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05 August 2015

भारतीय रेल: नए हादसे ने हरे किए पुराने घाव

रेलवे को मुनाफे का सौदा बनाने के लिए आतुर रेलवे प्रशासन और केंद्रीय रेल मंत्री सुरेश प्रभु ने रेलवे सुरक्षा और रेलवे लाइन के रख-रखाव, रिक्त पदों की भर्ती की दिशा में कोई ठोस पहल नहीं की है। रेलवे बोर्ड के अधिकारियों का मानना है कि रेलवे में रख-रखाव, सुरक्षा और पटरियों तथा उपकरणों में हो रहे ह्रास (डेप्रिसिएशन) पर न तो पर्याप्त धन खर्च किया जा रहा है और न ही इसे ठीक करने की कोई योजना बन रही है।

इसकी वजह से पिछले कुछ समय में बड़ी संख्या में पटरियों के धसकने, पहियों के जाम होने, पटरियों में टूट होने से संबंधित शिकायतें आ रही है। बड़ी संख्या में गैंगमैन के पद खाली होने से भी पटरियों पर होने वाली गड़बड़ियां सही समय पर नहीं पकड़ी जा पा रही है। रोजाना 12,000 यात्री गाड़ियों और तकरीबन 2.3 करोड़ यात्रियों को वहन करने वाली भारतीय रेलवे में दुर्घटनाओं का सिलसिला लगातार बढ़ता जा रहा है। अकेले इस साल ट्रेन के पटरी से उतरने की कई घटनाएं हो चुकी हैं। मार्च में उत्तर प्रदेश में यात्री ट्रेन के पटरी से उतरने से 34 लोगों की मौत हुई थी। फरवरी में भी पटरी से ट्रेन उतरी थी। पिछले साल फरवरी में 11 यात्रियों की मौत बंगलूर-इरनाकुलम इंटरसिटी एक्सप्रेस के पटरी से उतरने से हुई थी।

हर दुर्घटना के बाद रेलवे प्रशासन कुछ समय के लिए सिस्‍टम सुधारने की बात कहता है, समितियां गठित होती हैं, लेकिन कारगर पहल जमीन पर नहीं होती है। सैम पित्रोदा समिति से लेकर हाल की समितियों में रेलवे के इंफ्रास्ट्रक्चर को मजबूत करने और उसमें निवेश करने का आग्रह किया है। इस दिशा में पहल करने के बजाय सारा जोर और शोर बुलेट ट्रेन और डेडिकेटेड फ्रेट कोरिडोर पर किया जा रहा है। सीमित संसाधन की वजह से यात्री सुविधाएं और इंफ्रास्टक्चर संबंधी सुविधाएं नजरंदाज हो रही हैं। 

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OUTLOOK 05 August, 2015
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