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21 January 2015

मुख्यमंत्री नाराज थे

माधव जोशी

डी. डी. मित्तल उर्फ द्वारकादास मित्तल का चेहरा गम में डूबा हुआ था। राज्य प्रशासनिक सेवा के अधिकारी डी. डी. सर (यह उनका पुकारे जाने का नाम है) की मां का पार्थिव शरीर उनके सरकारी बंगले के भव्य ड्राइंग रूम के फर्श पर रखा हुआ है। लंबे समय से बीमार चल रहीं उनकी मां ने कल सुबह ही अंतिम सांस ली। गांव से उनका पार्थिव शरीर देर रात यहां लाया गया है। डी. डी. सर की इच्छा थी कि मां को यहीं लाया जाए। बंगले के बाहर सरकारी अधिकारियों तथा कर्मचारियों की भीड़ जुटी है। अधिकारी का दुख सारे अधीनस्थों को भी दुखी कर देता है। उस पर यदि प्रशासनिक सेवा का अधिकारी दुखी हो तो यह दुख और बढ़ जाता है। डी. डी. सर भी दुखी हैं। गमगीन हैं। लेकिन डी. डी. सर के दुख का कारण कुछ और है। मां तो लंबे समय से बीमार थीं, जाना ही था, चली गईं। दुख का कारण तो कुछ और है। असल में डी. डी. सर यहां जिला मुख्यालय पर ए.डी.एम. के पद पर कार्यरत हैं। ए.डी.एम. का मतलब जिले की प्रशासनिक व्यवस्था में ठीक दूसरे नंबर का पद। कलेक्टर या डी. एम. के बाद। और उस पर जिला भी कौन सा? मुख्यमंत्री का अपना गृह जिला। डी. डी. मित्तल कुछ माह पहले ही यहां स्थानांतरित होकर आए थे। मुख्यमंत्री का गृह जिला बरसात के पानी से भरे हुए पोखर के समान होता है। इस पोखर के किनारे बने बिलों, गड्ढों में मुंह बाहर निकाल कर कई सारे मेढक टर्राते रहते हैं। लेकिन इनमें से कई मुंह दरअसल मेढकों के नहीं होते हैं। आपने यदि गलती से किसी मेढक का मुंह पकड़ कर बिल से खींचने की कोशिश की तो पता चलेगा वह तो निकलता ही आ रहा है, निकलता ही आ रहा है। असल में वह सांप होता है। तो इसी प्रकार से मुख्यमंत्री के क्षेत्र में भी केवल मुंह देख कर पता नहीं लगा सकते कि यह मेढक है या सांप? डी. डी. सर मेहनती अधिकारी हैं, वह अपने से ऊपर के अधिकारियों को प्रसन्न रखने के लिए हमेशा मेहनत करते रहते हैं। इसी का परिणाम था कि यहां पर स्थानांतरित होकर आने के छह महीने के अंदर ही उनको कलेक्टर द्वारा ए.डी.एम. बना दिया गया। मुख्यमंत्री के गृह जिले का ए.डी.एम.। मुख्यमंत्री के गृह जिले का ए.डी.एम. होने का अलग ही अर्थ होता है।

सब कुछ अच्छा चल रहा था। चलता ही रहता, मगर चला नहीं। डी. डी. सर चूक गए। भूल गए कि वह कहां पदस्थ हैं। एक मेढक को प्रशासनिक हाथों से पकड़ कर बिल से खींच लिया। मेढक, सांप निकला। डी. डी. सर खींचते रहे, वह खिंचता रहा, खिंचता रहा। खूब लंबा सांप था। उसकी पूंछ दूसरे सिरे पर मुख्यमंत्री की कुर्सी से लिपटी हुई थी। डी. डी. सर ने खींचा, खींचा। जब पूरा बाहर नहीं खिंचा तो झटका दिया। झटका दिया तो उधर पूंछ में लिपटी कुर्सी हिली। हिली तो कुर्सी पर बैठे मुख्यमंत्री के माथे पर बल पड़े, चेहरे की भंगिमा बदली। कुछ ऐसा चेहरा बन गया जो नाराजी से भरा हुआ था। संदेश पूरे प्रशासनिक हलके में फैल गया कि मुख्यमंत्री, डी. डी. सर से नाराज हैं। डी. डी. सर ने घबराकर सांप को छोड़ दिया। मगर देर हो चुकी थी। सांप नीचे गिर कर ए.डी.एम. की कुर्सी से लिपट गया और अब कुर्सी हिलाने की बारी उसकी थी। उधर से मुख्यमंत्री ने सांप की पूूंछ को झटका दिया और इधर ए.डी.एम. की कुर्सी हिली। यदि डी. डी. सर की मां का निधन नहीं हो गया होता तो उनको कल ही हटा दिया जाना तय था। मगर मां ने मरने के बाद भी बेटे को आसन्न संकट से दो चार दिन की मोहलत तो दिलवा ही दी थी। मोहलत इसलिए भी मिल गई कि डी. डी. सर, कलेक्टर साहब के चहेते हैं। कहावत की भाषा में, 'नासिका के अंदरतम हिस्से के बाल हैंÓ। अपने मातहतों में कलेक्टर साहब सबसे ज्यादा डी. डी. सर को ही पसंद करते हैं।

यह जो मां का पार्थिव शरीर गांव से यहां बुलवाया गया है, उसके पीछे दो कारण हैं। पहला, डी. डी. सर इस समय अपनी गलती के कारण हुए नुकसान को ठीक करने के लिए भागदौड़ करने में जुटे हैं। स्वयं कलेक्टर उनकी मदद कर रहे हैं, इसलिए मुख्यालय छोड़कर कहीं नहीं जाना चाह रहे थे। दूसरा यह कि मां की मौत से सहानुभूति की जो लहर यहां पैदा होगी वह डेढ़ सौ किलोमीटर दूर दूसरे जिले के पुश्तैनी गांव में कहां। मुख्यमंत्री भी कुछ तो पसीजेंगे ही। आखिर को मां मरी है अगले की। प्रशासनिक हलके में सबसे बड़ा अपमान होता है किसी घटना के कारण पद से हटाया जाना। वह अधिकारी इसके बाद हटाया हुआ अधिकारी ही होता है। डी. डी. सर, यह ठप्पा लगवाना नहीं चाहते। अभी काफी नौकरी बाकी है उनकी।

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'डी. एम. साहब आ गए।Ó कलेक्टर आ पहुंचे हैं। साथ में अर्दली है। हाथ में पुष्पचक्र लिए। अधिकारियों, कर्मचारियों में सुगबुगाहट हो गई। कलेक्टर साहब अंदर चले गए। कुछ देर डी. डी. सर के पास बैठे और उसके बाद दोनों अंदर से और अंदर चले गए। देर तक अंदर ही रहे। कुछ देर बाद बाहर खड़े एक अधिकारी का मोबाइल बजा। नंबर देखकर वह अटेंशन हो गया। उसने कुछ अदब से बात की और अंदर चला गया। अंदर मतलब वहां नहीं जहां मां थीं। अंदर से भी अंदर, जहां कलेक्टर साहब और डी. डी. सर थे। फिर एक और का मोबाइल बजा। वह भी अंदर से अंदर चला गया। फिर एक और। फिर एक और। काफी देर बाद सारे के सारे बाहर निकले। कलेक्टर ने अपना हाथ डी. डी. सर के कंधे पर रखा हुआ था। कलेक्टर ने कार के पास आकर डी. डी. सर का कंधा थपथपाया और कार में बैठकर रवाना हो गए। अंदर गए अधीनस्थ अधिकारियों ने अपने-अपने विभाग के कर्मचारियों को हाथ से इशारा किया। बात की बात में वह सब भी अपने अपने वाहनों पर सवार होकर कुछ तेजी दिखाते हुए कहीं रवाना हो गए।

लगभग एक डेढ़ घंटे तक डी. डी. सर के बंगले पर यथास्थिति बनी रही। रिश्तेदार बार-बार मिट्टी उठाने की बात करते और बार बार डी. डी. सर द्वारा रोक दिया जाता। डेढ़ घंटे बाद कुछ हलचल बढ़ी। तेजी से गईं सरकारी गाडिय़ां उतनी ही तेजी के साथ लौटीं। मगर इस बार बंगले के मुख्य द्वार पर न लगकर पीछे के दरवाजे पर लगीं। कर्मचारियों ने काफी सारा सामान उतार-उतार कर पीछे के दरवाजे से बंगले के अंदर पहुंचा दिया। अधिकारियों, कर्मचारियों और सामान को बंगले के अंदर छोड़, खाली गाडिय़ों को उनके चालकों ने बंगले के सामने लाकर लगा दिया। अब बंगले के अंदर, के अंदर, के भी अंदर वाले कमरे में हलचल थी। जहां ये सब पहुंचे थे। सामान, कर्मचारी और अधिकारी।

कुछ देर बाद जनसंपर्क अधिकारी आए, फिर मीडिया के लोग। जनसंपर्क अधिकारी बंगले के लॉन में मीडिया के लोगों के बैठने की व्यवस्था करने में लग गए। कुछ ही देर में कलेक्टर भी पहुंच गए। इस बार वह सफेद कुरता-पाजामा पहने हुए थे। आते ही पहले वह पत्रकारों से मिले। हरेक के पास जा-जाकर आत्मीयता से बात की और फिर अंदर चले गए।

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'प्रदेश के मुख्यमंत्री की 'पुत्रियां बचाओ योजनाÓ का प्रभावÓ

(निप्र) कल शहर में निकली एक अनोखी शवयात्रा ने लोगों को मुख्यमंत्री की 'पुत्रियां बचाओ योजनाÓ का संदेश दिया। शवयात्रा में शामिल लोग 'पुत्रियां हैं तो भविष्य हैÓ, 'पुत्रियां ही आने वाला कल हैंÓ, 'पुत्री बचाओÓ, 'मां ही कल पुत्री थी, पुत्री ही कल मां होगीÓ, जैसे संदेशों की तख्तियां लिए हुए थे। अस्सी वर्ष की उम्र पूरी कर चुकीं रामवती देवी की शवयात्रा ने कल पूरे शहर में बेटियां बचाने को लेकर जागरूकता पैदा की। स्वयं जिला कलेक्टर तथा सभी प्रमुख अधिकारी अपने हाथों में इस प्रकार के संदेश देने वाले पोस्टर तथा तख्तियां लेकर शवयात्रा में शामिल हुए। रामवती देवी, जिला मुख्यालय पर पदस्थ ए. डी. एम. श्री द्वारकादास मित्तल की माताजी थीं। हमारे संवाददाता से दूरभाष पर बताया कि श्री मित्तल ने बताया कि उनकी माताजी, प्रदेश के मुख्यमंत्री द्वारा चलाई जा रही 'पुत्रियां बचाओ योजनाÓ से बहुत प्रभावित थीं। वह उस योजना को लेकर काम भी करना चाहती थीं, किंतु अस्वस्थता के चलते वह ऐसा नहीं कर पाईं। उनकी अंतिम इच्छा थी कि जब भी उनकी अंतिम यात्रा निकाली जाए तो उसमें प्रदेश के यशस्वी तथा संवेदनशील मुख्यमंत्री की योजना का संदेश समाज को दिया जाए। उनकी इसी अंतिम इच्छा का पालन करते हुए उनकी शवयात्रा में इस प्रकार का प्रयोग किया गया। 

हमारे राजधानी संवाददाता ने बताया कि स्वयं मुख्यमंत्री ने इस कदम की सराहना करते हुए कहा है कि इस प्रकार के प्रयासों से ही पुत्रियां बचाने के कार्यों को बल मिलेगा। हमारे संवाददाता ने बताया कि संभवत: यह पहला अवसर है जब शवयात्रा के माध्यम से सामजिक परिवर्तन का संदेश दिया गया है। 

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TAGS: पंकज सुबीर, कहानी, मुख्यमंत्री नाराज थे
OUTLOOK 21 January, 2015
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