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24 July 2019

क्या ‘गुमनामी बाबा’ थे सुभाष चंद्र बोस? आज रिपोर्ट का खुलासा करेगी योगी सरकार

लंबे समय से लोगों के मन में यह जिज्ञासा है कि क्या फैजाबाद के गुमनामी बाबा ही सुभाषचंद्र बोस थे?... आज इस रहस्य से पर्दा उठ सकता है। दरअसल, उत्तर प्रदेश की योगी सरकार बुधवार को विधानसभा में गुमनामी बाबा पर जस्टिस विष्णु सहाय की रिपोर्ट पेश करेगी। इससे पहले जांच रिपोर्ट को कैबिनेट की बैठक में रखा गया था। फैजाबाद में लंबे समय तक सुभाषचंद्र बोस के हमशक्ल कहे जाने वाले गुमनामी बाबा की मौत 18 सितंबर, 1985 में हुई थी। लोग इन्हें सुभाषचंद्र बोस मानते थे।

सूत्रों के मुताबिक आयोग की रिपोर्ट में कहा गया है कि बाबा की पहचान नहीं हो सकी है। हालांकि, आयोग ने गुमनामी बाबा की जो विशेषताएं बताई हैं, वह नेताजी सुभाष चंद्र बोस से काफी मिलती-जुलती हैं। आयोग की रिपोर्ट में यह कहा गया है कि गुमनामी बाबा अंग्रेजी, हिंदी व बंगाली जानते थे और उनके निवास से इन भाषाओं की कई किताबें मिलीं। रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि गुमनामी बाबा अयोध्या (तत्कालीन फैजाबाद) में तब तक ही थे, जब तक कि उनके नेताजी सुभाष चंद्र बोस होने की चर्चा शुरू नहीं हुई थी। जब समाज में गुमनामी बाबा को लेकर चर्चाएं शुरू हुईं, तो उन्होंने फौरन अपना आवास बदल दिया। रिपोर्ट में गुमनामी बाबा के संगीत और सिगार के प्रति प्रेम का भी उल्लेख किया गया है।

2016 में बनाया गया था आयोग

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साल 2016 में इलाहाबाद हाई कोर्ट में दायर एक याचिका में गुमनामी बाबा के नेताजी सुभाष चंद्र बोस होने की संभावना जताई गई थी और इसके लिए जांच कराने की अपील भी की गई थी। कोर्ट ने याचिका पर तत्कालीन अखिलेश यादव सरकार को आदेश देते हुए एक आयोग के गठन का आदेश दिया था। इसके बाद सपा सरकार ने ही जस्टिस विष्णु सहाय आयोग को इसकी जानकारी दी थी। बाद में इस आयोग ने गुमनामी बाबा से जुड़े कई दस्तावेज इकट्ठा किए थे और अयोध्या के कई लोगों ने उनके बारे में बातचीत भी की थी।

जस्टिस विष्णु सहाय ने क्या कहा?

जस्टिस विष्णु सहाय ने पहले संवाददाताओं को बताया था कि उन्होंने जिन लोगों का साक्षात्कार लिया था, वे पूर्व धारणा के साथ आए थे कि गुमानी बाबा वास्तव में बोस थे। हालांकि, उन्होंने कहा कि 1985 में बाबा की मृत्यु के बाद से विश्वसनीय गवाही एकत्र करना एक चुनौती थी और 2016 और 2017 में आयोग के सामने गवाहों को रखा गया।

बोस की भतीजी भी पहुंची थी फैजाबाद

जब सुभाष चंद्र बोस की भतीजी ललिता बोस भी फैजाबाद पहुंचीं थीं। उन्होंने व्यक्तिगत तौर पर जांच की और आश्वस्त किया कि वह उनके चाचा थे। ललिता बोस ने राज्य के तत्कालीन मुख्यमंत्री वीर बहादुर सिंह को उचित जांच के आदेश देने के लिए मनाने की कोशिश की, लेकिन कहा जाता है कि उन्होंने उनसे कहा था कि मामला उनसे अलग है। ललिता और दो लोगों ने तब प्रख्यात वकील रॉबिन मित्रा की सहायता से इलाहाबाद हाई कोर्ट में मुकदमा दायर किया। इसके जवाब में, राज्य सरकार ने सिर्फ अपना विरोध जताया और 13 साल बाद जवाबी हलफनामा दायर किया।

 एजेंसी इनपुट

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OUTLOOK 24 July, 2019
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