Advertisement
24 August 2017

सरकार और आधार को झटका, सुप्रीम कोर्ट ने कहा - निजता का अधिकार है मौलिक अधिकार

निजता का अधिकार आपका मौलिक अधिकार है। सुप्रीम कोर्ट की नौ जजों की संविधान पीठ ने सर्वसम्मति से निजता के अधिकार को संविधान के अनुच्छेद-21 के तहत "जीने के अधिकार" और "व्यक्तिगत स्वतंत्रता" का हिस्सा बताया। इस फैसले को केंद्र सरकार और आधार के लिए बड़ा झटका माना जा रहा है। पीठ ने 1954 और 1962 के उन फैसलों को खारिज कर दिया है जिनमें निजता को मौलिक अधिकार नहीं माना गया था। 

इस ऐतिहासिक फैसले के बाद अब सरकार, बैंक, टेलीकॉम कंपनियों, पुलिस, प्रशासन आदि पर नागरिकों की निजता के अधिकार को भंग न होने देने की जिम्मेदारी बढ़ गई है। निजता और व्यक्तिगत डेटा की गोपनीयता को लेकर सवालों से घिरे आधार नंबर की अनिवार्यता पर भी फैसला का असर पड़ सकता है। हालांकि, आधार के मुद्दे पर सुप्रीम कोर्ट के पांच जजों की बेंच अलग से फैसला लेगी। लेकिन आधार से जुड़े मुकदमे के चलते ही निजता का मामला संविधान पीठ के समक्ष पहुंचा था। 

आधार पर क्यों पड़ सकता है असर?

Advertisement

प्राइवेसी यानी निजता को लेकर बहस की शुरुआत आधार योजना की वजह से ही हुई थी। आधार को केंद्र सरकार ने पैन कार्ड बनवाने, आयकर रिटर्न भरने समेत कई सुविधाओं और योजनाओं के लिए जरूरी कर दिया था, जिसके खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल की गईं। याचिकाकर्ताओं की दलील है कि बायोमीट्रिक डाटा और सूचनाएं एकत्र करने से उनके निजता के हनन और गोपनीयता भंग होना का खतरा है। तब केंद्र सरकार के वकीलों ने निजता के अधिकार की मौलिकता पर ही सवाल खड़ा कर दिया। उस समय आधार मामले की सुनवाई तीन जज कर रहे थे। उन्होंने सरकारी वकील की दलील मानी और निजता के सवाल को संविधान पीठ के हवाले कर दिया था। हालांकि, नौ जजों की संविधान पीठ ने आधार को लेकर कुछ नहीं कहा है लेकिन निजता को मौलिक अधिकार करार दिए जाने से आधार के खिलाफ याचिकाकर्ताओं को मजबूत दलील मिल गई है। 

अभी तक केंद्र के 19 मंत्रालयों की 92 योजनाओं के तहत एलपीजी सब्सिडी, फूड सब्सिडी और मनरेगा आदि के लिए आधार का इस्तेमाल किया जाने लगा है। देश भर में करीब 67 करोड़ बैंक अकाउंट आधार से लिंक हो चुके हैं। आधार बनवाने के लिए लोगों को अभी बायोमैट्रिक डिटेल्स में 10 फिंगर प्रिंट्स, 2 आइरिस स्कैन और फेस स्कैन शेयर करने होते हैं। हालांकि, डेटा की गोपनीयता एक अलग मुद्दा है लेकिन सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले से आधार के पक्ष में सरकार का पक्ष कमजोर होता नजर आ रहा है। 

सरकार को झटका

केंद्र सरकार ने इस मसले पर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई के दौरान अपना पक्ष रखा था जिसमें केंद्र सरकार की ओर से एडिशनल सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने दलील दी थी कि आज का दौर डिजिटल का है, जिसमें राइट टू प्राइवेसी जैसा कुछ नहीं बचा है। सरकार निजता के अधिकार को मौलिक अधिकार मानने के पक्ष में नहीं थी। इसलिए इस फैसले को सरकार के लिए झटका माना जा रहा है। वकील प्रशांत भूषण ने कहा कि अगर सरकार कल कहे कि आप कुछ खरीदें या ट्रेन से ट्रेवल करें तो उसके लिए भी आधार देना होगा तो इसे राइट टू प्राइवेसी के मौलिक अधिकार का हनन माना जाएगा।

 

 

अब आप हिंदी आउटलुक अपने मोबाइल पर भी पढ़ सकते हैं। डाउनलोड करें आउटलुक हिंदी एप गूगल प्ले स्टोर या एपल स्टोरसे
TAGS: Government, aadhar, shock, right to privacy, declares, fundamental, rights, आधार, केन्द्र सरकार, निजता, कोर्ट, फैसला
OUTLOOK 24 August, 2017
Advertisement