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08 August 2016

देर सही, दुरुस्त हो जाएं

गूगल

लेकिन आश्चर्य की बात यह है कि गोरक्षा के नाम पर सक्रिय 17 संगठनों ने विरोध में झंडा खड़ा कर दिया है। यदि कोई संगठन या व्यक्ति कानून का पालन कर केवल सेवा का काम कर रहा हो, तो उसे किस बात का भय होना चाहिए? प्रधानमंत्री के इस तर्क का महत्व समझा जाना चाहिए कि प्लास्टिक जैसा कचरा एवं गंदगी खाने या देखभाल नहीं करने से मरने वाली गायों की संख्या अवैध रूप से मांस के लिए कटने वाली गायों से अधिक है। निश्चित रूप से देश में गोशाला चलाने वाली कई सामाजिक संस्‍थाएं कमजोर गायों की अच्छी देखभाल कर रही हैं। लेकिन गाय से दूध या अन्य कोई लाभ न मिल पाने के कारण कई सक्षम अथवा गरीब लोग गायों को सड़कों पर भटकने के लिए छोड़ देते हैं। नगर पालिका और नगर निगमों का दायित्व है कि उन्हें ‘आवारा पशु’ की श्रेणी में दर्ज कर रखना पड़ता है। ये पालिकाएं-निगम न तो अपनी ड्युटी पूरी निभाती हैं और न ही अपने पशु रखाव केंद्र को चला पाती हैं। नतीजा यह होता है कि बड़ी संख्या में गायों की देखभाल होने के बजाय वे बीमारी और मौत की शिकार होती हैं। राजस्‍थान में तो ऐसी अव्यवस्‍था से सैकड़ों गाय स्‍थानीय शासन द्वारा संचालित केंद्र में ही मर गईं। केंद्र के संचालक और शासन ने चारा डालने वाले मजदूरों को ही तीन-चार महीने से मजदूरी नहीं दी थी। मतलब मजदूरों का दाना-पानी बंद होने पर गाय का चारा ही मिलना बंद हो गया। अब वसुंधरा सरकार जांच-पड़ताल का ढोंग कर रही है। दूसरी तरफ राजनीति के साथ सांप्रदायिक आतंक पैदा करने वाले असामाजिक तत्व अपना प्रभाव बढ़ाने के लिए गोरक्षा के नाम पर वैधानिक ढंग से पशुओं को एक क्षेत्र से दूसरे प्रदेश या मंडी तक ले जाने वाले सामान्य मजदूरों, ट्रक ड्राइवरों के साथ क्रूरतम मारपीट एवं आगजनी तक कर रहे हें। इसी तरह पूर्वाग्रह से दलित या मुस्लिम समुदाय के किसी गरीब परिवार से ‘बीफ’ की आशंका के आधार पर हत्या तक करने लगे हैं। ऐसा अमानवीय और गैरकानूनी रवैया किसी भी देश की लोकतांत्रिक व्यवस्‍था में कैसे स्वीकारा जा सकता है? प्रधानमंत्री द्वारा गैरकानूनी घोषित किए जाने वाले निंदनीय कृत्य के समर्थन में किसी प्रदर्शन को भी क्या उचित कहा जा सकेगा? जरूरत तो इस बात की है कि अब तक कानून तोड़ रहे लोगों पर त्वरित कार्रवाई के साथ दंडित किया जाए।

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TAGS: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, गौरक्षा, कट्टरपंथियों, फटकार, असामाजिक तत्व, सरकारी मशीनरी, हिंदू संगठन, आलोक मेहता
OUTLOOK 08 August, 2016
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