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25 May 2021

कभी घोड़े का कारोबार करते थे कोरोना का टीका बनाने वाले पूनावाला, दिलचस्प है टीका बनाने का सफर

file photo

भारत में कोविड-19 संक्रमण की रोकथाम के लिए दो प्रकार की वैक्सीन का निर्माण किया जा रहा है। एक भारतीय बॉयोटेक की कोविशील्ड और दूसरी सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया की कोवैक्सीन जिसके सीईओ अदार पूनावाला है। जो आजादी के वक्त घोड़ा करोबार के नाम से जाने जाते थे और आज उन्हें पूरी दुनियां में वैक्सीन उद्योग के बादशाह के नाम से जाना जाता है। जानिए पूनावाला ने कैसे घोड़ा कारोबार से वैक्सीन उद्योग की दुनिया में कदम रखा। 

बीबीसी की खबर के अनुसार पूनावाला का परिवार ब्रिटिश राज के दौरान 19वीं शताब्दी में पुणे आया था। उस वक्त कई पारसी परिवार ब्रिटिशों के शासन के दौरान भारत में बसे और प्रशासन से लेकर कारोबार तक की दुनिया में स्थापित हुए। पारसी परिवार के नाम पर उनके रहने वाले शहरों के नाम झलकते हैं। जैसे अदार के परिवार का मान पूनावाला पड़ा।

देश आजाद होने से पहले यह परिवार कंस्ट्रक्शन के कारोबार में था। लेकिन, उससे ज्यादा इनका नाम घोड़ों के व्यापार से हुए। आज भी लोग इन्हें घोड़ो के व्यापार के नाम से जानते हैं। यह घोड़ों का व्यापार अदार के दादा सोली पूनावाला ने शुरू किया था।

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उन्होंने घुड़साल बनाया जिसमें उन्नत किस्म के घोड़ो को रेस के लिए तैयार किया जाता था। ब्रिटिश अधिकारी बड़े उद्योगपतियों से इस परिवार का रिश्ता घोड़ो के व्यापार के जरिए ही बना था। पूनावाला साम्राज्य की नींव भी इसी कारोबार से बनी थी।

सवाल ये है कि घोड़ो के कारोबार के बाद आज यहां वैक्सीन बनाने वाली सीरम इंस्टीट्यूट की शुरुआत कैसे हुई? असल में इसके तार भी घोड़ों के व्यापार से ही जुड़े हुए हैं। अदार के पिता सायरस ने जब घोड़ों के व्यापार को बढ़ाने के बारे में सोचा तो उनका ध्यान एक ऐसी इंडस्ट्री पर गया जिसके बारे में ज्यादा जानकारी मौजूद नहीं थी और न ही इसके सफल होनी की जिम्मेदारी ले सकता था।

बड़ा जोखिम होने के बाद भी सायरस ने यह कदम उठाया और वैक्सीन बनाने के कारोबार में कदम रखा। यह वह दौर था जब भारत में सीमित स्तर पर वैक्सीन का उत्पादन होता था। उसमें भी पहले सरकार की भूमिका ज्यादा होती थी। पूनावाला के घोड़े के व्यापार में जो बूढ़े घोड़े होते थे। उनका उपयोग सर्पदंश और टिटनेस का टीका बनाने में किया जाता था।

सायरस पूनावाला ने टीवी टुडे को दिए एक इंटरव्यू में बताया कि हमलोग अपने घोड़ों को मुंबई के हाफकिन इंस्टीट्यूट को दिया करते थे। वहां के एक डॉक्टर ने मुझे बताया कि आपके पास घोड़े है, जमीन है। अगर आप वैक्सीन उत्पादन में आना चाहते हैं तो आपको केवल एक प्लांट स्थापित करना पड़ेगा। इस सलाह में उन्होंने नई इंडस्ट्री के लिए अवसर देखा और 1966 में सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया की स्थापना कर दी।

यह उस वक्त की बात है जब भारत सहित दुनिया भर में संक्रमण बीमारियों के खिलाफ सरकारें टीकाकरण अभियान चला रही थी। जल्द ही सीरम इंस्टीट्यूट ने कई बीमारियों के लिए वैक्सीन का उत्पादन शुरू कर दिया। सामाजिक स्वास्थ्य से जुड़े कार्यक्रम, मसलन टीकाकरण भी सरकार के हाथों में है। ऐसे में सरकारी प्रवधानों और अवरोधों का सामना सीरम को भी करना पड़ा।

सायरस पूनावाला ने एक इंटरव्यू में बताया कि कई तरह के परमिट हासिल करने होते थे। उसमें महीनों और सालों लगते थे। पहले 25 साल तो काफी मुश्किल भरे रहे। इसके बाद हमारी आर्थिक स्थिति बेहतर हुई।

सायरस के समय में ही सीरम इंस्टीट्यूट का वैक्सीन उत्पादन में प्रभुत्व स्थापित हो गया। वह उस वक्त से ही दुनिया के कई देशो में वैक्सीन की मांग को पूरा करने लगे। जिसके कारण सायरस पूनावाला की गिनती दुनिया के अमीर लोगों में होने लगी।

सायरस पूनावाला ने सीरम इंस्टीट्यूट की शुरुआत पांच लाख रुपये से की थी। वहीं फोर्ब्स की लिस्ट के अनुसार दुनिया के 165 वें और भारत के छठवें सबसे अमीर आदमी हैं।

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TAGS: वैक्सीन उद्योग, कोविड-19, सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया, पारसी परिवार, अदार पूनावाला, सायरस पूनावाला, घोड़ा करोबार, Vaccine Industry, Serum Institute of India, Parsi Parivar, Adar Poonawala, Cyrus Poonawala, Horse Business
OUTLOOK 25 May, 2021
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