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21 January 2016

चर्चाः शिक्षा के मंदिरों में राजनीति| आलोक मेहता

पीटीआइ

आत्महत्या से पहले लिखे गए पत्र की प्रामाणिकता तक पर संदेह किया गया। इस शर्मनाक प्रयास के विरूद्ध प्रतिपक्षी नेताओं के बाद विश्वविद्यालय के दलित प्राध्यापकों ने दलित उत्पीड़न और भेदभाव के गंभीर आरोप लगाए हैं। हैदराबाद पिछले वर्षों के दौरान शिक्षा और टेक्नोलॉजी के क्षेत्र में तेजी से बढ़ता गया है। ऐसे क्षेत्र में शैक्षणिक व्यवस्‍था में राजन‌ीतिक हस्तक्षेप, जातिगत और सांप्रदायिक तनाव के प्रयास युवकों के भविष्य के साथ खिलवाड़ है। लेकिन उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, राजस्‍थान, बिहार, छत्तीसगढ़, हरियाणा, पंजाब जैसे राज्यों में भी विश्वविद्यालयों, कॉलेजों, स्कूलों में राजनीतिज्ञों के पूर्वाग्रह, स्वार्थ, जोड़-तोड़ की घटनाएं सामने आने लगी हैं। शिक्षकों की भर्ती हो अथवा छात्रों को उच्च शिक्षा संस्‍थानों में प्रवेश- भ्रष्टाचार के आरोप लगते रहे हैं। राजनीतिक प्रतिबद्धता वाले कुलपतियों की नियुक्तियां, पाठ्यक्रमों में बदलाव, कुलाधिपति कहलाने वाले राज्यपालों और राज्य सरकारों के बीच गहरे मतभेदों से शिक्षा संस्‍थानों का स्तर गिर रहा है। मेडिकल-इंजीनियरिंग कॉलेजों की मान्यता में भी गंदी राजनीति दिखाई देती है। हाल के वर्षों में मान्यता प्राप्त कॉलेजों में प्राध्यापकों के वेतन बहुत अच्छे हैं, लेकिन शिक्षण व्यवस्‍था चरमरा रही है। केंद्रीय मानव संसाधन विकास मंत्री स्मृति ईरानी निरन्तर विवादों में बनी हुई हैं। वह असहमतियों को बर्दाश्त नहीं करतीं। उनके मंत्रालय के अधिकारी त्राहिमाम करते रहते हैं। कितने ही अधिकारी हटाए गए अथवा स्वयं छोड़ गए। कुछ राज्यों के शिक्षा मंत्रियों की योग्यता केवल राजनीतिक खेल में माहिर होना है। वे स्वयं आधुनिक शिक्षा और टेक्नोलॉजी को समझ नहीं पाते। उनके करीबी दोस्त, रिश्तेदार और अधिकारी शैक्षणिक संस्‍थानों पर अपने फरमान लाद रहे हैं। ऐसी स्थिति में भारत दुनिया को ज्ञान दे सकने की क्षमता का दावा कैसे कर सकेगा ?

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TAGS: हैदराबाद विश्वविद्यालय, छात्र आत्महत्या, राजनीति, स्मृति ईरानी, बंडारू दत्तात्रेय, आलोक मेहता
OUTLOOK 21 January, 2016
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