराज, वित्त मंत्री अरुण जेटली, विधि मंत्री रविशंकर प्रसाद और विधि राज्यमंत्री पी पी चौधरी थे। जमात-ए-इस्लामी हिंद सहित कुछ मुस्लिम संगठनों ने कानून बनाने की दिशा में उठाए गए सरकार के कदम को पर्सनल लॉ और मौलिक अधिकार के मामलों में हस्तक्षेप करार दिया है।

जमात के अध्यक्ष मौलाना सैयद जलालुद्दीन उमरी ने कहा, ‘‘यह (विधेयक लाया जाना) हमारी शरीयत, पर्सनल लॉ और मौलिक अधिकारों के मामले में दखलअंदाजी है। सरकार को संवैधानिक मूल्यों के खिलाफ काम करने का कोई हक नहीं है।’’

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TAGS: Law, required, 'create fear, triple Talaq, Minority Commission
OUTLOOK 03 December, 2017
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