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16 March 2016

खोदा कूड़ा, निकला कंडोम

माधव जोशी

आजकल कंडोम बहुत डिमांड में है। ऐसा नहीं कि भारत देश में अचानक ही लोग सेक्स ज्यादा करने लगे हैं या आबादी नियंत्रण को लेकर बहुत ही ज्यादा रातोरात सचेत हो गए हैं या फिर कुछ बीमारियों से बचने के लिए यकबयक अलर्ट हो गए हैं। मसला बिल्कुल मस्त है। कंडोम की डिमांड बढ़ी है लेकिन इस्तेमाल करने के लिए नहीं डिमांड बढ़ी है यूज्ड कंडोमों की।

आप घर बैठे कल्पना ही नहीं कर सकते कि कितना बड़ा कारोबार हो गया है, इस्तेमाल किए गए कंडोमों का। देश में पहली बार इनकी ताकत का अहसास हुआ है। इसने इतने बड़े पैमाने पर रोजगार का सृजन किया है कि अगले बजट में इसे अलग से तवज्जो देने की सिफारिश भी हो गई है। इसे स्किल डेवलपमेंट योजना में भी शामिल किया जा रहा है। आखिर इस्तेमाल किए गए कंडोम को खोजना, गिनना, लिस्ट बनाना, उसके उद्भव से विसर्जन तक का रिकॉर्ड रखना, प्रमाणित तथ्य जुटाना, फोटोग्राफी-वीडियोग्राफी करना हरेक के बस की बात नहीं है। इसके लिए बिल्कुल अलहदा किस्म का हुनर चाहिए। इस हुनर में पारंगत लोगों की शिनाख्त करने के लिए एक अलग डिपार्टमेंट बनाने की फाइल बन गई है और ऊपर से ओ.के. होने के बाद यह चालू हो जाएगा। इस निजाम में रेड टेपिज्म तो है नहीं न, बाबू को तो कोई पूछबे नहीं न करता है, सबकुछ टॉप से होता है इसलिए इस फाइल पर जल्दी एक्‍शन होने की पूरी उक्वमीद है। फाइल के ऊपर अलग से चिप्पी जो लगा दी है, कंडोम करेक्टर। और लेटेस्ट यह है कि इसे मेक इन इंडिया में भी इंट्री मिल गई है। आला कमान के साथ हुई बैठक में सबके के सब इस प्रस्ताव पर वाह-वाह कर उठे कि अगर भारत में यूज्ड कंडोम गिनने की मशीन बनाई जाए तो दुनिया भर में उसकी इस खोज का डंका बज जाएगा। अभी तक देशों में कंडोम वितरण के लिए डिस्पेंसर्स लगाए जाते हैं, भारत यूज्ड के लिए लगाएगा। बिल्कुल इनोवेटिव आइडिया है, बैठक में सबने एक स्वर में कहा क्या आइडिया है बॉस ! खटाखट मामला आगे बढ़ा। इसके लिए पीपीपी मॉडल पर परियोजना को आगे बढ़ाने पर सिद्धांत रूप में मंजूरी भी दे दी गई। 

फास्टट्रैक में परियोजना है जरूर लेकिन देश तब तक इंतजार तो कर नहीं सकता। देशहित में काम करने वालों की फौज तो इस समय देश के हर चप्पे-चप्पे पर तैनात है। उनके हाथों को काम चाहिए, वे अपनी भुजाएं फड़काने के लिए कुलबुला जो रहे हैं। बस फिर क्या, राष्ट्रभक्त वालंटियर्स ने कारसेवा करनी शुरू कर दी। दल ने अपना एक नाम भी ईजाद कर दिया है राष्ट्रभक्त स्वयंभू संघ और हर जगह कलेक्‍शन सेंटर शुरू कर दिए है, प्रयुक्त कंडोम संग्रह केंद्र। दिक्कत बस यह है कि इसमें आधी आबादी यानी औरतों को रोजगार मिलने का कोई चांस नहीं है। यह सौ फीसदी मर्र्दों की संस्था बन गई है। अब आधी आबादी को नाराज करके राष्ट्रभक्त का यह मिशन कैसे पार लगे तो भइया इस पहलू पर भी तगड़ा मंथन हुआ। उन्हें मोहल्ला स्तर पर कोई काम देने की योजना बनाई गई। वे होंगी मोहल्ला स्तर पर व्हिसल फ्लोअर। घर-घर की खबर रखना, कंडोम की खपत के बारे में जानकारी जुटाना आदि, उनके जिम्मेे आया है। क्योंकि आस-पड़ोस में जाकर घरों के कूड़े की टोह लेना औरतों के लिए सहज माना गया है।

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अब आइए, यहां देखें कैसे आखिरकार यह राष्ट्रीय मिशन चल रहा है। खासतौर से चुनावी मौसम में। पांच राज्यों में तो इसी साल चुनाव हैं, कई बड़े राज्यों की बारी अगले साल है यानी राजनीतिक माहौल गरमा-गरम है। और ऐसे में कंडोम और वह भी इस्तेमाल किए कंडोम तो कसम से एटम बम का काम करेंगे। नेताओं को यह 'ज्ञान’ समझ में आ गया है कि कूड़े से यूज्ड कंडोम निकालिए और किसी भी विपक्षी को करेक्टरलेस साबित कर दीजिए। आखिरकार, प्राइम टाइम पर चर्चा पर आने के लिए यह आजमाया हुआ नुस्खा है।

आलम यह है कि तमाम नेताओं को अपने घरों के कूड़ेदान की सिक्योरिटी के लिए अलग से एक गार्ड रखना पड़ रहा है। कहीं गलती से उसके घर का कूड़ा विपक्षी दलों के हाथ न लग जाए। उन्हें खौफ है कंडोम वालंटियर से। ये दल, अपने फोटोग्राफरों और वीडियोग्राफरों की टीम लेकर पक्ष-विपक्ष के मंत्रियों-संत्रियों, बाबुओं के घरों के कूड़े को टटोल-टटोल कर यूज्ड कंडोम निकालते हैं। इस काम को फोटो और वीडियो में कैद करते हैं। तो जनाबे आली, कूड़े के ढेर पर कहीं भी आपको लोग कुछ ढूंढ़ते हुए नजर आए तो समझने में फेर न करिएगा, ये कूड़े के पहाड़ को खोदकर कंडोम निकालने वाली राष्ट्रभक्त ब्रिगेड है। छपते-छपते—सुना है अमेरिकी राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार ट्रोनाल्ड डमप ने किल क्लिंटन के यूज्ड कंडोम गिनने के लिए भारत सरकार को कंडोम गिनने वाली मशीन का प्री-ऑर्डर पेश कर दिया है...

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TAGS: कंडोम, स्किल डेवलपमेंट योजना, रेड टेपिज्म, पीपीपी मॉडल
OUTLOOK 16 March, 2016
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