चर्चाः सांसदों के भत्तों में सेंध | आलोक मेहता
अनिल साहनी द्वारा यात्रा भत्तों के लिए फर्जी बिलों से लगभग 24 लाख रुपये लिए जाने के गंभीर आरोप की जांच सी.बी.आई. को सौंपी गई है। राज्यसभा के हाल के इतिहास में यह सबसे गंभीर पहला मामला है, जिसमें सभापति श्री हामिद अंसारी ने सी.बी.आई. से जांच के आदेश दे दिए हैं। साहनी ने आरोप को गलत बताते हुए गिरोह की ओर ध्यान दिलाया है। असलियत तो सी.बी.आई. जांच के बाद सामने आएगी। लेकिन सवाल यह है कि सांसदों के खातों में सेंध लगा सकने वाला गिरोह क्या लंबे अर्से से सक्रिय रहा है? क्या सांसदों के भत्तों के बिल जाने-अनजाने बाहरी लोग बनाते रहे हैं? सचिवालय और सांसद इस हेराफेरी से अनभिज्ञ कैसे रहे? यों यह पहला अवसर नहीं है। कई वर्ष पहले सहकारी संस्थाओं से जुड़े एक वरिष्ठ नेता और सांसद हवाई यात्रा के फर्जी टिकटों से लाखों रुपयों का घोटाला करने के आरोप में फंसे थे। हंगामा हुआ, लेकिन उन्हें कोई दंड नहीं मिला। सांसद ही नहीं अधिकारियों द्वारा सरकारी बैठकों एवं यात्राओं के नाम पर हर साल भत्तों के रूप में मोटी रकम ली जाती है। निरीक्षण बैठकों के लिए वे पांच सितारा सुविधाओं का लाभ उठाते हैं। विदेश की हवाई यात्रा में फर्स्ट क्लास के टिकट के साथ एक ‘सहयात्री’ का टिकट मुफ्त मिलने की सुविधा का दुरुपयोग होता रहा है। यूपीए सरकार में कुछ महीनों के लिए इस सुविधा पर रोक लगी, लेकिन चतुर अधिकारियों ने फिर से सुविधा लागू करवा ली। सहचर-सहचरी के बजाय किसी को भी टिकट बेचे जाने के आरोप सामने आए। रेल यात्रा में ऐसे फर्जीवाड़े पकड़े भी गए। ममता बनर्जी के रेल मंत्री पद पर रहते हुए उनके एक सहायक पर रेल टिकट आरक्षण घोटाले के आरोपों पर कार्रवाई भी हुई। मतलब यह कि विशेषाधिकार वाली सुविधाओं के दुरुपयोग के आरोप लगते रहे हैं। भारत ही नहीं ब्रिटिश सांसदों पर भी सवाल करने के लिए बाहरी लोगों से धन लेने या आवास भत्ते के लिए निवास की गलत सूचना देने जैसे गंभीर आरोप सामने आए। इनमें भारतीय मूल के ‘लार्ड’ भी रहे हैं। बहरहाल, साहनी मामले के साथ सी.बी.आई. या अन्य जांच समितियों के जरिये सांसदों-अधिकारियों के भत्तों से जुड़े मामलों की गहराई से जांच और कार्रवाई होनी चाहिए।