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18 January 2016

चर्चाः कर्ज लेकर घी पीने के खतरे | आलोक मेहता

पीआईबी

स्टार्ट-अप कंपनियां  हाल के वर्षों में तेजी से बढ़ रही हैं। ‘मेक इन इंडिया’ अभियान में बहुराष्ट्रीय कंपनियों से अधिक बड़ी भूमिका छोटे उद्यमों की होने वाली है। चीन, जापान, जर्मनी ने इसी तरीके से दुनिया में अपना सिक्का जमाया। निर्मित सामान, टेक्नोलॉजी और कला के लिए विश्व बाजार में अपार संभावनाएं हैं। विकसित देश हमें प्रतियोगी मानते हैं। कमजोर विकासशील देश व्यग्रता से भारत की और देख रहे हैं। लोकतांत्रिक उदार अर्थव्यवस्‍था वाला देश बड़ी क्षमता रखता है। लेकिन चीन से मित्रता और प्रतियोगिता से भारत सरकार और उद्यमियों को अच्छे सबक भी लेने होंगे। अंतरराष्ट्रीय बाजार पर एक सीमा तक निर्भर रहा जा सकता है। अपने घर, दुकान, मोहल्ले, कस्बे, शहर, महानगर को आर्थिक रूप से चुस्त-दुरुस्त रखे बिना तरक्की कठिन है। भारतीयों की क्रय शक्ति नहीं बढ़ेगी तो देशी माल की खपत कहां होगी ? दिल्ली, मुंबई, कोलकाता, बेंगलूर में बनाए गए महंगे शापिंग मॉल में इन दिनों धंधा मंदा हो गया है। लोग घूमते-फिरते हैं। खा-पी लेते हैं। मल्टी प्लेक्स के आधे खाली सिनेमा हाल में महंगा टिकट खरीदकर फिल्म देख लेते हैं। लेकिन दुकानदारों को पर्याप्त कमाई नहीं हो पा रही है। कई लोगों ने दुकानें बंद कर दी। इससे भी पुराना अनुभव याद कीजिए। सत्तर-अस्सी के दशकों में देश के विभिन्न राज्यों में लघु उद्योग निकायों के साथ लघु उद्योग बस्तियां विकसित हुई। छोटी इकाइयों को करोड़ों रुपयों का कर्ज दिया गया। केंद्र सरकार इन राज्यों की लघु उद्योग बस्तियों की रिपोर्ट मंगवाकर देखेगी तो पता चलेगा कि कितनी अधिक इकाइयां बंद हो गईं। इन दिनों तो भारत के सार्वजनिक उपक्रम इस्पात प्राधिकरण तक ‌को गंभीर कठिनाईयों का सामना करना पड़ रहा है। चीन का आयातित स्टील सस्ता होने से भारतीय स्टील का धंधा बुरी हालत में है। फिर भी भविष्य में संभावनाओं के रास्तों पर संभलकर चलना होगा। कर्ज लेकर घी पीने और देश की आर्थिक सेहत अच्छी रखने के इरादे अच्छे हैं, लेकिन उपभोक्ताओं के जीवन स्तर को संवारे बिना यह घी पच नहीं पाएगा। 

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TAGS: मेक इन इंडिया, नरेंद्र मोदी, मुनाफे पर टैक्स छूट, अरुण जेटली, वित्त मंत्री, स्टार्ट अप, लघु उद्योग, लघु उद्यमी
OUTLOOK 18 January, 2016
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