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05 October 2016

दीवानों, सेना का नाम बदनाम न करो

आउटलुक

सेना की वर्दी पहनकर वरिष्ठ सेनाधिकारी ने जब स्वयं सामने आकर पाकिस्तानी सीमा में पल रहे कुछ आतंकी ठिकानों पर सफल ऑपरेशन की जानकारी दी, तो वह किसी अंतरराष्ट्रीय एजेंसी से लाख गुना अधिक विश्वसनीय है। केजरीवाल साहब को अपने कई साथियों को भ्रष्ट एवं अपराधी साबित करने वाली वीडियो रिकार्डिंग वाले आरोपों पर भले ही भरोसा न हो, लेकिन उन्हें दुश्मन की सीमा में तबाही मचाने वाले बहादुर सिपाहियों से रात के अंधेरे में जान पर खेलकर कार्रवाई करने वालों से वीडियो रिकार्डिंग मांगने का हक नहीं है। वह तो अपने सुरक्षा गार्डों, मजदूरी पर रखे गए कुछ निजी समर्थक रक्षकों एवं मुख्यमंत्री की कुर्सी के बल पर सुरक्षित रहते हैं, लेकिन सीमा पर लड़ने वाले सिपाही के आगे-पीछे कोई कुर्सी नहीं होती।

महाभारत काल से ‘संजय’ नाम के साथ दिव्य दृष्टि की अपेक्षा होती है। संजय निरूपम झारखंड-बिहार में अंशकालिक ही सही पत्रकारिता के बाद मायानगरी मुंबई में शिव सैनिक के रूप में पत्रकार बन गए थे। सांप्रदायिक सेना से मोहभंग के बाद वह काग्रेसी अवतार में सांसद रहे हैं। इसलिए उन्हें शिवसेना और भारतीय सेना में फर्क समझ में आना चाहिए। चाहे उनकी नीयत खराब न हो, लेकिन इस समय वह राहुल कांग्रेस के मुंबई सिपहसालार बनकर बैठे हैं। उनके बयान से मोदी सरकार या सेना का बाल बांका नहीं हो सकता, लेकिन कांग्रेस की नाक तो कट गई।

ओम पुरी, बहुत काबिल ऐक्टर हैं। संघर्ष करके बॉलीवुड से हॉलीवुड तक उनके अभिनय की धाक जमी है। लेकिन भारत सरकार, भारतीय सेना, पाकिस्तान के आतंकवादी संगठन और उनके आका सेनाधिकारी एवं षड्यंत्रकारी जासूसों के कामकाज का ज्ञान उनको कतई नहीं है। भारतीय सेना की कार्रवाई रामलीला मैदान के राजनीतिक मंचों पर चलने वाली भाषणबाजी भी नहीं है। सबसे बड़ी मुश्किल यह है कि नशे बिना भी उनकी आंखों में लाली और गुस्सा दिखने से टी.वी. पर उनकी टिप्पणियों को ‘नशे में कही गई बकवास’ मानने लगते हैं। वे फिल्मी मुद्दों पर अपनी रेटिंग बढ़ाएं। सेना के विरुद्ध उल्टे-सीधे बयान देकर फिर माफी मांगने के संकट से बचें। भगवान के लिए न सही, इस भारत के लिए सेना को शान से अपना काम करने दें।

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TAGS: केजरीवाल, संजय निरुपम, ओम पुरी, भारतीय सेना, ईमानदारी, राष्ट्रभक्ति, सत्यनिष्ठा, पाकिस्तानी सीमा, आतंकवादी
OUTLOOK 05 October, 2016
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