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29 January 2019

अयोध्या में गैर-विवादित और विवादित जमीन की क्या है पूरी स्थिति

File Photo

लोकसभा चुनाव से पहले केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में अर्जी देकर अयोध्या में गैर-विवादित जमीन पर यथास्थिति हटाने की मांग की है। इस पर अयोध्या के साधु-संतों और दोनों पक्ष (राम मंदिर-बाबरी मस्जिद) के पैरोकारों की प्रतिक्रियाएं भी सामने आ रही हैं। यूपी के सीएम योगी आदित्यनाथ ने भी सरकार की याचिका का स्वागत किया है। उन्होंने कहा, 'हम केंद्र के इस कदम का स्वागत करते हैं। हम पहले भी कह चुके हैं कि हमें गैर-विवादित जमीन के इस्तेमाल की अनुमति मिलनी चाहिए।'

कितनी है जमीन

केंद्र ने कोर्ट में कहा है कि वह गैर-विवादित जमीन इसके मालिक राम जन्मभूमि न्यास को लौटाना चाहती है। पीटीआई के मुताबिक, कुल जमीन 67 एकड़ है, जिसमें विवादित जमीन का 2.77 एकड़ हिस्सा शामिल है। इस जमीन का अधिग्रहण 1993 में कांग्रेस की तत्कालीन नरसिम्हा राव सरकार ने किया था। कोर्ट में बाद में वहां यथास्थिति बनाए रखने और कोई धार्मिक गतिविधि न होने देने का निर्देश दिया था।

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विवादित जमीन के क्षेत्रफल पर है विवाद

केंद्र सरकार की याचिका के मुताबिक, 0.313 एकड़ जमीन जिस पर विवादित ढांचा स्थित था, उसी को लेकर विवाद है। बाकी जमीन अधिग्रहित जमीन है जबकि बाकी पक्षों का मानना है कि विवादित स्थल 2.77 एकड़ जमीन पर है जिसे इलाहाबाद हाई कोर्ट ने तीन पक्षकारों में बराबर-बराबर बांट दिया था। इसके बाद सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ ने 2003 में पूरी अधिग्रहित जमीन 67 एकड़ पर यथास्थिति बनाने का आदेश दिया था।

नरसिम्हा राव सरकार ने किया था जमीन का अधिग्रहण

6 दिसंबर,1992 में अयोध्या में बाबरी मस्जिद विध्वंस के बाद तत्कालीन नरसिम्हा राव सरकार ने 1993 में अध्यादेश लाकर विवादित स्थल और आस-पास की 67 एकड़ जमीन का अधिग्रहण किया था।

सही मालिक को जमीन लौटाएगी सरकार: सुप्रीम कोर्ट

इस्माइल फारुकी मामले में सुप्रीम कोर्ट ने ही कहा है कि जो जमीन बचेगी उसे उसके सही मालिक को वापस करने की जिम्मेदारी केंद्र सरकार पर है। उस दौरान सुप्रीम कोर्ट ने इस्माइल फारुखी जजमेंट में 1994 में तमाम दावेदारी वाले अर्जी को बहाल कर दिया था। कोर्ट ने जमीन को सरकार के पास ही रखने को कहा था और आदेश दिया था कि जिसके पक्ष में फैसला आएगा उसके बाद सरकार जिनकी जमीनें हैं, उन्हें सौंप दे।

2.77 एकड़ विवादित जमीन की क्या है स्थिति?

अयोध्या विवाद मामले में इलाहाबाद हाई कोर्ट की लखनऊ बेंच ने 30 सितंबर, 2010 को फैसला दिया था। अयोध्या में 2.77 एकड़ की विवादित जमीन को 3 हिस्सों में बांट दिया था, जिसमें रामलला विराजमान वाला हिस्सा हिंदू महासभा को दिया गया। दूसरा हिस्सा निर्मोही अखाड़े को और तीसरा हिस्सा सुन्नी वक्फ बोर्ड को दिया गया है। हाई कोर्ट के इस फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई, जिसके बाद 9 मई, 2011 को सुप्रीम कोर्ट ने यथास्थिति बरकरार रखने का आदेश दिया था। इस मामले में अब सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई होनी है।

गर्भगृह की विवादित जमीन पर जल्द आए फैसला

केंद्र सरकार की याचिका पर राम जन्म भूमि मंदिर के पुजारी सत्येंद्र दास ने कहा कि केंद्र सरकार अविवादित अधिग्रहित भूमि को वापस ले सकती है लेकिन जब तक गर्भगृह की विवादित जमीन पर फैसला नहीं होता मंदिर निर्माण नहीं शुरू हो सकता। उन्होंने कहा, 'कोर्ट लगातार तारीख देकर मंदिर-मस्जिद केस की सुनवाई टाल रहा है। इस पर जल्द फैसला आना चाहिए या सरकार संसद में कानून बना कर इस विवाद का हल कर अपने वादे पर खरा उतरे।'

यह राजनीतिक खेल, 1990 जैसे हालात पैदा हो सकते हैं’

बाबरी मस्जिद के दूसरे पक्षकार हाजी महबूब ने तीखी प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए कहा, 'यह राजनीतिक खेल जिससे 1990 जैसे हालात पैदा हो सकते हैं। न्यास को जमीन देने की मंशा सरकार ने जाहिर कर दी है जबकि अधिग्रहण के मकसद में साफ कहा गया है कि जिसके पक्ष में फैसला आएगा, उसे इसका हिस्सा आवंटित किया जाएगा।' उन्होंने कहा कि विवादित भूखंड को छोड़ कर कहीं भी मंदिर निर्माण किया जाए हमें ऐतराज नहीं है पर विवादित 2.77 एकड़ सुरक्षित रहना चाहिए।

'याचिका 2014 में ही दायर हो जानी चाहिए थी'

राम जन्म भूमि न्यास के वरिष्ठ सदस्य डॉ. राम विलास वेदांती ने कहा कि जमीन की वापसी की याचिका केंद्र सरकार का देर से उठाया गया पर अच्छा कदम है। उन्होंने कहा, 'यह याचिका 2014 में जब बीजेपी की सरकार बनी उसी समय दायर होनी चाहिए थी। अब तक मंदिर का निर्माण भी चलता रहता और कोर्ट का फैसला भी आ गया होता। अब अगर कोर्ट में याचिका पर निर्णय होकर अविवादित जमीन न्यास को वापस मिल जाती है तो मंदिर निर्माण शुरू कर दिया जाएगा।'

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TAGS: Ayodhya case, disputed and non-disputed land, centre, supreme court
OUTLOOK 29 January, 2019
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