Advertisement
15 December 2015

वायु प्रदूषण के संघर्ष में दिल्ली अकेला शहर नहीं- ग्रीनपीस

गूगल

ग्रीनपीस के कंपैनर सुनील दहिया का कहना है, “देश की राजधानी होने की वजह से, या फिर सबसे अधिक प्रदूषण के स्तर दिखलाने के कारण, दिल्ली के वायु प्रदूषण पर ख़ूब चर्चा हो रही है, और उसे सबसे ज्यादा तबज्जो मिलता है। लेकिन इस संदिग्ध सतह को ज़रा भी खरोंचा जाए तो आपको कई अन्य शहरों में पीएम 2.5 की सांद्रता दिखेगी - नमूने के तौर पर लखनऊ, अहमदाबाद, मुजफ्फरपुर और फरीदाबाद जैसे शहरों में तो रेड एलर्ट जारी करना पड़ता। एनएक्यूआई के अपर्याप्त आँकड़े भी यह स्पष्ट दिखलाते हैं कि 32 स्टेशनों में से 23 स्टेशनों पर घोषित राष्ट्रीय मानकों से 70 फीसदी अधिक प्रदूषण पाया जा रहा है।”

दहिया के अनुसार देश के कुछ शहरों में प्रदूषण का स्तर बीजिंग और चीन के अन्य कई शहरों से काफी ज्यादा है और यह विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्लूएचओ) के मानक से दस गुणा अधिक है जो इस बात की तरफ इशारा करता है कि वायु प्रदूषण के मामले में यह सचमुच राष्ट्रीय आपदा की स्थिति है।  

वायु प्रदूषण पर एनएक्यूआई के आकड़ों का पहली बार विश्लेषण करने के बारे में सुनील दहिया बताते हैं,  “एनएक्यूआई मौजूदा हालात में समस्या को पहचानने में पूरी तरह असफल है। इतने बड़े देश में सिर्फ 17 शहरों के आंकड़े उपलब्ध हैं जो चौंकाने वाली बात है। तत्कालिक रूप से देश के अन्य कई शहरों के आंकड़ों को इसमें शामिल करने की जरूरत है। मौजूदा प्रणाली में इसमें अल्पकालीन और दीर्धकालीन परामर्श और समाधान भी शामिल किए जाने चाहिए।” 

Advertisement

भारत का एनएक्यूआई प्रणाली वास्तविक आंकड़ों का आकलन करने में युरोपीय युनियन, अमरीका और चीन की तुलना में काफी पीछे है। समान्यतया युरोप के देशों में, हर शहर में चार वायु गुणवत्ता मापक केंद्र है, जबकि अमरीकी शहरों में पाँच, और चीन के शहरों में आठ केंद्र वास्तविक प्रदूषण दिखाने की सुविधा रखते हैं।लेकिन भारत के दस सबसे बड़े शहरों में एक भी मोनिटरिंग स्टेशन नहीं है। 

अब आप हिंदी आउटलुक अपने मोबाइल पर भी पढ़ सकते हैं। डाउनलोड करें आउटलुक हिंदी एप गूगल प्ले स्टोर या एपल स्टोरसे
TAGS: ग्रीनपीस इंडिया, वायु प्रदूषण, दिल्ली, भारत, प्रदूषण
OUTLOOK 15 December, 2015
Advertisement