Advertisement
13 May 2016

चर्चाः हथियार का हिसाब न लो साधु से | आलोक मेहता

गूगल

इसके अगले दिन इसी सिंहस्‍थ कुंभ में साधुओं के बीच लाठी-त्रिशूल, तलवारबाजी से ज्यादा बंदूकों से जोरदार संघर्ष हुआ। दस साधु घायल हो गए। शायद महाकाल की कृपा थी कि कोई मरा नहीं। लेकिन साधु-संतों के इस युद्ध से भोले-भाले लोग हतप्रभ हो गए। डकैतों के गिरोह या राजनीतिक दलों के बीच अपने इलाकों पर कब्जे के ‌‌लिए हथियारों के उपयोग पर ज्यादा आश्चर्य नहीं होता। लेकिन त्याग-तपस्या के नाम पर बने साधुओं के बीच श्री महंत और अष्‍ट कौशल महंत के कथित सर्वसम्मत चुनाव के बाद असली विरोध लाठी-त्रिशूल-बंदूक के बल पर हुआ। साधु दो गुटों में बंट गए और पूरी ताकत से खून-खराबा हुआ। दस घायल अस्पताल पहुंचे। पुलिस ने औपचारिकता निभाने के लिए दो साधुओं को हिरासत में भी लिया। कानूनी औपचारिकता होने पर उन्हें जेल में रहने का कष्‍ट भी नहीं उठाना पड़ेगा। इस दृष्टि से सवाल उठता है कि इतने बड़े महाकुंभ के लिए सुरक्षा के व्यापक प्रबंध के बावजूद साधुओं के पास बंदूकें कहां से आ गईं और घंटों तक खूनी संघर्ष कैसे चलता रहा? साधुओं को बंदूकें रखने पर क्या अन्य नागरिकों की तरह लाइसेंस की जरूरत नहीं होती? साधु-संतों को आखिर किससे खतरा महसूस होता है? उन्हें पद, जमीन, सुख-संपत्ति से क्या अन्य लोगों से अधिक मोह हो सकता है? लेकिन साधुओं की बस्तियों और अखाड़ा की आंतरिक स्थिति जानने वाले बताते हैं कि कई अखाड़ों की गद्दी और महत्वपूर्ण पदों के लिए राजनीतिक सिंहासन और खानदानी संपत्ति की तरह विवाद एवं संघर्ष होते रहते हैं। उनके शिष्यों और समर्थकों को खून बहाने में तनिक संकोच नहीं होता। इसका कारण यह भी है कि पहले डकैत भी अपने जीवन से तंग आकर संन्यास लेते थे। अब कई अपराधी देर-सबेर किसी अखाड़े-आश्रम में पहुंच जाते हैं। देर-सबेर उनकी पृष्ठभूमि के रंग आने से बलात्कार-हत्या के प्रकरण भी बन जाते हैं। हां, सरकारें और प्रशासन बहुत बड़ा अपराध सामने आने पर ही साधुओं से हथियारों का हिसाब पूछते हैं। 

अब आप हिंदी आउटलुक अपने मोबाइल पर भी पढ़ सकते हैं। डाउनलोड करें आउटलुक हिंदी एप गूगल प्ले स्टोर या एपल स्टोरसे
TAGS: सिंहस्‍थ, कुंभ, उज्जैन, सााधु, संघर्ष, गोलीबारी, बंदूक, त्रिशूल, लाठी, ‌क्षिप्रा, समरसता स्नान, अखाड़े
OUTLOOK 13 May, 2016
Advertisement