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23 July 2022

ऑनलाइन शिक्षा: फैली या फिसड्डी?

 

“बड़ी-बड़ी एडुटेक कंपनियों का ग्राफ गिर रहा है और सैकड़ों कर्मचारियों की छंटनी हो रही है, तो क्या ऑनलाइन शिक्षा की लोकप्रियता बुलबुला था, जो फट गया या फटने के करीब?”

जब मैं बिहार के एक सरकारी स्कूल का छात्र था तब वहां के शिक्षकों के बारे में यह चर्चा खूब होती थी कि हमारे कौन-से अध्यापक कितना अच्छा पढ़ाते हैं। दरअसल किसी भी शिक्षण संस्थान में कार्यरत शिक्षक की पहचान उनकी टीचिंग स्किल्स यानी पढ़ाने की कला से ही होती थी। यह बहुत मायने रखता है कि शिक्षक किस तरह से किसी भी विषय का कॉन्सेप्ट बच्चों के दिमाग में डालते हैं। धीरे-धीरे वक्त बदलता गया और मेरे कॉलेज के दिनों तक बहुत बदलाव दिखने लगे। लोग तब तक शिक्षण संस्थान की गुणवत्ता और शिक्षकों के कौशल का आकलन परीक्षाओं में आने वाली ‘रिजल्ट’ के आधार पर करने लगे। पूंजीवाद हावी होने के बाद शिक्षा का बाजारीकरण और व्यवसायीकरण निरंतर बढ़ा और उस दौर में उसका आकलन ‘इन्वेस्टमेंट’ और ‘प्रॉफिट’ के आधार पर होने लगा।

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पिछले दो-ढाई साल में कोरोना महामारी के दौरान ऑनलाइन क्लॉसेज का बाजार बहुत बड़ा हुआ है। उस समय लोगों के पास फिजिकल क्लास के विकल्प नहीं थे इसलिए ऑनलाइन माध्यम से शिक्षा प्रदान करने वाली कई कंपनियां यूनिकॉर्न बन गईं। इस दौर में बहुत सारे लोगों ने शिक्षा के क्षेत्र में ऑनलाइन की महत्ता को समझा कि कैसे आप किसी एक स्थान से दुनिया भर के विद्यार्थियों को पढ़ा सकते हैं। ऑनलाइन का प्रयोग न सिर्फ छात्रों और शिक्षकों ने पढ़ने-पढ़ाने में किया, बल्कि इस माध्यम का उपयोग कई उम्रदराज लोग खाना बनाने, योग वगैरह सीखने के लिए करने लगे। इस दौर में लोगों को ऑनलाइन क्लासेज की आदत-सी लग गई। उसकी निरंतर बढ़ती मांग को देखते हुए कई लोगों ने मुझे भी सलाह दी कि मैं अपनी ऑनलाइन क्लासेज शुरू कर कर दूं। लेकिन मैंने इसमें जल्दबाजी नहीं की। इस अवधि में मैंने ऑनलाइन क्लासेज पर बहुत सारे प्रयोग और शोध किए और इस नतीजे पर पहुंचा कि अभी हमारी वर्चुअल शिक्षण व्यवस्था में बहुत सारे सुधार की आवश्यकता है।

आजकल बड़ी-बड़ी एडुटेक कंपनियों का ग्राफ निरंतर गिर रहा है और उनके सैकड़ों कर्मचारियों की छंटनी हो रही है। हाल तक तो ऐसा लग रहा था मानो ऑनलाइन माध्यम ही शिक्षण का सबसे सशक्त और प्रभावी माध्यम रहेगा। लेकिन जब अधिकतर शिक्षण संस्थानों में पहले की तरह फिजिकल क्लासेज शुरू हो गए, तो लगता है जैसे ऑनलाइन शिक्षा की लोकप्रियता बुलबुला था, जो फट गया है या फटने के करीब है। हाल के दिनों में जिस तरीके से कई बड़ी एडुटेक कंपनियों ने कर्मचारियों की छंटनी की उससे यह सवाल सामने आया कि ऑनलाइन क्लासेज का, खासकर हमारे देश में भविष्य क्या है?

क्या ऑनलाइन क्लास सिर्फ वैश्विक महामारी की वजह से लोकप्रिय हुए और अब फिर से क्लास रूम पढ़ाई शुरू होने के कारण इसका भविष्य अंधकारमय है? अभी किसी ठोस नतीजे पर पहुंचना जल्दबाजी होगी लेकिन व्यक्तिगत तौर पर मुझे लगता है कि तमाम चुनौतियों के बावजूद ऑनलाइन क्लास का भविष्य उज्‍ज्वल है।

समझना होगा कि आज की तारीख में भले ही ऑनलाइन क्लास शिक्षक के लिए चुनौती है लेकिन यह बड़ा अवसर भी है। पहले एक शिक्षक एक समय में एक ही क्लासरूम में कुछ बच्चों को पढ़ा पाते थे। वर्चुअल क्लास आने के बाद उनकी पहुंच लाखों बच्चों तक हो गई है। हालांकि जो शिक्षक पहले ढंग से नहीं पढ़ाते थे और हमेशा इसे रूटीन काम समझकर करते थे, उनके लिए इस दौर के अनुरूप खुद को ढालना चुनौती है। ऑनलाइन क्लास का डोमेन बड़ा हो चुका है। तकनीक की मदद से एक शिक्षक लाखों-करोड़ों विद्यार्थियों तक पहुंच सकता है, बशर्ते वह सही ढंग से पढ़ाए। तभी बड़ी सफलता मिलेगी। इसके विपरीत, अगर उसमें पढ़ाने की कला का अभाव है, तो उसे उसका भी खामियाजा भुगतना पड़ेगा। यही बात उन एडुटेक कंपनियों और ऑनलाइन क्लासेज पर लागू होती है, जो तेजी से आगे बढ़ीं और अब उतनी ही तेजी से गिर नीचे आ रही हैं।

मेरी समझ से इसका एक कारण उनका महंगा होना भी है। ऑनलाइन क्लास को सस्ता कर उसे ज्यादा से ज्यादा लोकप्रिय बनाया जा सकता है। कम फीस देश के सुदूरवर्ती गांव में रहने वाले गरीब परिवारों के बच्चों की जिंदगियां बदल सकती है। मसलन, बिहार के जहानाबाद या मसौढ़ी जैसे छोटे शहर, कस्बे या गांव के किसी गरीब परिवार की कोई बच्ची 200-400 रुपये महीना देकर ऑनलाइन पढ़ाई का लाभ उठा सके, तो समाज में बड़े पैमाने पर बदलाव आ सकता है।

आज भी हमारे देश में लाखों माता-पिता अपने बच्चों को खराब आर्थिक स्थिति के चलते अच्छे शिक्षक के पास पढ़ने को नहीं भेज सकते हैं। हर बच्चा शहर जाकर पढ़ने में असमर्थ है। इसलिए अगर ऑनलाइन माध्यम को सशक्त और सर्वसुलभ बनाया जाए, तो देश में शिक्षा के साथ-साथ बड़ा सामाजिक परिवर्तन भी आ सकता है।

हम अक्सर देखते हैं कि जब बच्चे मोबाइल देख रहे होते हैं तो उसमें लीन हो जाते हैं। अगर मोबाइल छीना जाए, तो वे झुंझला जाते हैं। फिर जब भी उन्हें चोरी-छुपे मौका मिलता है, वे फिर मोबाइल उठा लेते हैं। एडुटेक कंपनियों या ऑनलाइन क्लासेज के एक्सपर्ट को भी यह समझना होगा कि आखिर वह क्या है, जिससे बच्चे बंधे होते हैं। ऑनलाइन शिक्षण के दौरान भी उन तत्वों का समावेश करना होगा ताकि बच्चे बिना ध्यान बंटाए एकाग्रचित होकर अपना पाठ पढ़ें। बतौर शिक्षक मैं एक उदाहरण देना चाहता हूं। एक फिल्म दो-सवा दो घंटे की होती है। अगर फिल्म आपको अच्छी लगती है, तो आप कहते हैं, “वाह, समय का पता ही नही चला!” लेकिन फिल्म उबाऊ होती है, तो पैसे देने के बावजूद हम इंटरवल में ही सिनेमा हॉल से निकल जाते हैं। कहने का तात्पर्य है कि ऑनलाइन क्लासेज भी उसी फिल्म की तरह होनी चाहिए, जो दर्शकों को बांधे रखे।

मेरा निजी अनुभव है कि पूरी दुनिया में ऑनलाइन क्लासेज में जितने प्रयोग अभी तक हुए हैं, वे छोटे स्तर पर हुए हैं। अभी बड़े-बड़े इनोवेशन और प्रयोग होने बाकी हैं। ऑनलाइन क्लासेज चलाने वाला कोई शिक्षक या संस्था अगर सिर्फ इस विषय पर फोकस करे कि उसके इन्वेस्टमेंट पर ज्यादा से ज्यादा फायदा हो, विद्यार्थियों की संख्या ज्यादा हो, दर्शक ज्यादा हों या डोमेन बड़ा हो तो वह सफल नहीं होगा। इसके विपरीत, अगर ऑनलाइन क्लासेज वाले इस बात पर फोकस करेंगे कि बच्चों को कैसे प्रभावित किया जाए, कैसे उनको बेहतर से बेहतर ढंग से समझाया जाए तब उनको सफलता अवश्य मिलेगी।

मैं एक कॉन्फ्रेंस में भाग लेने जापान गया था। वहां एक लड़के ने प्रयोग किया कि एक टोपीनुमा डिवाइस के पहनने से आपकी इच्छानुसार बॉल घूमेगी यानी आपकी सोच को उस बॉल से जोड़ दिया जाएगा। अभी तक इसका प्रयोग बहुत प्रारंभिक अवस्था में है लेकिन मुझे लगता है भविष्य में इस तरह के कॉन्सेप्ट का प्रयोग किया जा सकता है। यानी जो भी बच्चे लाइव क्लास में हैं उनकी मन:स्थिति को किसी खास तरह के डिवाइस से जोड़कर दुनिया के किसी भी हिस्से में बैठा शिक्षक बड़ी स्क्रीन पर जान सकता है। एक घड़ी के आने की बात भी चल रही है, जो बता पाएगी कि आपकी सोच कितनी है और आपमें कितनी एकाग्रता है। एक अच्छा टीचर अगर इस तरह की तकनीक को खुद से जोड़ता है, तो छात्र चाहे कितनी भी दूर बैठा हुआ है, लाभ ले सकता है। अब समय आ गया है इस तरह की टेक्नोलॉजी को सस्ता और सर्वसुलभ बनाकर ऑनलाइन क्लास से जोड़ा जाए।

ऑनलाइन क्लास टीचर अगर दमदार है, तो ऐसा माहौल पैदा कर सकता है, जिससे बच्चों को लगे कि वह उनके सामने खड़ा है और उन्हें पढ़ने में मजा आए। जब बच्चे फिल्म देखते हैं तो उन्हें पता होता है कि परदे पर जो भी दिखाया जा रहा है वह असली नहीं है और पहले से शूट किया हुआ है। फिर भी फिल्म में कई बार लोग रोते हैं, हंसते हैं। फिल्म के साथ-साथ उनकी भावनाएं जुड़ जाती हैं। इसलिए मैं सोचता हूं कि जब प्री-रिकॉर्डेड वीडियो देखने में मन लगता है, तो लाइव पढ़ाते वक्त ऐसा इफेक्ट क्यों नहीं पैदा किया जा सकता है। इसे फिल्म से बेहतर क्यों नहीं किया जा सकता है? बच्चों को पता है कि मैं शिक्षक के रूप में उनसे चैट कर सकता हूं, उनसे सवाल पूछ सकता हूं। यही नहीं, वे भी कहीं न कहीं बैठे मुझसे जुड़े हुए हैं। इसको कैसे अधिक से अधिक प्रभावशाली बनाया जाए इस पर हम लोगों को अभी और विचार करना होगा।

हाल में, ओमान और कतर के बच्चों का एक सप्ताह के एक कोर्स में मैंने एक प्रयोग किया। मैंने 427 बच्चों को एक सप्ताह का गणित का कोर्स दिया और दो देशों की संस्थाओं को एक साथ जोड़कर उस कोर्स को पढ़ाया। लोग अक्सर शिकायत करते हैं कि ऑनलाइन क्लासेज में बच्चा वीडियो ऑफ कर देता है, चुपचाप बैठा रहता है या उस समय किसी दूसरे विंडों में वीडियो गेम खेलता है। लेकिन यकीन मानिए, मेरे कोर्स में अंतिम दिन भी सभी 427 बच्चे उपस्थित थे, जबकि रोज मैं साढ़े तीन घंटे लगातार गणित पढ़ाता था और मात्र 10 से 15 मिनट का ब्रेक देता था। इसके बावजूद एक भी बच्चा अनुपस्थित नहीं हुआ।

इसके जरिए मैं अपनी तारीफ नहीं कर रहा बल्कि यह बताने की कोशिश कर रहा हूं कि ऑनलाइन माध्यम में छात्रों को अगर अच्छे ढंग से इंगेज किया जाए, तो बच्चे मन लगाकर पढ़ेंगे और रिस्पॉन्स भी देंगे। सुपर 30 में मैंने यही किया। पढ़ाई के दौरान नए-नए कार्टून बनाए, म्यूजिक डाला और आवाज बदल कर हर कोशिश से बच्चों को हंसाया। मैंने बहुत अभिनव प्रयोग की कोशिश की। हमें ऑनलाइन क्लासेज में भी ऐसे प्रयोग करने पड़ेंगे ताकि बच्चे बंधे रहे। विश्व भर के शिक्षकों को समझना होगा कि अब समय आ गया है कि वे कमर कसके खुद को तैयार कर, तमाम चुनौतियों का सामना कर ऑनलाइन क्लासेज को अधिक से अधिक दिलचस्प बनाएं। उन्हें यह नहीं सोचना है कि वे परिणाम कैसा देते हैं। अगर कोई बेहतर ढंग से ऑनलाइन क्लॉसेज चलाना चाहता हैं, अच्छा ऑनलाइन टीचर बनना चाहता है, तो वही पुराना फॉर्मूला काम आएगा, आप बच्चों को कितने अच्छे ढंग से समझाते हैं। मेरे पिताजी ने टीचिंग के लिए मुझे एक सक्सेस फॉर्मूला दिया था। अगर मैं क्लास में बच्चों को अच्छे तरीके से समझाने में सफल होता हूं, तो प्रसिद्ध टीचर हो जाऊंगा। उन्होंने यह भी कहा कि शिक्षक को कभी इस बात की परवाह नहीं करनी चाहिए कि वह कितना पैसा कमाएगा। उसी बात की मैंने गांठ बांध ली। 

आज भी कहीं न कहीं छात्र उसी शिक्षक की तलाश में रहते हैं, जिनको बच्चों को पढ़ाने का जूनून हो और जो बच्चों को अच्छे से अच्छा पढ़ा सकें। पारंपरिक क्लास रूम टीचिंग हो या ऑनलाइन कक्षा, यह बात हर माध्यम पर लागू होती है। मतलब यह कि ऑनलाइन पढ़ाई की संभावना बहुत है मगर सिर्फ मार्केटिंग को ध्यान में रखेंगे तो लोग ऑनलाइन से पारंपरिक पढ़ाई को हमेशा बेहतर समझेंगे।    

(लेखक पटना स्थित बहुचर्चित सुपर 30 कोचिंग के संस्थापक हैं)

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TAGS: Online Education, Offline Education, Super-30, Anand Kumar
OUTLOOK 23 July, 2022
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