बस नाम की शबाना
अपने बुरे अतीत से जूझ रही शबाना (तापसी पन्नू) खुद को दोस्तों के साथ रहते हुए भी अलग रखती हैं। अपने सबसे खास दोस्त जय (ताहेर शब्बीर मिठाईवाला) के साथ रहती है पर अपने बारे में कुछ नहीं बताती। और अपने इसी खास दोस्त की वजह से वह एक खास मकसद के लिए चुन ली जाती है। निर्देशक शिवम नायर ने पूरी कोशिश की है कि शबाना हर फ्रेम में दिखाई दे और फिल्म उनकी लगे। लेकिन हीरो होने और हीरो जैसी हरकतें करने में जरा फर्क होता है। यही फर्क नाम शबाना में दिखाई पड़ता है।
शिवम इंटरवेल तक अपने मुख्य पात्र को स्थापित करने में ही लग गए हैं। बाकी बची फिल्म में बेबी के अंतिम दृश्यों, उसी शैली को उन्होंने नाम शबाना में तापसी के साथ शूट कर लिया है। जब दिमाग पुरुष अधिकारी लगा रहे हैं, शबाना को बचाने के लिए एक खास अफसर को तैनात किया गया है तो फिर शबाना ही क्यों। शिवम इस बात का उत्तर नहीं दे पाए। इसमें कोई शक नहीं कि तापसी पन्नू ने शानदार मेहनत की है और वह फिल्म में दिखाई पड़ती है। मनोज वाजपेयी ने सिर्फ फोन पर कोऑर्डिनेट करने का रोल क्यों स्वीकार किया यह समझ से परे है। बेहतर होता शिवम नायर शबाना को मारा-मारी के बजाय दिमाग लगा कर केस सुलझाने वाले किरदार के रूप में ढालते। नाम शबाना बस नाम भर की थ्रिलर है, जो यदि फुर्सत हो तो देख लीजिए वरना किसी नई फिल्म आने का इंतजार कीजिए।