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02 February 2020

निर्भया के गुनहगारों की फांसी पर दिल्ली हाई कोर्ट ने फैसला सुरक्षित रखा

File Photo

निर्भया के चारों गुनहगारों को फांसी की सजा पर निचली अदालत के फैसले को चुनौती देने वाली केंद्र की याचिका पर रविवार को दिल्ली हाई कोर्ट में विशेष सुनवाई हुई। याचिका में निचली अदालत के उस आदेश पर रोक लगाने की मांग की गई है जिसमें निर्भया के गुनहगारों के डेथ वॉरंट के अमल पर रोक लगा दी गई है। दोनों पक्षों की दलीलें सुनने के बाद हाईकोर्ट ने फैसला सुरक्षित रख लिया। सरकार की तरफ से सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि न्याय की खातिर गुनहगारों की फांसी में जरा भी नहीं होनी चाहिए। उन्होंने कहा कि दोषियों की ओर से फांसी को जानबूझकर टालने की कोशिशें की जा रही हैं। वहीं, गुनहगारों के वकील ने सरकार की दलीलों का विरोध किया।

सॉलिसिटर जनरल कहा कि एक बार सुप्रीम कोर्ट गुनाहगारों पर अंतिम फैसला सुना देता है तो उन्हें अलग-अलग फांसी दिए जाने में कोई बाधा नहीं है। जेल नियमों के मुताबिक, एक अंतिम कानूनी उपचार जो फांसी को टाल सकता है वह है सुप्रीम कोर्ट के सामने स्पेशल लीव पिटिशन। उन्होंने कहा कि दिल्ली कारागार नियमावली 2018 के मुताबिक, अगर किसी एक अपराधी की एसएलपी लंबित हो तो बाकी के दोषियों की फांसी भी होल्ड हो जाएगी, पर यह नियम दया याचिका के संबंध में नहीं रखता। निचली अदालत ने जिसको आधार बनाते हुए सभी दोषियों कि फांसी स्थगित कर दी।

'खेल रहे हैं न्यायिक मशीनरी के साथ'

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तुषार मेहता ने कहा कि गुनहगार कानूनी प्रकिया का फायदा उठा रहे हैं। वे एक-एक कर कानूनी बचाव के रास्ते अपना रहे हैं। यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि सभी कानूनी विकल्प खत्म होने के बाद भी गुनहगार फांसी टालने के लिए बार-बार कोर्ट में याचिका दायर कर रहे हैं। अगर ऐसे ही प्रक्रिया का पालन होता रहा तो केस कभी खत्म ही नहीं होगा। गुनहगार न्यायिक मशीनरी के साथ खेल रहे हैं और देश के धैर्य की परीक्षा ले रहे हैं। गुनहगार पवन ने अभी दया याचिका दायर नहीं की है। उसके इरादे सामने आ रहे हैं, दोबारा से दया याचिका तभी दायर हो सकती है जब परिस्थितियों में किसी तरह का बदलाव हो।

मेहता ने कोर्ट को सभी गुनहगारों की कानूनी राहत के विकल्प के स्टेटस का चार्ट सौंपा। उन्होंने कहा कि गुनहगारों के रवैये से साफ है कि वो कानून का दुरूपयोग कर रहे हैं। चारों गुनहगारों ने कानून का मजाक बनाकर रख दिया है।

गुनहगारों के वकील की दलील

वहीं, गुनहगारों के वकील एपी सिंह ने कहा कि ट्रायल कोर्ट ने बिल्कुल सही आदेश पारित किया है। सुप्रीम कोर्ट और संविधान की ओर से फांसी के लिए कोई समय निर्धारित नहीं है। दया याचिका खारिज होने पर 14 दिन का समय मिलता है। नियमों के मुताबिक दया याचिका खारिज होने के बाद दोषी को अपने बचे हुए काम निपटाने के लिए 14 दिनों का वक्त मिलता है। गुनहगार मुकेश की ओर से वकील रेबेका जॉन ने कहा कि मौजूदा मामले में निचली अदालत से जारी आदेश को हाई कोर्ट में चुनौती नहीं दी जा सकती, जब गुनहगार को कहा गया कि वही निचली अदालत के आदेश को यहां चुनौती नहीं दे सकता, इसके लिए उसे सुप्रीम कोर्ट जाना होगा तो यही नियम केंद्र पर भी लागू होना चाहिए।

निचली अदालत के आदेश को दी थी चुनौती

तिहाड़ जेल प्रशासन ने शनिवार को दिल्ली हाईकोर्ट का रुख करते हुए 2012 के निर्भया सामूहिक दुष्कर्म और हत्या मामले में चारों गुनहगारों को फांसी देने पर रोक लगाने वाले निचली अदालत के आदेश को चुनौती दी थी।  इस पर हाईकोर्ट ने चारों गुनहगारों के साथ ही तिहाड़ जेल प्रशासन और डीजी जेल को नोटिस जारी कर जवाब मांगा था। सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा था कि गुनहगार कानूनी प्रकिया का फायदा उठा रहे हैं। वे एक-एक कर कानूनी बचाव के रास्ते अपना रहे हैं, ताकि इस जघन्य अपराध की सजा से बच सकें।

दो बार टली फांसी

शुक्रवार को निचली अदालत ने गुनहगारों के खिलाफ डेथ वारंट की तामील अगले आदेश तक रोक दी थी जिससे फांसी की सजा एक बार फिर टल गई थी। अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश धमेंद्र राणा ने चारों दोषियों की अर्जी पर यह आदेश जारी किया किया था। पवन कुमार गुप्ता, विनय कुमार मिश्रा, अक्षय कुमार और मुकेश कुमार सिंह को एक फरवरी को सुबह छह बजे फांसी दी जानी थी।

पहली बार सात जनवरी को चारों दोषियों को 22 जनवरी को फांसी देने का डेथ वारंट जारी किया गया था। इस पर 17 जनवरी को स्थगन दिया गया था। उसी दिन फिर उन्हें एक फरवरी को फांसी देने के लिए दूसरा वारंट किया गया जिस पर शुक्रवार को रोक लगा दी गई।

पवन, विनय और अक्षय के वकील ए पी सिंह ने अदालत से फांसी पर अमल को अनिश्चित काल के लिए स्थगित करने की अपील करते कहा कि उनके कानूनी विकल्प के रास्ते अभी बंद नहीं हुए हैं। तिहाड़ जेल प्रशासन ने उनके आवेदन को यह कहते हुए चुनौती दी थी कि यह विचारयोग्य नहीं है तथा उन्हें अलग-अलग फांसी दी जा सकती है, लेकिन तिहाड़ जेल की यह दलील अदालत में स्वीकार नहीं हुई।

ये था मामला

16 दिसंबर, 2012 की रात को दिल्ली के बसंत विहार इलाके में 23 साल की पैरामेडिकल छात्रा के साथ चलती बस में बहुत ही बर्बर तरीके से सामूहिक दुष्कर्म किया गया। इस घटना के बाद पीड़िता को इलाज के लिए सरकार सिंगापुर ले गई जहां इलाज के दौरान उसकी मौत हो गई। मामले में दिल्ली पुलिस ने बस चालक सहित छह लोगों को गिरफ्तार किया था। इनमें एक नाबालिग भी शामिल था। नाबालिग को तीन साल तक सुधार गृह में रखने के बाद रिहा कर दिया गया, जबकि एक आरोपी राम सिंह ने जेल में खुदकुशी कर ली। फास्ट ट्रैक कोर्ट अदालत ने इस मामले में चार आरोपियों पवन, अक्षय, विनय और मुकेश को दोषी ठहराते हुए फांसी की सजा सुनाई थी। फास्ट ट्रैक कोर्ट के इस फैसले को हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट ने भी बहाल रखा था।

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OUTLOOK 02 February, 2020
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